मथुरा. ठाकुर बांके बिहारी आज 515 वर्ष के हो गए हैं. आज ठाकुर बांके बिहारी का प्राकट्य उत्सव मनाया जा रहा है. वृंदावन में प्राकट्य उत्सव की धूम देखी जा रही है. यहां लोगों में गजब का उत्साह देखने को मिल रहा है. बांके बिहारी की प्राकट्य स्थली निधिवन में भव्य सजावट की गई है. सुबह होते ही ठाकुर बांके बिहारी जी का पंचामृत से अभिषेक किया गया. अब निधिवन से विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर तक भव्य शोभायात्रा निकाली जायेगी. बता दें कि यहीं 515 वर्ष पहले ठाकुरजी की मूर्ति प्रकट हुई थी.
बांके बिहारी की मूर्ति के पीछे क्या है मान्यता
वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है. मंदिर के विशाल चौक में ऊंचे जगमोहन के पीछे निर्मित गर्भग्रह में भव्य सिंहासन पर ठाकुर बांकेबिहारी विराजते हैं. कहा जाता है कि संगीत शिरोमणि हरिदास के अनुरोध पर बांके बिहारी की मूर्ति प्रकट हुई थी. हरिदास के शिष्य विट्ठल विपुलदेव एवं बिहारिन दास ने एक बार उनसे पूछा था कि जिस निकुंज के सामने आप संगीत साधना करते हैं उसका क्या रहस्य है.
स्वामी हरिदास ने कहा था कि सब समाज को बुलाओ. सब समाज वहां जुट गया तो हरिदास ने स्वर लहरियों को छेड़ते हुए गाया- "माई री सहज जोरी प्रगट भई जु रंग की गौर श्याम घन दामिनी जैसे" इसके बाद प्रकाश का धीरे-धीरे बढ़ता गया और उस प्रकाश के मध्य परस्पर हाथों में हाथ लिए मुस्कुराते हुए स्यामा-कुंजबिहारी प्रकट हुए. हरिदास की प्रार्थना पर यह युगल जोड़ी एकाकार हो गई. आज श्रद्धालु जिन बांके बिहारी के दर्शन करते हैं, वह प्रिया-प्रीतम का ही युगल स्वरूप है.
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