लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में तगड़ा झटका लगा है. पार्टी के नेता और यूपी सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा में महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया. उनके इस्तीफे के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि वह पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे सकते हैं. हालांकि अभी तक उन्होंने ऐसे कोई संकेत नहीं दिए हैं और कहा है कि वह पार्टी में रहकर आगे की रणनीतियों पर काम करते रहेंगे.


बीते कुछ समय से धर्म संबंधी विवादित बयानों के चलते चर्चा में आए स्वामी प्रसाद मौर्य ने हाल ही में समाजवादी पार्टी के नेता मनोज पांडेय को 'विक्षिप्त' तक करार दे दिया था. माना जाता है कि सपा में ही कई नेता स्वामी के बयानों से खुश नहीं थे. खुद अखिलेश यादव ने भी एक प्रेस वार्ता में कहा था कि मैंने उन्हें (स्वामी प्रसाद मौर्य) से बात कर उन्हें विवादित बातें न करने के निर्देश दिए हैं. हालांकि स्वामी के बयानों का दौर जारी रहा.


कभी बहुजन समाज पार्टी में रहते हुए विधानपरिषद में नेता सदन रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने पार्टी सुप्रीमो और यूपी की पूर्व सीएम मायावती पर टिकट के बदले पैसे लेने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी. 


पिछड़ी जाति से आने वाले स्वामी का जन्म 2 जनवरी 1954 को प्रतापगढ़ स्थित चकवड़ में हुआ था. स्वामी के सियासी सफर की बात करें तो वह बतौर विधायक पहली बार साल 1996 में विधानसभा पहुंचे. इससे पहले वह साल 1991 से सन् 95 तक जनता दल में रहे.


स्वामी ने साल 1980 के दशक से राजनीति शुरू की. वह प्रयागराज (तब इलाहाबाद में) युवा लोकदल के संयोजक थे. साल 1981 में वह युवा लोकदल उत्तर प्रदेश की कार्य समिति के सदस्य भी रहे. फिर साल 1982-1985 के दौरान युवा लोकदल प्रदेश महामंत्री, थे. इसी दौरान वह लोकदल की प्रदेश कार्यसमिति सदस्य भी थे. फिर साल 1986-89 तक वह लोकदल के प्रदेश महामंत्री रहे. इसके बाद सन् 1989-1991 तक लोकदल के मुख्य महासचिव रहे. इतना ही नहीं स्वामी साल 1991-1995 तक जनता दल के प्रदेश महासचिव भी रहे. 


1996 में आए सपा में 
इसके बाद साल 1996 में वह बसपा में आए फिर यहीं से उनके सियासत की असली कहानी शुरू हुई. बसपा में वह प्रदेश महामंत्री और उपाध्यक्ष की हैसियत से आए और फिर डालमऊ से विधायक चुने गए. 


साल 1997 में ही वह बसपा-बीजेपी गठबंधन की सरकार में मंत्री बने. इसके बाद साल 2001 में वह नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किए गए. फिर साल 2002 में वह पडरौना से विधायक चुने गए. इस दौरान साल 2002-2003 में बसपा सरकार में मंत्री बने. बसपा सरकार गिरने के बाद वह मायावती ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी. साल 2007 में जब बसपा ने यूपी में प्रचंड बहुमत हासिल किया तब स्वामी फिर मंत्री बने और साल 2012 तक पद पर बने रहे.


बनाई अपनी पार्टी और फिर बीजेपी में गए
साल 2012 में बसपा चुनाव हार गई हालांकि स्वामी अपना चुनाव जीतकर नेता प्रतिपक्ष बने लेकन साल 2016 में उन्हें बसपा के साथ अपना दो दशक पुराना रिश्ता खत्म कर दिया. उन्होंने लोकतांत्रिक बहुजन मंच बनाया.


वहीं साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और फिर योगी सरकार में मंत्री बने. हालांकि जनवरी 2022 में उन्होंने बीजेपी और यूपी कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया.  साल 2022 के चुनाव के पहले वह अखिलेश यादव की अगुवाई वाली सपा में आ गए लेकिन अपना ही चुनाव हार गए. बाद में सपा ने उन्हें विधान परिषद भेजा.