नई दिल्‍ली, एबीपी गंगा। सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा ओर ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को आदेश जारी किया कि वह आम्रपाली होम बायर्स के पक्ष में फ्लैट का रजिस्ट्रेशन शुरू करे। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों अथॉरिटी को चेतावनी दी कि अगर होम बायर्स को फ्लैट का कब्जा देने की इस प्रक्रिया में उनके अधिकारियों ने थोड़ी सी भी देरी की तो उन्हें जेल भेजा जाएगा।


नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्होंने आम्रपाली के होम बायर्स के मामले में एक स्पेशल सेल गठित किया है, उसमें अधिकारियों की नियुक्ति केवल इसी काम को करने के लिए की गई है। कोर्ट के आदेशों का जल्द पालन होगा।


आम्रपाली मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि हम कागजी शेर नहीं हैं। हम ठोस कार्रवाई करेंगे। हम रचनात्मक काम चाहते हैं। कोर्ट ने नोएडा/ग्रेटर नोएडा ऑथोरिटी से दो-टूक कहा कि कई नोटिस के बावजूद आपने कोई रिस्‍पांस नहीं दिया है। हमें कड़े फैसले लेने पर मजबूर न करें।



आम्रपाली बिल्डर की अधूरी परियोजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए एनबीसीसी ने प्रयास शुरू कर दिए हैं। परियोजनाओं का निर्माण कार्य पूरा कराने के लिए एनबीसीसी बिल्डर की उन संपत्ति का ब्यौरा एकत्र कर रहा है जिससे वह परियोजनाओं के लिए रकम जुटाएगा। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण से बिल्डर से जुड़ी संपत्ति का ब्यौरा मांगा गया है। प्राधिकरण के अधिकारी इसे तैयार करने में जुट गए हैं।


गौरतलब है कि आम्रपाली बिल्डर पर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का 3439.13 करोड़ रुपये बकाया है। प्राधिकरण ने आवासीय परियोजनाओं के लिए बिल्डर को 305.7 एकड़ जमीन आवंटित की थी। इसके एवज में बिल्डर ने प्राधिकरण को मात्र 376.85 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया। किस्तों के साथ बिल्डर को 2193.07 करोड़ रुपये का और भुगतान करना था।



किसानों को वितरित करने के लिए अतिरिक्त मुआवजे के 518.95 करोड़ रुपये का भी बिल्डर ने प्राधिकरण को भुगतान नहीं किया। इससे बिल्डर पर प्राधिकरण का बकाया करीब साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये तक हो चुका है। बिल्डर से अपनी बकाया वसूली के लिए प्राधिकरण की निगाह भी उसकी संपत्ति पर टिकी है।


बता दें कि सबसे ज्यादा अधूरे घर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में हैं, जहां 67 प्रोजेक्ट्स के 1.18 लाख घर अधूरे पड़े हैं, जिनकी कीमत 82.2 हजार करोड़ है. इनमें से लगभग 69 प्रतिशत (83,470 घर) बेचे जा चुके हैं. एनसीआर में 98 प्रतिशत अधूरे प्रोजेक्ट्स सिर्फ नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हैं, वहीं गुरुग्राम, गाजियाबाद जैसे शहरों में यह आंकड़ा कम है।