प्रयागराज: यूपी में कुछ हफ़्तों पहले हुए पंचायत चुनावों में ड्यूटी करते वक़्त कोरोना से संक्रमित होकर अपनी जान गंवाने वाले टीचर्स की मुश्किलें मौत के बाद भी ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही हैं. खाली सीटों को भरने के लिए आज हो रहे पंचायत उपचुनाव में कुछ ऐसे टीचर्स की भी ड्यूटी लगा दी गई, जो पिछली बार की ड्यूटी करते हुए कोरोना की चपेट में आकर महीने -डेढ़ महीने पहले ही दुनिया को अलविदा कह चुके हैं. पंचायत चुनाव के चक्कर में जान गंवाने वाले टीचर्स के परिवार वालों को अभी तक मुआवजे या आर्थिक मदद के नाम पर फूटी कौड़ी तक नहीं मिली है, ऐसे में लापरवाही की वजह से मृतकों की दोबारा ड्यूटी लगाना उनके परिजनों के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है.
बहाना बना रहे हैं जिम्मेदार
ज़िम्मेदार अफसरान इस मामले में कभी कम्प्यूटर की गलती बताकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं तो कभी इसे छोटी व मामूली बात ठहराकर कैमरे पर आधिकारिक तौर पर कुछ भी बोलने से बचने की कोशिश कर रहे हैं. सरकारी अमला अपने बचाव में यह दलील भी दे रहा है कि विभाग में ऐसे शिक्षकों की मौत का रिकार्ड दर्ज नहीं होने की वजह से भी ऐसा हुआ है, लेकिन उसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं कि महकमा जब मौत वाले दिन से आगे की सेलरी काटकर बची हुई तनख्वाह का भुगतान किया गया तो उसके बाद वह रिकार्ड न होने की बहानेबाजी कैसे कर सकता है.
मौत के बाद भी लगा दी ड्यूटी
संगम नगरी प्रयागराज में शहर से तकरीबन पचास किलोमीटर दूर बहरिया ब्लाक के छाता इलाके के प्राइमरी स्कूल के टीचर नंदलाल राम अब इस दुनिया में नहीं हैं. वह वैश्विक महामारी कोरोना की चपेट में आकर पंद्रह दिनों तक कानपुर के अस्पताल में मौत से मुकाबला करते हुए दस मई को ज़िंदगी की जंग हार गए थे. नंदलाल की ड्यूटी प्रयागराज में पंद्रह अप्रैल को हुए पहले चरण के पंचायत चुनाव में लगी थी. ड्यूटी के दौरान वह संक्रमित हुए. अगले दिन से ही तबीयत बिगड़ने लगी. दो दिन बाद ही उनकी ड्यूटी कोविड सेंटर में लगा दी गई. तबीयत ठीक नहीं होने और कोरोना के लक्षण के बावजूद अफसरों के दबाव में उन्होंने कोविड सेंटर में भी दो दिन ड्यूटी की. बाद में हालत ज़्यादा बिगड़ी तो अस्पतालों के चक्कर काटने लगे. जिले के किसी भी अस्पताल में बेड नहीं मिला तो परिवार के लोग कानपुर के सरकारी अस्पताल ले गए. इस दौरान अधिकारी कोविड सेंटर में ड्यूटी के लिए भेजने का लगातार दबाव बनाते रहे. परिवार वालों से फोन पर कहा जाता था कि यह ड्यूटी से बचने की बहानेबाजी है.
अबतक नहीं मिला मुआवजा
अस्पताल में भर्ती होने की सूचना देने के बावजूद कोविड सेंटर में ड्यूटी न करने की सज़ा के तौर पर सैलरी के भुगतान पर रोक लगा दी गई. उनका फेफड़ा अस्सी से नब्बे फीसदी तक संक्रमित हो चुका था. आखिरकार दस मई को कानपुर के ही कोविड अस्पताल में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. मौत की खबर और सैलरी भुगतान पर रोक का मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो परिवार वालों से जानकारी लेकर बकाया तनख्वाह एकाउंट में डाल दी गई. मौत के बाद से विभाग समेत सरकारी महकमों का कोई भी व्यक्ति उनके यहां झांकने तक नहीं आया. परिवार को अभी तक आर्थिक मदद और मुआवजे के नाम पर फूटी कौड़ी तक नसीब नहीं हुई है. इलाज से लेकर अंतिम संस्कार और बाद के खर्चों में परिवार तकरीबन ढाई लाख रूपये का कर्जदार हो गया है. पत्नी आशा दो बच्चों के साथ रहती हैं.
नंदलाल जब हालत गंभीर होने पर अस्पताल में भर्ती होने के लिए जा रहे थे तो उनके ससुर भी प्रयागराज आए थे. दामाद की हालत का सदमा वह सह नहीं पाए और हर्ट अटैक से उनकी भी मौत हो गई. परिवार अभी नंदलाल राम की मौत के सदमे से उबर भी नहीं पाया कि विभाग ने इस दुनिया में न होने के बावजूद बारह जून को हुए उपचुनाव में फिर से उनकी ड्यूटी लगा दी. जिस जगह नंदलाल की ड्यूटी लगाई गई, वहां के पीठासीन अधिकारी ने पोलिंग पार्टी की रवानगी के वक़्त उनके मोबाइल फोन जो कि अब पत्नी आशा के पास रहता है, उस पर काल कर पहले तो खूब खरी खोटी सुनाई. कार्रवाई की धमकी तक दे डाली, लेकिन असलियत जानकर चुप्पी साधी. पत्नी आशा और साढ़ू अरुण कुमार विद्यार्थी के मुताबिक़ यह बहुत बड़ी लापरवाही है. ड्यूटी लगने की जानकारी मिलने के बाद उन्हें काफी दुख हुआ. इस घटना ने उनके दर्द को और बढ़ा दिया है. परिवार का साफ़ कहना है कि यह मौत के बाद मज़ाक उड़ाने जैसा है.
प्रयागराज के प्रेमशंकर की मौत के बाद भी लगी ड्यूटी
पंचायत चुनाव में ड्यूटी करते वक़्त कोरोना की चपेट में आकर कुछ दिनों बाद जान गंवाने वाले टीचर्स की आगे के चुनाव में ड्यूटी लगाए जाने का नंदलाल राम का मामला अकेला नहीं है. प्रयागराज के बहरिया ब्लाक के आदमपुर गांव के प्राइमरी स्कूल के सहायक अध्यापक डा० प्रेम शंकर मिश्र के साथ भी ऐसा ही हुआ. प्रेम शंकर ने भी पंद्रह अप्रैल को हुए पहले चरण के पंचायत चुनाव में ड्यूटी की और संक्रमित हो गए. दो दिन बाद ही उनकी हालत बिगड़ने लगी, लेकिन किसी भी अस्पताल ने भर्ती नहीं किया. आक्सीजन लेवल गिरकर चालीस हो गया तो बमुश्किल शहर के एसआरएन हॉस्पिटल के कोविड वार्ड में जगह मिल सकी. अस्पताल में इलाज के दौरान ही बाइस अप्रैल की शाम को उन्होंने दम तोड़ दिया. डा० प्रेम शंकर की मौत का ग़म उनके बुजुर्ग पिता नहीं सह सके और सदमे में उनकी भी जान हफ्ते भर में ही चली गई. विभाग ने मौत से एक दिन पहले तक की तनख्वाह एकाउंट में ट्रांसफर कर दी.
परिवार के आंसू सूखे भी नहीं थे कि चौथे चरण के पंचायत चुनाव के लिए डा० प्रेम शंकर की ड्यूटी मौत के बाद भी फतेहपुर जिले में लगा दी गई. तमाम अधिकारी लगातार फोन कर ड्यूटी पर जाने का दबाव भी बनाते रहे. प्रेम शंकर मिश्र के परिवार को भी अभी तक किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है. मौत के बाद की विभागीय औपचारिकताओं के लिए भी उन्हें दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं. ऐसे में मौत के बाद भी पंचायत चुनाव में डयूटी लगाए जाने से परिवार के लोग बेहद दुखी और नाराज़ दोनों हैं. उनका कहना है कि यह ड्यूटी तकलीफ देने और ग़म को बढ़ाने वाली है. डा० प्रेम शंकर के परिवार में पत्नी संध्या- बूढ़ी मां और ग्यारहवीं क्लास में पढ़ने वाली इकलौती बेटी है. परिवार का कहना है कि बाइस तारीख को देर शाम मौत के बाद अफसरों को सिर्फ इक्कीस तारीख तक की ही सेलरी देने की बात जब याद रह सकती है तो फिर ड्यूटी लगाते वक़्त उनके इस दुनिया में नहीं होने की बात को कैसे भूला जा सकता है.
बात तक करने को तैयार नहीं अफसर
इस बड़ी लापरवाही पर हमने प्रयागराज के डीएम -सीडीओ और जिले के बीएसए व दूसरे अफसरों से बात करनी चाही. किसी से या तो मुलाकात नहीं हुई, या फिर उसने छोटा और मामूली मामला बताते हुए कैमरे पर कुछ भी बोलने से साफ़ इंकार कर दिया तो कोई दो दिनों की छुट्टी का बहाना करके बच निकला. जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी संजय कुशवाहा तो अपने दफ्तर में मिल भी गए, लेकिन उन्हें यह मामला बेहद मामूली और छोटा लगा, लिहाज़ा उन्होंने कैमरे पर औपचारिक बयान देने से साफ़ मना कर दिया. एक अन्य अधिकारी ने फोन पर हुई बातचीत में इसे कम्प्यूटर की गलती बताकर अपनी सफाई पेश की. कहा गया कि कम्प्यूटर पर डाली गई लिस्ट को अपडेट नहीं किये जाने की वजह से ऐसा हुआ.
शिक्षक नेताओं ने भी इसे शर्मनाक और संवेनहीनता वाली गलती करार दी है. प्रयागराज में प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष देवेंद्र श्रीवस्तव का कहना है कि यह पीड़ित परिवारों के उत्पीड़न की तरह है. ऐसे मामले में सफाई देकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता. ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी ही चाहिए.
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