Sultanpur Lok Sabha Seat: सुल्तानपुर में क्या नया चेहरा उतारेगी बीजेपी? मेनका गांधी पर है संशय! जानें- क्या कहते हैं समीकरण
Sultanpur Lok Sabha Seat पर दो दर्जन दावेदार पीएम मोदी व कमल के भरोसे अपनी जीत तय मान रहे है.बस उन्हे टिकट मिल जाय. सुलतानपुर लोक सभा में कुल पांच विधानसभा सीटें हैं.
SultanPur Lok Sabha Seat Election 2024: यूपी स्थित सुल्तानपुर में केंद्र व प्रदेश की सरकार वाली पार्टी में सांसदी के लिए दावेदारों की लंबी सूची है. वहीं अन्य प्रमुख दलों में दावेदारों का संकट बरकरार है,या यूं कहें अन्य पार्टियों में दावेदारों को लेकर सन्नाटा पसरा हुआ है. फिलहाल कई टर्म सांसदी का परचम लहराने वाली पूर्व केंद्रीय मंत्री का इसी जिले से चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है.इसी मजबूत दावेदारी के चलते ही अन्य पार्टियां भी अपने प्रत्याशी घोषित करने में जल्दबाजी नहीं कर रही. सीधे-सीधे यह कहा जाए कि BJP के अधिकृत प्रत्याशी घोषणा के बाद ही अन्य पार्टी अपना प्रत्याशी मैदान में उतारना चाह रहे हैं. कहीं BJP ने वर्तमान सांसद को इग्नोर किया तो सुल्तानपुर की चुनावी समर में बड़ा उलट फेर निश्चित है.
देखा जाय तो वर्तमान सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका संजय गांधी को छोड़ BJP में दावेदारो की भले ही टिकट के लिए लंबी लाइन हो.फिलहाल ये तो तय हैं कि ऐसा सांसद देश में कोई दूसरा नहीं है जो बाहरी होते हुए भी सर्वाधिक भ्रमण अपने संसदीय क्षेत्र में रखता हो.इसी लगाव के चलते जिले की जनता माता जी कह कर पुकारती हैं.वैसे भी चाहे कोरोना काल रहा हो या अन्य अवसर या सामान्य तौर पर भी कम से कम दो से तीन विजिट तीन चार दिवसीय का प्रत्येक माह में जरूर रहता है.इस दौरान जन चौपाल,जनता दरबार आदि में शरीक हो दुख दर्द जान समस्या का समाधान हर हाल में कराती रही हैं.अन्य दिनों में जिला पंचायत में बने सांसद संवाद केंद्र पर प्रतिनिधि रणजीत कुमार या अन्य कोई जिम्मेदार मिल जनता की सुनता है,समस्या हल कराता है.ऐसे में इनके जनाधार पर कोई उंगली उठने का प्रश्न ही नहीं है.इसी बीच सप्ताह भर पहले BJP की पहली सूची में51उम्मीदवारों के नाम में यह बड़ा नाम शामिल न होने से सबको चौका दिया.खैर अभी दो दर्जन सीटों पर घोषणा बाकी है.जिसमे कई खाटी BJPई वंचित रहे है.जिसमे प्रमुख रूप से नितिन गडकरी, मेनका गांधी,वरुण गांधी,बृजभूषण शरण सिंह, वीके सिंह समेत कई शामिल है.खैर मेनका गांधी के बारे में कोई निगेटिव चर्चा नही है.केवल वरुण गांधी की सरकार विरोधी बयान बाजी से अटकलें तेज हो गई है.
वहीं जिले में नजर डाली जाय तो दो दर्जन दावेदार पीएम मोदी व कमल के भरोसे अपनी जीत तय मान रहे है.बस उन्हे टिकट मिल जाय.जिसमें अधिकारी व एक बार विधायक रह चुके देवमणि दुबे भी सांसदी का टिकट मांग रहे है.जबकि दोबारा विधायकी का टिकट तक नही ले पाए.वहीं सुल्तानपुर के रहने वाले राजेश्वर सिंह लखनऊ के एक विस से विधायक है.ये राजनीति में न आए होते तो कोई इन्हे इस जनपद के है जानता तक नही था.इसके पहले ये अधिकारी थे.ये भी दावेदार है.प्रेम शुक्ल BJP में राष्ट्रीय प्रवक्ता है.डिबेट में माहिर है.ये भी चांदा क्षेत्र के रहने वाले है.टिकट की लाइन में है.सीताराम वर्मा दो बार से लगातार विधायक है, इसलिए टिकट चाहिए.राज प्रसाद उपाध्याय निषाद पार्टी व BJP के संयुक्त प्रत्याशी थे और विधायक है.इसी पार्टी से फिर एमपी की दावेदारी है. चिकित्सा क्षेत्र में सेवा करने के साथ ही दो दो बार लगातार जिलाध्यक्ष पद पर काबिज डा.आरए वर्मा भी जनता के बीच चुनाव लड़ना चाह रहे हैं.वहीं डा.जेपी सिंह भी दावेदार है.शिक्षा के क्षेत्र में स्थापित पिछले कुछ दिनों से होर्डिंग बैनर से चर्चा में आए वेद प्रकाश सिंह भी किसी रास्ते राजनीति में इंट्री करना चाह रहे हैं.डा.वीणा पांडेय चुनाव में दिखती है.पहले भी टिकट ले चुकी है. बसपा सरकार में मंत्री रह चुके जयनारायण तिवारी इस बार BJP से टिकट मांग रहे है.करीब तीन दशक से एमएलए नही बन पाए है.ये कई पार्टी में रह चुके है. खाटी BJPई संजय सिंह त्रिलोकचंदी भी टिकट की फिराक में है.योगी सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा पाई सोनम किन्नर भी टिकट चाह रही है.वे पालिकाध्यक्षी में रनर रह चुकी है. विधायक विनोद सिंह सफल हुए तो अपने बेटे पुलकित सिंह को टिकट दिला सकते हैं.वहीं राजनीति में इंट्री कर लगातार जनप्रतिनिधित्व करने वाले शिवकुमार सिंह अपनी पत्नी जिला पंचायत अध्यक्ष उषा सिंह के लिए प्रयासरत है.वजह राजनीतिक गोटी मजबूती के साथ बिछाने में माहिर है.लगातार परचम लहरा रहे है.जिले में सांसदी कर चुके डा.संजय सिंह अमेठी भी यही से टिकट मांगने की सुगबुगाहट है.इनका नारा रहता है कि एक वोट दीजिए दो जनसेवक पाइए.फिलहाल कई बार से असफलता ही हाथ लगी है.अभी BJP के पक्ष में वोटिंग करने वाले सपा विधायक मनोज पांडेय रायबरेली को यहां से टिकट मिलने की चर्चा सोशल मीडिया पर रही.फिलहाल बहुत से ऐसे दावेदार है जो आज तक प्रधानी तो दूर गांव की सदस्यी/ नगर में सभासद तक कभी नही बने है.फिर भी दिवास्वप्न देख रहे है.वैसे जब चुनाव आता है तो ऐसे लोग ही बरसाती मेढ़क की तरह दिखाई देते है.इन लोगो को चुनाव पहले व बाद में जनता से कोई लेना देना नही है.
जिले में INDIA गंठबंधन भी प्रत्याशियों की घोषणा करने में पीछे है.बताया जाता है कि इस जिले की सीट सपा के खाते में है.सपा के धुरंधर नेता चुप्पी साधे हुए है.यहां पर अरुण वर्मा,संतोष पांडेय,ताहिर खां,राम चंद्र चौधरी,शकील अहमद,भगेलू राम आदि कोई दावेदारी नही कर रहे है.बसपा से चाहे डा. शैलेंद्र त्रिपाठी हो या डा. डीएस मिश्रा या पूर्व मंत्री ओपी सिंह,पूर्व एमएलसी डा. ओपी त्रिपाठी सभी चुप है.अंदर खाने की माने तो सत्ता धारी पार्टी के जनाधार को देख बेस वोटर वाली पार्टी भी सकते में हैं. बसपा से सांसद रह चुके वर्तमान सपा विधायक मो. ताहिर खां भी कोई रुचि नहीं ले रहे.यही नहीं हर समय सोशल मीडिया व अखबारों के जरिए अपनी पहचान रखने वाले समाजसेवी पीतांबर सेन उर्फ संतोष यादव भी लोस चुनाव में सपा से दावेदारी में हैं.फिलहाल वे पहचान के मोहताज नहीं हैं. हर विस/लोस चुनाव में किस्मत अजमाने वाले भद्र परिवार के भ्राता द्वय की चुप्पी इस बार लाजमी है.वजह कोर्ट ने सोनू व मोनू सिंह के साथ ही शिवकुमार सिंह व उषा सिंह के खिलाफ अदालत ने सजा सुनाई थी.उसी के चलते मोनू सिंह की प्रमुखी जा चुकी है.दूसरा लोस चुनाव में चंद्रभद्र सिंह सोनू बसपा/सपा के सिंबल से लड़े थे.लेकिन सफलता नहीं मिल पाई थी.ऐसे में कोर्ट से राहत मिल भी जाय तो सोशल मीडिया पर मिल रहे भारी जनसमर्थन जब तक वोट में नही बदलेंगे तब तक भद्र परिवार को हार का सामना करना तय है.
यदि BJP हाई कमान जनाधार वाले दावेदार को टिकट से वंचित कर किसी अन्य को प्रत्याशी बनाया तो इस सीट को गंवाने में देर नहीं लगेगी. वजह भी साफ है कि वर्तमान सांसद मेनका गांधी एक ऐसी नेता है जिन पर कामवाद के सिवा जाति वाद लागू नहीं होता.अन्य किसी को उतारने से पहले जातिगत समीकरण टटोलना होगा.इसके इतर या तो हाई प्रोफाइल वाला दिग्गज नेता पैराशूट से लाया जाय तभी सफलता मिल सकती हैं.अगल बगल जनपद के प्रत्याशियों पर नजर दौड़ाई जाय तो जौनपुर,अयोध्या में क्षत्रिय प्रत्याशी,प्रतापगढ़ में ओबीसी,सुल्तानपुर में कामवाद से इतर ब्राह्मण/क्षत्रिय-पिछड़ा पर दांव BJP लगा सकती है.
वहीं सुलतानपुर लोकसभा चुनाव 2024 में यहां के लोग अपना 18 वां सांसद चुनेंगे. अब तक इस सीट पर कांग्रेस आठ, BJP पाँच , बसपा दो, एक बार जनता दल और एक बार जनता पार्टी जीत दर्ज करा चुकी है. सपा को इस सीट पर कभी जीत नहीं मिल सकी. सुलतानपुर लोकसभा सीट वीवीआईपी चुनावी क्षेत्र रहा है. राजीव गांधी और राहुल गांधी की सीट अमेठी पहले सुलतानपुर जिले में ही थी. अब अमेठी अलग जिला है. वर्तमान में बीजेपी से मेनका गांधी सांसद हैं. अतिक्रमण के मारे शहर का बुरा हाल है. घंटों ट्रैफिक जाम आए दिन की समस्या है. उद्योग के नाम पर सिर्फ एक सहकारी चीनी मिल है, वह भी जर्जर है.
कब कौन जीता
1951 बीबी केसकर कांग्रेस
1957 गोविंद कांग्रेस
1962 कुंवर कृष्ण वर्मा कांग्रेस
1967 गनपत सहाय कांग्रेस
1971 केदार नाथ सिंह कांग्रेस
1977 जुल्फी कौरुल्ला जनता पार्टी
1980 गिरिराज सिंह कांग्रेस
1984 राजकरन सिंह कांग्रेस
1989 राम सिंह जनता दल
1991 विश्चनाथ दास शास्त्री BJP
1996 देवेन्द्र बहादुर राय BJP
1998 देवेन्द्र बहादुर राय BJP
1999 जय भद्र सिंह बसपा
2004 मो. ताहिर खां बसपा
2009 डा. संजय सिंह कांग्रेस
2014 वरुण गांधी BJP
2024 मेनका गाँधी BJP
सुलतानपुर लोक सभा में कुल पांच विधानसभा सीटें हैं. वर्तमान में जयसिंहपुर, कादीपुर, लम्भुआ और सदर विधानसभा में BJP के विधायक हैं. जबकि इसौली विधानसभा में समाजवादी पार्टी के विधायक हैं.
वर्तमान सुल्तानपुर गोमती नदी के दक्षिण में बसा हुवा है , पहले यहां गिरगिट नाम का गावं था इसी गांव में अंग्रेजो ने छावनी डाली और इसका नाम कम्पू हो गया ,प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजो की गोलाबारी से वीरान होने के कारण बची हुई आबादी दक्षिण की ओर आ बसी और कम्पू सुल्तानपुर हो गया.प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजो से यद्ध में इस जिले को चिराग गुल घोषित किया गया था.
उत्तर प्रदेश में गोमती किनारे बसे सुल्तानपुर की सल्तनत पर लंबे समय तक कांग्रेस का कब्जा रहा है, लेकिन रायबरेली और अमेठी की तरह कभी इसे वीवीआईपी सीट की अहमियत नहीं मिल सकी. इस सीट पर कांग्रेस से लेकर जनता दल, बीजेपी और बसपा जीत का परचम लहराने में कामयाब रही हैं. लेकिन समाजवादी पार्टी इस सीट पर कभी भी जीत का स्वाद नहीं चख सकी है, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस के दुर्ग से सटे हुए क्षेत्र से 'गांधी परिवार' के वारिस वरुण गांधी को उतारकर इसे हाई प्रोफाइल तो बनाया. साथ ही साथ 16 साल के अपने सूखे को भी खत्म कर कमल खिलाने में कामयाब रही.