Swami Dipankar Yatra: स्वामी दीपांकर पिछले एक साल साल से भिक्षा यात्रा कर रहे हैं. शुक्रवार को वो मेरठ (Meerut) पहुंचे, जहां उन्होंने लोगों को जातीय बंधन से मुक्त होकर एकजुट होने का आह्वान किया. स्वामी दीपांकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में गांव-गांव घूम रहे हैं वो भिक्षा यात्रा में आटा, चावल और पैसे की भीख नहीं मांगते, बल्कि इनकी यात्रा का उद्देश्य हिंदुओं को एकसूत्र में पिरोना है. इस यात्रा के जरिए वो जगह-जगह हिंदुओं के बीच पहुंचकर भिक्षा स्वरूप उन्हें जातीय बंधन से मुक्त होने का संकल्प मांगते हैं. 


स्वामी दीपांकर ने इस यात्रा को लेकर कहा कि हिंदुओं को एकसूत्र में पिरोना ही भिक्षा यात्रा का मुख्य उद्देश्य है. सरल भाषा में समाज को यह समझाना है कि हम हिंदू हैं और हम किसी भी जाति में विभाजित होकर अपना अस्तित्व समाप्त क्यों कर रहे हैं. हिंदू एकजुट होगा तो ही राष्ट्र सुदृढ़ और समृद्ध बनेगा. इस अभियान का दूसरा उद्देश्य युवाओं को नशे से दूर करना है, क्योंकि यदि युवा नशा मुक्त, जुझारू और सक्रिय होंगे तो समाज व देश उन्नति की राह पर चलेगा. 


जातीय जनगणना का विरोध किया
स्वामी दीपांकर ने बताया कि इस एक साल की भिक्षा यात्रा में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 49 लाख लोग इस अभियान से जुड़े हैं. अब इस यात्रा को देशव्यापी बनाया जाएगा. उन्होंने कहा कि आज कांग्रेस और दूसरे कई दल हिंदुओं को जातियों में बांटकर धोखा कर रहे हैं. 1951 के संसद के औपचारिक भाषण में सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, डॉ. भीमराव आंबेडकर और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि देश में जातिगत जनगणना की जरूरत नहीं है, लेकिन आज राहुल गांधी और नीतीश कुमार जैसे नेता हिंदुओं को जातियों में बांटने का काम कर रहे हैं.


गुरुजी से मिली थी भिक्षा यात्रा की प्रेरणा
10 दिसंबर 1976 को मुजफ्फरनगर में जन्मे स्वामी दीपांकर देवबंद में देवीकुंड रोड स्थित महाकालेश्वर ज्ञान आश्रम के महंत स्व. स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के शिष्य हैं. स्वामी दीपांकर बताते हैं कि वर्ष 1998 में वे देवबंद अपने गुरुजी के पास आए और यहां उनके सानिध्य में साधना और शिक्षा-दीक्षा पूरी की. हिंदू समाज को एक करने की प्रेरणा उन्हें अपने गुरु से ही मिली. इसके बाद उन्होंने ये यात्रा निकालने का संकल्प लिया.


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