नयी दिल्ली: उत्तर प्रदेश में धर्म परिवर्तन पर बनाए गये कानून को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देने वाली याचिकाओं के ट्रांसफर पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतराज किया है. साथ ही नई दिल्ली स्थित सर्वोच्च न्यायालय ने इन ट्रांसफर याचिकाओं को इंकार करते हुये हाईकोर्ट से ही सुनवाई के लिये कहा है.
याचिकाओं को हाईकोर्ट ही सुने
चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन की बेंच ने कहा कि वह चाहेगी कि हाईकोर्ट ही इस पर आदेश सुनाए. बेंच की टिप्पणी का संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने स्थानांतरण याचिका को वापस लेने का फैसला किया.
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी एस नरसिम्हा ने कहा कि हाईकोर्ट और देश की सबसे बड़ी अदालत के सामने मामलों की सुनवाई के दोहराव से बचने के लिए स्थानांतरण याचिका मंजूर की जा सकती है.
हमने सिर्फ नोटिस जारी किया है
बेंच ने कहा, ‘‘हमने नोटिस जारी किया है, इसका ये मतलब नहीं है कि हाई कोर्ट मामले पर फैसला नहीं कर सकता है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमें मामले की सुनवाई से हाई कोर्ट को क्यों रोकना चाहिए. हाई कोर्ट को फैसला सुनाने दीजिए.’’
कोर्ट छह जनवरी को धर्मांतरण से जुड़े विवादों के लिए लव जिहाद जैसे कानून बनाने वाले उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के नए विवादित कानूनों की समीक्षा करने पर सहमत हो गया था.
हालांकि, पीठ ने दो-अलग अलग याचिकाओं पर कानून के विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार किया था और दोनों राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों को नोटिस जारी किया था और चार हफ्ते में जवाब देने को कहा था.
यूपी-उत्तराखंड के कानून को चुनौती दी गई थी
वकील विशाल ठाकरे और अन्य तथा एनजीओ ‘सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस’ द्वारा दाखिल याचिकाओं में ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020’ और उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता कानून, 2018 को चुनौती दी गई है.
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