चौक की मक्खन मलाई की दिवानी थीं सुषमा स्वराज, अटल के लिए बिना बुलाए पहुंच जाती थीं लखनऊ
सुषमा स्वराज का लखनऊ से गहरा नाता रहा है। वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के चुनाव प्रचार के लिए बिना बुलाए ही लखनऊ पहुंच जाती थीं। उन्हें चौक की मक्खन मलाई बेहद पसंद थीं।
लखनऊ, एबीपी गंगा। बीजेपी की वरिष्ठ नेता और देश की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का लखनऊ से गहरा संबंध रहा है। भले ही, सुषमा ने हरियाणा से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की हो, लेकिन उनका भी देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी की कर्मभूमि लखनऊ से अटूट बंधन रहा है। अटल जी के चुनाव प्रचार के दौरान न सिर्फ वे लखनऊ आती थीं, बल्कि लगभग हर नुक्कड़ पर सभा भी करती थीं। उनका लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि साल 2000 में बीजेपी ने उन्हें यूपी से ही राज्यसभा भेजा और फिर बाद में सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया।
यूं अचानक दुनिया को अलविदा कह सुषमा स्वराज का चले जाना यूपी के भी बीजेपी नेताओं और पदाधिकारियों के लिए बड़ी सियासी क्षति है। सुषमा स्वराज के निधन पर योगी सरकार के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री आशुतोष टंडन कहते हैं, 'सुषमा जी को लखनऊ से खासा लगाव हो गया था। वे अटल जी के चुनाव प्रचार के दौरान लखनऊ आया करती थीं। वे ऐसी नेता थी कि लखनऊ आकर वे पूरे प्रदेश की सियासी नब्ज को भांप जाया करती थीं। उन्हें इस बात का अंदाजा रहता था कि वो प्रत्याशी जीत रहा है, ये प्रत्याशी कमजोर है। हर छोटे-बड़े सियासी समीकरण का उन्हें पूरा अंदाजा हुआ करता था।
अटल जी को भी उनपर इतना विश्वास था कि वे कई-कई दिनों तक अपने चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी उनपर छोड़ देते थे। सुषमा स्वराज को करीब से जानने वाले बीजेपी नेता का कहना है, 'उनकी शख्सियत की ये खासियत रही है कि वे हर हर छोटे-बड़े कार्यकर्ता से बेहद सरलता से पेश आती थीं।'
बता दें कि लखनऊ संसदीय सीट पर सुषमा स्वराज ने सिर्फ अटल के लिए ही नहीं बल्कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालजी टंडन व कई बीजेपी विधायकों के लिए भी प्रचार किया था।
आशुतोष टंडन एक व्याक्या याद करते हुए बताते हैं, 'सुषमा स्वराज जब भी लखनऊ आती थीं, वो मेरे पुराने घर जो चौक में था...वहां जरूर रुकती थीं। उन्हें चौक की मक्खन मलाई बेहद पसंद थी। ये स्वाद उनपर ऐसा चढ़ा कि वे यहां आतीं, तो मक्खन मलाई जरूर खाया करती थीं।' टंडन ने बताया कि सुषमा जी को अलीगंज के कूपरथला में नुकक्ड़ सभा करना पसंद था। जहां बुद्धिजीवियों की संख्या ज्यादा हो, वो वहां सभा या भाषण देना चाहती थीं। अटल जी के चुनाव प्रचार के दौरान तो वे बिना बुलाए ही लखनऊ आ जाया करती थीं और जमकर नुक्कड़ सभा व प्रचार करती थीं।
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