UP Politics: उत्तर प्रदेश विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की मान्यता समाप्त करने के फैसले को चुनौती देने का मामला सामने आया है. सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सपा MLC लाल बिहारी यादव की याचिका पर नोटिस जारी किया गया. लाल बिहारी की तरफ से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि 90 निर्वाचित और 10 मनोनीत सदस्य हैं. प्रश्न यह है कि 10 फीसदी नियम को लेकर किसको आधार माना जाए. जज पीएस नरसिम्हा ने कहा कि मुझे लगता है कि पिछली लोकसभा में यह मुद्दा उठा था और पता चला कि फीसद जरूरी नहीं है, विपक्ष हो तो एक नेता भी होना चाहिए.
मुख्य न्यायधीश ने कहा कि विपक्ष का मतलब केवल सरकार में नहीं है, जब तक कानून द्वारा प्रतिबंधित न हो, हम मामले पर नोटिस जारी कर रहे हैं. लाल बिहारी यादव ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लाल बिहारी यादव की याचिका को खारिज कर दिया था.
2020 में दी गई थी मान्यता
समाजवादी पार्टी के नेता यादव वर्ष 2020 में विधानपरिषद सदस्य बने और 27 मई 2020 को उन्हें विधान परिषद के विरोधी दल के नेता के रूप में मान्यता दी गई. बाद में परिषद में समाजवादी पार्टी के विधायकों की संख्या 10 से कम होने पर सभापति ने उनकी मान्यता समाप्त कर दी थी, जिसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
बता दें कि हाल ही में हुए यूपी MLC के चुनाव में सपा एक भी सीट नहीं जीत सकी. उत्तर प्रदेश विधान परिषद चुनाव की बात करें तो यहां की पांच सीटों में से चार सीटें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने हासिल की. वहीं एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की. विधान परिषद के तीन स्नातक और दो शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों में 30 जनवरी को मतदान हुआ था. इसी के साथ विधानमंडल के उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा हासिल करने की विपक्षी समाजवादी पार्टी की उम्मीदें टूट गई.
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