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अमिताभ बच्चन को पहली बार में रिजेक्ट करने के बाद मनमोहन देसाई खुद उनके पास इस फिल्म के लिए गए

70 के दशक में जाने-माने डायरेक्टर मनमोहन देसाई की सुपरहिट फिल्म 'अमर अकबर एंथोनी' ने दर्शकों का दिल खूब जीती था

70 के दशक में जाने-माने डायरेक्टर मनमोहन देसाई की सुपरहिट फिल्म 'अमर अकबर एंथोनी' ने दर्शकों का दिल खूब जीती था. अमिताभ बच्चन, विनोंद खन्ना और ऋषि कपूर जैसे सितारों के अभिनय से सजी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार कमाई की थी. इसी के चलते आज की इस स्पेशल स्टोरी में हम आपको इसी फिल्म के बारे में कुछ दिलचस्प बाते बताने वाले हैं.

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फिल्म ‘अमर अकबर एंथोनी’ साल 1975 में ही बनकर तैयार हो गई थी, लेकिन इसे 1977 में रिलीज किया गया था. दरअसल, उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जो इमरजेंसी लगाई थी, उसकी वजह से फिल्मों की रिलीज को आगे बढ़ा दिया गया था. इसीलिए ये फिल्म बनने के दो साल बाद रिलीज की गई थी. इस फिल्म में पहली बार मनमोहान देसाई और अमिताभ बच्चन साथ में काम कर रहे थे. जब पहली बार मनमोहन देसाई अमिताभ से पहली बार मिले थे उस वक्त अमिताभ ‘ जंजीर’ में काम कर रहे थे. लेकिन अमिताभ, मनमोहन देसाई को कुछ ज्यादा प्रभावित नहीं कर सके. पहली मीटिंग खत्म हुई ही थी कि मनमोहन देसाई ने ताना मार दिया कि बेकार में मेरा वक्त खराब किया, ये लड़का कुछ खास नहीं. सलीम खान ने ही इस फिल्म के लिए भी अमिताभ की सिफारिश की थी और वो भी इस मीटिंग में शामिल थे, मनमोहन की बात सुनकर सलीन खान ने तब कहा कि -‘एक दिन तुम खुद इस आम से दिखने वाले लड़के को साइन करने जाओगे. फिर ‘जंजीर’ रिलीज हुई और सुपरहिट साबित हुई, जिसके बाद मनमोहन देसाई अमिताभ के पास गए और फिल्म ‘अमर अकबर एंथोनी’ की कहानी सुनाई, तब ये कहानी उन्हें कुछ खास नहीं.

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अमिताभ के बाद मनमोहन देसाई ने ऋषि कपूर से फिल्म के लिए बात की मगर कहानी सुनने के बाद उन्होंने भी मना कर दिया था. इसी तरह विनोद खन्ना को भी अपना रोल ठीक नहीं लगा, लेकिन मनमोहन देसाई ने किसी तरह इस फिल्म के लिए अमिताभ, वनोद और ऋषि को साइन कर ही लिया. जब फिल्म बनकर तैयार हुई तो विनोद खन्ना नाराज हो गए क्योंकि फिल्म में उनका रोल लंबा नहीं था. बड़ी मुश्किल से मनमोहन देसाई ने विनोद खन्ना को समझाया. फिल्म रिलीज हुई तो दर्शकों ने तीन भाईयों की इस फिल्म को बेहद प्यार दिया.

फिल्म ‘अमर अकबर एंथोनी’ की कहानी तीन भाइयों की है जो बचपन में ही एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं, फिर तीनों की परवरिश अलग- अलग मजहबों में होती है. इस फिल्म में असली हिंदुस्तान की झलक लोगों को देखने मिली. कई हफ्तों तक ये फिल्म एक ही शहर के अलग- अलग सिनेमाघरों में चलती रही थी. इतना ही नहीं अकेले मुंबई के नौ सिनेमाघरों में मनमोहन देसाई की इस फिल्म ने सिल्वर जुबली मनाई थी. लेकिन क्या आप जानते है कि एक वक्त ऐसा भी आ गया था कि मनमोहन देसाई इस फिल्म बंद करने वाले थे. वहीं जिस दिन फिल्म रिलीज हुई तो मनमोहन को तेज बुखार हो गया और उनका बुखार तब उतरा जब सिनेमाघरों के बाहर ‘अमर अकबर एंथोनी’ के नाम हाउसफुल के बोर्ड टंगने लगे.

Vinod जो मनमोहन देसाई अमिताभ को फिल्म में लेना नहीं चाहते थे उन्होंने ‘अमर अकबर एंथोनी’ की सक्सेस पार्टी में अमिताभ से कहा कि ‘अब तुम मुझे छोड़कर जाते हो तो कह नहीं सकता, मगर मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाने वाल.’ मनमोहन देसाई अपनी बात पर आखिर तक कायम भी रहे. ‘अमर अकबर एंथोनी’ के बाद उन्होंने ‘सुहाग’, ‘नसीब’, ‘कुली’ ‘देशप्रेमी’, ‘मर्द’ और ‘गंगा जमना सरस्वती’ जैसी फिल्में बनाई जिनमें अमिताभ बच्चन ही हीरो रहे.

फिल्म ‘अमर अकबर एंथोनी’ के सुपरहिट होने के पीछे अच्छे एक्टर्स के साथ-साथ इसके संगीत का भी बहुत बड़ा योगदान रहा. फिल्म में आनंद बक्शी के लिखे गीतों को लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने अपनी धुनों से सजाया और लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, मुकेश और किशोर कुमार की आवाज के जादू ने इन गीतों को अमर बना दिया.

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