सुषमा मेरे लिए....'मदर इंडिया', 'मदर टरेसा' या 'अलादीन की जीनी'
सुषमा स्वराज एक ऐसी राजनेता थीं, जिन्हें देश-दुनिया, पक्ष-विपक्ष, हर किसी से प्यार और सम्मान मिला। सुषमा मेरे लिए वो शख्सियत थीं, जो हर किसी के लिए एक फरिश्ते से कम नहीं थीं। जिनके सामने जब भी किसी ने मदद के हाथ फैलाए, वो हाथ कभी खाली नहीं लौटें।
नई दिल्ली, नैन्सी बाजपेई। उन्हें 'मदर इंडिया' कहे या 'मदर टेरेसा'...या फिर 'अलादीन का जीनी', जो भी थीं वो, मुझे बस इतना मालूम है कि जब भी किसी ने मदद के लिए उनके आगे हाथ फैलाए, वो हाथ कभी खाली नहीं लौटे। वो आंखें कभी निराश नहीं हुईं, जिसने उम्मीद से उनकी तरफ निहारा। वो विश्वास कभी नहीं डगमगाया, जिसने इन्हें फरिश्ता समझा। आज इस खालीपन की पीड़ा कोई गीता और हामिद से पूछे, जिसके सिर से आज दूसरी मां का साया उठ गया। जिस हाथ को उन्होंने थामा था, आज वो साथ छूट गया। वो भले ही, इस दुनिया को अलविदा कह हम सब से दूर चली गईं हैं, लेकिन उनका एहसास हमेशा सभी के दिलों में जिंदा रहेगा।
पाकिस्तान से करीब चार साल पहले भारत लौटी मूक-बधिर युवती गीता याद है आपको। आज उस गीता के आंखों से आंसू नहीं रुक रहे हैं। वो सिसक-सिसक कर रो रही है, मानों कह रही है कि आज एक बार फिर मैं अनाथ हो गईं हूं। एक मां की तरह सुषमा स्वराज उसकी खैरियत पूछा करती थीं, उसकी चिंता करती थीं। अब उसका हालचाल कौन लेगा? उनके गुजर जाने से गीता ने अपनी अभिभावक अपनी मां को खो दिया। याद है आपको गलती से कैसे सीमा लांघकर 20 साल पहले गीता पाकिस्तान पहुंच गई थी, वो सुषमा ही थीं, जिनके प्रयासों से 26 अक्टूबर 2015 को स्वदेश लौट सकी थी। जब सुषमा के गुजर जाने की खबर गीता को लगी, तो टूट गईं और मूक-बधिर गीता की पीड़ा उसकी आंखों से होकर आंसुओं में बहते चले गईं। वो आंसुओं का सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा है। बस यहीं, पूछ रहा कि....आखिर क्यों हम सबको छोड़कर वो चली गईं?
'मेरे दिल में उनके लिए गहरा सम्मान है और रहेगा। वो हमेशा मेरे दिल में जीवित रहेंगी। वो मेरी मां के समान थीं।' ये शब्द हैं मुंबई के रहने वाले हामिद अंसारी के। वहीं, हामिद जो अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए बैगर वीजा पाकिस्तान चले गए थे। 6 साल तक हामिद के घर ईद नहीं मनी थी, लेकिन सुषमा उनके जीवन में मसीहा बनकर आईं। उनकी कोशिशों का ही ये फल था कि हामिद पाकिस्तान से सकुशल भारत लौटे और उनके घर ईद का जश्न मना। आज उनका भी दिल भारी हैं, क्योंकि उन्होंने भी उन्हें खो दिया, जिन्होंने उन्हें नया जीवनदान दिया।
'विश्वास नहीं होता कि इतनी जल्दी वे हमें छोड़ चली गईं, अब तक विश्वास नहीं होता।'.... सरबजीत सिंह की बहन दलबीर कौर भी मेरी और आपकी तरह आज बेहद दुखी हैं, क्योंकि वो चली गईं। याद है कैसे सरबजीत की मौत पर सुषमा स्वराज ने मुखर होकर पाकिस्तान के दरिंदगी पर उसे लताड़ते हुए कहा था कि सरबजीत की हत्या साजिश के तहत की गई, कोई भी सभ्य देश ऐसा नहीं कर सकता है।
ये कोई पहली बार नहीं था, सुषमा ने कई मंचों से आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाई थीं। 2015 में संयुक्त राष्ट्र में दिए उनके उस यादगार भाषण को भी भुलाया नहीं जा सकता। न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की 70वीं महासभा के अधिवेशन में खुलेमंच से सुषमा ने पाकिस्तान को आतंक की फैक्ट्री कहा था। उनके इस भाषण की पूरे विश्व में चर्चा हुई।
"पाकिस्तान जो खुद को आतंकवाद पीड़ित बताता है, दरअसल वो झूठ बोल रहा है। जब तक सीमापार से आतंक की खेती बंद नहीं होती, भारत-पाकिस्तान के बीच कोई बातचीत नहीं हो सकती। भारत हर विवाद का हल वार्ता के माध्यम से चाहता है, लेकिन आतंकवाद और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते। आतंकवाद को छोड़िए और बैठकर बात कीजिए।"
सुषमा बोलीं, "वो राष्ट्र जो आतंकवादियों को आर्थिक मदद देते हैं, उनको सुरक्षित ठिकानें उपलब्ध कराते हैं, उन्हें प्रशिक्षण देते हैं। उन्हें हथियार मुहैया कराते हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ऐसे राष्ट्रों के खिलाफ खड़ा होना पड़ेगा। आतंकवाद को हम मजहब से नहीं जोड़ सकते हैं। आतंकवादी...आतंकवादी होता है, उसका कोई धर्म नहीं होता।" इस मंच पर खुद उस वक्त के तत्कालीन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी बैठे थे और सुषमा के एक-एक शब्द को सुन रहे थे।
संयुक्त राष्ट्र में सितंबर 2016 में दिया उनका भाषण भी उन चुनिंदा भाषणों में शुमार हैं, जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। मैं आज भी जब उस भाषण को सुनती हूं, तो प्रफुल्लित हो उठती हूं। तब उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर मुद्दा उठाने पर उन्हें बलूचिस्तान पर घेरा था।
"दुनिया में ऐसे देश हैं, जो बोते भी हैं आतंकवाद, उगाते भी हैं तो आतंकवाद, बेचते भी हैं आतंकवाद और निर्यात भी करते हैं आतंकवाद। आतंकवादियों को पालना कुछ देशों को शौक बन गया है। ऐसे शौकीन देशों को पहचान करके उनका जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए। ऐसे देशों को चिन्हित करना चाहिए, जहां यूएन द्वारा प्रतिबंधित आतंकी खुलेआम जलसे करते हैं। उन आतंकियों के साथ वो देश भी दोषी हैं, जो उन्हें ऐसा करने देते हैं। ऐसे देशों की विश्व समुदाय में कोई जगह नहीं होनी चाहिए।"
कश्मीर मुद्दा उठाने पर सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान पीएम को खरी-खरी सुनाते हुए कहा था..." जिनके अपने घर शीशे के हो, उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए। जरा एक बार बगल में झांककर देख लें, क्या हो रहा है बलूचिस्तान में। वे खुद वहां क्या कर रहे हैं।"
बतौर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सितंबर 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में दुनिया के सामने एक बार फिर पाकिस्तान को एक्सपोज किया और पाकिस्तान को जमकर लताड़ लगाई थीं। उनका वो भाषण भी मुझे याद है, जब वैश्विक मंच से उन्होंने पूछा था कि आखिर पाकिस्तान की पहचान 'आतंकवाद के निर्यात के कारखाने' की क्यों है, पाकिस्तान के नेता इसपर आत्ममंथन करें?
29 सितंबर, 2018 को संयुक्त राष्ट्र में उनका आखिरी भाषण था, वो भाषण भी उनके ऐतिहासिक भाषणों में से एक था। उन्होंने इस बार भी पाकिस्तान को आतंकवाद पालने के लिए आड़े हाथ लिया। तब भी उन्होंने मुखर होते हुए आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाती थी और कहा था कि आतंकवाद के रोग से बाहर आने के लिए विकसित देशों को दृढ़ता के साथ आवाज उठानी होगी।
आज सुषमा हमारे बीच नहीं रहीं, लेकिन उनका वो साहस, उनका मुखर अंदाज, उनकी दरियादली व उसके स्वभाव को हर भारतीय कभी खूला नहीं सकेगा। ऐसे ही नहीं, उन्हें अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने People’s Person कहा है। वो ऐसी शख्सियत थी कि आज मैं, आप, पूरा देश और पूरा विश्व उन्हें नम आंखों से विदा कर रहा हैं।