नोएडा, बलराम पांडे। उत्तर प्रदेश की सबसे हाईटेक सिटी नोएडा लोगों को बेहतर भविष्य के सपने दिखाती है और अपनी ओर खींचती है। यहां के एजुकेशनल हब में बड़े रसूख वालों के बच्चे मोटी रकम देकर अपना भविष्य बनाने आते हैं। वहीं अन्य प्रदेशों से बड़ी संख्या में मजदूर यहां बन रही गगनचुंबी इमारतों में मजदूरी करके रोजी रोटी कमाने आते हैं लेकिन जब आपदा आती है तब प्रशासन की प्राथमिकताओं में मजदूर हाशिए पर चला जाता है। ऐसी ही दो तस्वीरें नोएडा में देखने को मिली हैं, जो इस हकीकत को बयां कर रही है।


पहली तस्वीर है जिले के लैंडमार्क कहे जाने वाले एक्सपो मार्ट की जहां पर बसों का जमावड़ा है। यह बसें लॉक डाउन के दौरान नोएडा में फंसे उन छात्रों को उनकी घर छोड़ने के लिए शासन द्वारा बुलाई गई हैं।



इनको सैनिटाइज किया जा रहा है, छात्रों की जांच की जा रही है उनको सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए बसों में बैठाकर उनकी शहर के लिए रवाना किया जा रहा है। शासन का यह प्रयास सचमुच सराहनीय लगता है।



अब एक और तस्वीर से रूबरू हो जाएं, तस्वीर है सेक्टर 147 के पास नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे की जहां सैकड़ो की संख्या में महिला और पुरुष अपना सामान उठाकर सड़कों पर पैदल ही अपनी मंजिल की ओर चले जा रहे हैं। इनके साथ छोटे-छोटे इनके बच्चे भी हैं इनके दृढ़ निश्चय को आंधी और तूफान भी नहीं डिगा पाया है और इनकी मंजिल है मध्यप्रदेश में जहां ये गांव के रहने वाले हैं।



लॉकडाउन के दौरान कई ऐसी तस्वीरें और खबरें आई और भविष्य में आती रहेगी लेकिन सडकों पर चल रही सैकड़ों लोगों की भीड़ प्रशासन के अधिकारियों यह दिखाई नहीं देते क्योंकि यह रसूख वाले नहीं हैं।


भारत में 90 फीसदी कामगार असंगठित क्षेत्र से हैं। इनकी संख्या करीब 42 करोड़ है। इनमें से लाखों मजदूर ऐसे हैं जो हर दिन ना कमाएं तो उनके भूखे मरने की नौबत आ सकती है। ये मजदूर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, अहमदाबाद, नोएडा, गुड़गांव जैसे बड़े शहरों में अपने घर से दूर काम करने आते हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस महामारी के चलते भारत में 40 करोड़ लोग गरीबी के शिकार हो सकते हैं।