Swami Prasad Maurya Resign: लोकसभा चुनाव के पहले यूपी में सियासत एक बार फिर गर्म हो गई है. सपा के राष्ट्रीय महासचिव के पद से पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से कयासों का बाजार गर्म हो गया है. उनके इस कदम ने राजनीतिक गलियारे में एक बार फिर खलबली मचा दी है. हर कोई इसी संशय में है कि कहीं स्वामी प्रसाद मौर्य फिर पैंतरा बदलने की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं. राजनीति के जानकार भी उनके पुराने राजनीतिक करियर में उठा-पठक को देखते हुए संशय में पड़ हैं कि उनका अगला कदम क्या होगा?
दो जनवरी 1954 को प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में जन्मे स्वामी प्रसाद मौर्य कोइरी ओबीसी समुदाय से हैं. इनका ओबीसी वर्ग में बड़ा जनाधार माना जाता है. यूपी के कुशीनगर के पडरौना विधानसभा सीट से साल 2009 में उपचुनाव जीतने के पहले ही मायावती सरकार में वे साल 2007 में मंत्री बन चुके थे. वे बसपा के कद्दवार नेताओं और बसपा सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के खासम-खास माने जाते थे. साल 2009 में आरपीएन सिंह के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद हुए उपचुनाव में उन्हें जीत हासिल हुई. वे पडरौना सीट से बसपा के टिकट पर जीत हासिल करने के बाद बसपा की सरकार में पंचायती राज एवं सहकारिकता मंत्री भी रहे हैं. इसके पहले वे साल 2002 और साल 1996 में डलमउ से दो बार विधायक रहे हैं.
पिछड़ों के बड़े नेता रहे हैं मौर्य
साल 2012 में भी वे पडरौना विधानसभा सीट से बसपा क टिकट पर चुनाव लड़े और जीत हासिल की और सपा की सरकार में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रहे. साल 2017 में उन्होंने बसपा के गिरते जनाधार और हाशिए पर जाता देख पैंतरा बदला और 2017 में भाजपा के साथ हो लिए. भाजपा ने उन्हें पडरौना से टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा. इस चुनाव में उन्होंने बसपा के प्रत्याशी जावेद इकबाल को 40 हजार 552 मतों से हराकर भाजपा की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने.
अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे
साल 2022 विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने बीजेपी को छोड़कर सपा का दामन थाम लिया. सपा ने उन्हें फाजिलनगर विधानसभा सीट से टिकट दिया लेकिन बीजेपी सुरेन्द्र कुमार कुशवाहा से हार मिली. इसके बाद वे लगातार भाजपा की सरकार के खिलाफ हमलावर रह. रामचरितमानस और भगवान को लेकर दिए बयानों को लेकर वो काफ़ी विवादों में भी रहे. उनकी बयानबाजी भाजपा के साथ ही आमजन को भी रास नहीं आई. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य के पैंतरा बदलने से सियासी गलियारे में खलबली मचना स्वाभाविक है.
स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी डा. संघमित्रा मौर्य बदायूं से भाजपा की सांसद हैं. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि वे एक बार फिर टूटते इंडिया गठबंधन की नाव पर सवार होकर अपने राजनीतिक करियर को हाशिए पर लाना नहीं चाहते हैं. सू्त्रों की मानें तो वे अपनी बेटी और बेटे के साथ खुद भी सबसे बड़ी पार्टी से चुनाव लड़ने का ख्वाब पाले हुए हैं. लेकिन, क्या उनके सपा में रहते हुए सख्त तेवर से उन्हें झटका लग सकता है या फिर उन्हें कोई बड़ा मौक़ा मिल सकता है ये कहना फ़िलहाल मुश्किल है.