Shri Krishna Janmabhoomi Case: मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद परिसर का भी बनारस की ज्ञानवापी की तर्ज पर सर्वेक्षण होगा. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में फैसला सुना दिया है. एडवोकेट कमिश्नर वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के जरिए शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वेक्षण कर सकेंगे. 18 दिसंबर को होनेवाली अगली सुनवाई में सर्वेक्षण की रूपरेखा तय होने की उम्मीद है. बनारस और मथुरा की मस्जिद का विवाद काफी पुराना है.


ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद


हिंदू पक्ष का दावा है कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई थी. कुछ लोगों का कहना है कि मस्जिद और मंदिर को अकबर ने 1585 के आसपास दीन-ए-इलाही के तहत बनवाया था. इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब दीन-ए-इलाही के खिलाफ था. इसलिए उसने मंदिर को तोड़ने का आदेश पारित किया. मस्जिद का पहला जिक्र 1883-84 में मिलता है. बीबीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अकबर के वक्त में टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया था. करीब 100 साल बाद मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया. इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई ने साल 1735 में मंदिर का निर्माण करवाया, जो अभी मौजूद है. हिंदू पक्ष की मांग है कि ज्ञानवापी मस्जिद को हटाकर पूजा पाठ की इजाजत दी जाए. जबकि मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद की नीचे हिंदू पक्ष श्रीकृष्ण की जन्मस्थली होने का दावा करता है.


ज्ञानवापी केस से कैसे अलग है विवाद?


पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक का है. श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद की शुरुआत लगभग 350 साल पहले हो गई थी. शाही ईदगाह मस्जिद भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है. हिंदू पक्ष का कहना है कि औरंगजेब के आदेश पर 1670 में मथुरा स्थित केशवदेव मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई. 13.37 एकड़ जमीन में से 11 एकड़ पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर बनी है. 2.37 एकड़ का हिस्सा शाही ईदगाह मस्जिद के कब्जे में है. हिंदू पक्ष पूरी जमीन पर मालिकाना हक का दावा करता है. अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बनारस की ज्ञानवापी की तर्ज पर मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण कराने की इजाजत दे दी है. 


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