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लता से हुई अनबन हुई तो रफी साहब से हुआ झगड़ा...बॉलीवुड के निराले संगीतकार के अनसुने किस्से
73 फिल्मों में संगीत देने वाले ओमकार प्रसाद मदनगोपाल नैयर को हिंदी फिल्मों का मोहम्मद अली कहा जाता था। फिल्म संगीत के रसिया उनकी हर धुन में एक खास किस्म का पंच देने की अदा पर मर मिटते थे।
- कहीं उनको 'रिदम किंग' कहा जाता था तो कहीं 'ताल का बादशाह।' ओपी नैयर को छोड़ कर किसी भी भारतीय संगीतकार ने लता मंगेश्कर की आवाज़ का इस्तेमाल किए बगैर इतना सुरीला संगीत नहीं दिया है। ओ.पी. नैयर की जिंदगी बड़ी ही रोचक रही। कहा जाता है कि जब तक वह जिंदा रहे उन्होंने अपनी शर्तो पर ही जिंदगी जी। आज हम आपको बताने जा रहे हैं ओ.पी. नैयर के अनसुने किस्से।
- 16 जनवरी, 1926 को लाहौर में जन्मे ओ पी नैय्यर की संगीत में गहरी दिलचस्पी थी। उनके परिवार को उनका संगीत से जुड़ाव पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने घर छोड़ा और वो आकाशवाणी के एक केंद्र से जुड़ गए। उन्होंने शुरुआती दौर उस समय के मशहूर गायक सी एच आत्मा के लिए 'प्रीतम आन मिलो' गाने की धुन का निर्माण किया। इस गाने को लोगों ने खूब पसंद किया था।
- अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने वाले ओ पी नैय्यर को हिन्दी सिनेमा का एक अहम संगीत निर्देशक माना जाता है। ओ.पी. नैय्यर हिंदी सिनेमा के उन दिग्गज संगीतकारों में से एक थे जिन्होंने 1950 और 60 के दशक में न सिर्फ अपनी अलग पहचान बनाई बल्कि कई कलाकारों के कॅरियर को नई ऊंचाई दी।
- ओ पी नैयर अपने काम के साथ-साथ अपने स्वभाव के लिए काफी जाने जाते थे। बचपन में ओ पी नैयर ने अपने पिता से काफी मार खाई थी। इसका असर हमेशा उनके व्यक्तित्व में रहा और उनमें विद्रोही स्वभाव घर कर गया। इसी वजह से उन्होंने अपने मन का काम करने के लिए घर भी छोड़ दिया था।
- ओ पी नैयर ने साल 1952 में फिल्म आसमान से अपना करियर शुरू किया था। लेकिन उनको राष्ट्रीय पहचान मिली थी गुरुदत्त की फिल्मों आरपार, मिस्टर एंड मिसेज़ 55, सीआई डी और तुम सा नहीं देखा से। अपनी किस्मत बदलने के इरादे से वो मुंबई आए। यहां पर उन्होंने काफी फिल्मों में संगीत दिया लेकिन उनकी शुरुआती फिल्में कुछ खास कमाल नहीं कर पाई। फिर क्या था ओ पी नैयर ने अमृतसर वापस जाने का इरादा कर लिया था। लेकिन उनकी बीच में मुलाकात हुई गुरुदत्त से। जो वो फिल्म 'आर-पार' बनाने के बारे में सोच रहे थे। इस फिल्म के संगीत के लिए का मौका नैयर को मिला। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
- ओ.पी. नैय्यर अपने समय के सबसे महंगे संगीत निर्देशक माने जाते थे। कहा तो यह भी जाता है कि उनकी फीस फिल्म के हीरो और हीरोइनों से अधिक होती थी। वो उन दिनों के सबसे महंगे संगीतकार होने के बावजूद उनकी मांग सबसे अधिक थी। 1950 में एक फिल्म में संगीत देने के लिए उन्होंने 1 लाख रुपये लिए थे।
- ओ.पी नैयर का अपना ही अनोखा मिजाज था कि उन्हें कभी लता मंगेशकर की आवाज अपने संगीत के लिए मुफीद नहीं लगी। बात उन दिनों की है जब फिल्म “आसमान” की शूटिंग हो रही थी। फिल्म में एक गीत को फिल्म की सहनायिका पर फिल्माया जाना था और इस गाने की आवाज होनी थी लता जी की। लता मांगेशकर को ये बात रास नहीं आई कि उनका गीत किसी सहनायिका पर फिल्माया जाए। उस समय लता जी एक बहुत बड़ी गायिका मानी जाती थीं। लता ने ओ पी के लिए इस गीत को गाने से साफ इनकार कर दिया और जब नैय्यर साहब तक ये बात पहुंची, तो उन्होंने भी एक दृढ़ निश्चय किया, कि वो अपने कॅरियर में कभी भी लता के साथ काम नही करेंगे।
- 60 के दशक में एक बार ओपी नैयर की मोहम्मद रफी के साथ भी अनबन हो गई थी और कुछ समय के लिए उन्होंने रफी से कोई गाना नहीं गवाया। नैयर साहब वक्त के पाबंद थे। एक दफा नैयर को एक गाना रफी के साथ रिकॉर्ड करना था लेकिन उस दिन रफी करीब एक घंटा देर से पहुंचे। यह बात नैयर को पसंद नहीं आई और इसी बात से उनका रफी के साथ मनमुटाव हो गया। दोनों के बीच यह झगड़ा करीब तीन साल तक चला। फिर उसके बाद एक दिन मोहम्मद रफी नैयर के घर पहुंच गए और नैयर ने उन्हें देखते ही भावुक होकर गले लगा लिया, जिसके बाद दोनों फिर से एक साथ हो गए।
- 1950 के दशक में आल इंडिया रोडियो ने ओ पी नैयर को उनके गानों के लिए बैन कर दिया था। जिसके बाद से लंबे समय तक लोग उनके गाने रेडियो पर नहीं सुन सके।
- ओ पी नैयर से जुड़ी एक रोचक बात कुछ ही लोगों को पता होगी कि वो होमियोपैथी के बहुत ही अच्छे जानकार थे। नब्बे के दशक में उनके पास काफी मरीज अपना इलाज कराने के लिए भी आते थे।
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