नई दिल्ली, एबीपी गंगा। अयोध्या में विवादित जमीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुना दिया है। रामलला को कानूनी मान्यता देते हुये देश की सबसे बड़ी अदालत ने एक लंबे चले विवाद का अंत कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व में पांच जजों की बेंच ने मंदिर निर्माण के लिये सरकार को ट्रस्ट बनाने के लिये कहा है। सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ, किन तर्कों के आधार पर सर्वोच्च अदालत ने रामलला को जमीन दी।


मुख्य न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुये निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज किया। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि कोर्ट को देखना है कि एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने।


-नमाज पढ़ने की जगह को मस्ज़िद मानने के हक को हम मना नहीं कर सकते।


-1991 का प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट धर्मस्थानों को बचाने की बात कहता है। एक्ट भारत की धर्मनिरपेक्षता की मिसाल है।


-निर्मोही अखाड़े का दावा छह साल की समय सीमा के बाद दाखिल हुआ। इसलिए खारिज है।


-निर्मोही अखाड़ा अपना दावा साबित नहीं कर पाया है। निर्मोही सेवादार नहीं है।


-पुरातात्विक सबूतों की अनदेखी नहीं कर सकते।वह हाई कोर्ट के आदेश पर पूरी पारदर्शिता से हुआ। उसे खारिज करने की मांग गलत है।


-सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बहस में अपने दावे को बदला। पहले कुछ कहा, बाद मे नीचे मिली रचना को ईदगाह कहा। साफ है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बना थी।


-नीचे विशाल रचना थी। वह रचना इस्लामिक नहीं थी। वहां मिली कलाकृतियां भी इस्लामिक नहीं थी।


-एएसआई ने वहां 12वी सदी की मंदिर बताई। विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल हुईं। कसौटी का पत्थर, खंभा आदि देखा गया। एएसआई यह नहीं बता पाया कि मंदिर तोड़कर विवादित ढांचा बना था या नहीं।


-12वीं सदी से 16वीं सदी पर वहां क्या हो रहा था। साबित नहीं हुआ।


-हिन्दू अयोध्या को राम भगवान का जन्मस्थान मानते हैं। मुख्य गुंबद को ही जन्म की सही जगह मानते हैं


-अयोध्या में राम का जन्म होने के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया। विवादित जगह पर हिन्दू पूजा करते रहे थे।


-गवाहों के क्रॉस एक्जामिनेशन से हिन्दू दावा झूठा साबित नहीं हुआ।


-रामलला ने ऐतिहासिक ग्रंथों, यात्रियों के विवरण, गजेटियर के आधार पर दलीलें रखीं।


चबूतरा,भंडार, सीता रसोई से भी दावे की पुष्टि होती है। हिन्दू परिक्रमा भी किया करते थे। लेकिन टाइटल सिर्फ आस्था से साबित नहीं होता।


-मुसलमान दावा करते हैं कि मस्ज़िद बनने से 1949 तक लगातार नमाज पढ़ते थे। लेकिन 1856-57 तक ऐसा होने का कोई सबूत नहीं है।


-हिंदुओं के वहां पर अधिकार की ब्रिटिश सरकार ने मान्यता दी। 1877 में उनके लिए एक और रास्ता खोला गया।


-अंदरूनी हिस्से में मुस्लिमों की नमाज बंद हो जाने का कोई सबूत नहीं मिला।अंग्रेज़ों ने दोनों हिस्से अलग रखने के लिए रेलिंग बनाई।


-1856 से पहले हिन्दू भी अंदरूनी हिस्से में पूजा करते थे। रोकने पर बाहर चबूतरे की पूजा करने लगे
फिर भी मुख्य गुंबद के नीचे गर्भगृह मानते थे। इसलिए रेलिंग के पास आकर पूजा करते थे।


-1934 के दंगों के बाद मुसलमानों का वहां कब्ज़ा नहीं रहा। वह जगह पर exclusive poseission साबित नहीं कर पाए हैं।


-जबकि यात्रियों के वृतांत और पुरातात्विक सबूत हिंदुओं के हक में हैं। 6 दिसंबर 1992 को स्टेटस क्यो का ऑर्डर होने के बावजूद ढांचा गिराया गया


-लेकिन सुन्नी बोर्ड एडवर्स पोसेसन की दलील साबित करने में नाकाम रहा है। लेकिन 16 दिसंबर 1949 तक नमाज हुई।


-बाहर हिंदुओं की पूजा सदियों तक चलती रही। मुसलमान अंदर के हिस्से में exclusive possession साबित नहीं कर पाए


-केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाए। मन्दिर निर्माण के नियम बनाए। अंदर और बाहर का हिस्सा ट्रस्ट को दिया जाए।


-मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ की वैकल्पिक जमीन मिले। या तो केंद्र 1993 में अधिगृहित जमीन से दे या राज्य सरकार अयोध्या में ही कहीं दे।


-हम अनुच्छेद 142 के तहत मिली विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए मुस्लिम पक्ष को ज़मीन दे रहे हैं।