वाराणसी. बहुचर्चित राम बिहारी चौबे हत्याकांड में बाहुबली बृजेश सिंह और उनके विधायक भतीजे सुशील सिंह की मुश्किलें बढ़ गई है. सुप्रीम कोर्ट ने करीब पांच साल पुराने इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं. पूर्वांचल में हड़कंप मचा देने वाली इस घटना की जांच आईपीएस सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज करेंगे. अदालत ने उन्हें जांच पूरी करने के लिए दो महीने का वक्त दिया है.
बसपा नेता को मारी थी 6 गोलियां
ये घटना 4 दिसंबर 2015 की है. उस सुबह चौबेपुर थानाक्षेत्र के श्रीकंठपुर मोहल्ले गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा था. बाइक सवार दो बदमाशों ने बसपा नेता राम बिहारी चौबे को 6 गोलियां मारी थी. शूटर ने पहले राम बिहारी के पैर छुए और फिर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. वाराणसी में हुई इस घटना ने अपराध की दुनिया से लेकर लखनऊ की सियासत के गलियारों में हड़कंप मचा दिया था. राम बिहारी चौबे माफिया डॉन बृजेश सिंह के बेहद करीबी थे. साल 2012 के चुनाव में सकलडीहा सीट से बसपा के प्रत्याशी भी रहे.
दरअसल, कभी बृजेश सिंह के करीब रहे राम बिहारी चौबे ने 2012 में बसपा से सुशील सिंह का टिकट कटवा कर अपना टिकट फाइनल करवाया. तभी से सुशील सिंह और राम बिहारी चौबे के बीच दुश्मनी की नींव पड़ गई थी. सुशील सिंह को सकलडीहा से बसपा का टिकट नहीं दिया जाना नागवार गुजरा.
सबूतों के अभाव में बीजेपी विधायक बरी
पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की, लेकिन बीजेपी विधायक सुशील सिंह को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया. जांच से चार्जशीट तक इस मामले में आठ विवेचना अधिकारी बदले गए. पीड़ित परिवार का आरोप है कि हत्याकांड में पकड़े गए शूटर नागेंद्र सिंह उर्फ राजू बिहारी ने खुद कबूला कि किसके इशारे पर इस हत्याकांड को अंजाम दिया. जिस अजय मरदहा और राजू बिहारी को हत्याकांड का मुख्य शूटर बताया गया. वह बृजेश सिंह के वफादार हैं.
वहीं वारदात से पहले राम बिहारी चौबे द्वारा प्रशासन को चिट्ठी भेजी गई थी. इस चिट्ठी में उन्होंने अपनी हत्या की आशंका भी जताई थी.
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