प्रयागराज: लाइट एंड साउंड की इस हाईटेक रामलीला ने कोरोना काल में भी जमा रखा है रंग, लगाए गए हैं फिल्मों सरीखे सेट
कोरोना महामारी का असर रामलीला के आयोजन पर भी पड़ा है. लेकिन प्रयागराज में बावजूद इसके इस रामलीला की लोकप्रियता में कहीं से कमी नहीं आई है. यही नहीं, इसके मंचन में आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर इसके प्रसंग सजीव हो उठते हैं.
प्रयागराज. संगम के शहर प्रयागराज में यूं तो पचास से ज़्यादा जगहों पर रामलीलाओं का आयोजन होता है, लेकिन इनमे से श्री कटरा रामलीला कमेटी का मंचन सबसे भव्य व आकर्षक आयोजनों में एक होता है. लाइट एंड साउंड की टेक्नीक के सहारे होने वाली श्री कटरा कमेटी की रामलीला को देश की कुछ चुनिंदा हाईटेक रामलीलाओं में शुमार किया जाता है. यह रामलीला डबल स्टोरी यानी दो मंजिला वाले डबल स्टेज पर होती है. इसमें नई तकनीकों का इस्तेमाल कर कई यांत्रिक पात्रों को हवा में उड़ते हुए दिखाया जाता है तो गीत -संगीत और नृत्य की आकर्षक प्रस्तुति बरबस ही रामानंद सागर के रामायण सीरियल की याद दिला देता है. लाइट एंड साउंड के सहारे बेहद हाईटेक अंदाज़ में होने वाली इस रामलीला को कई संस्थाओं द्वारा सर्वश्रेष्ठ रामलीला के खिताब से नवाज़ा भी जा चुका है.
भव्य स्टेज बनता है
यहां की रामलीला ढाई सौ फिट चौड़े डबल स्टोरी के स्टेज पर होती है. यहां का मंच इतना बड़ा होता है कि एक बार में आठ से दस प्रसंगों का मंचन किया जा सकता है. डबल स्टोरी स्टेज के अलावा तीन सौ फिट की ऊंचाई पर कैलाश पर्वत का सेट अलग से तैयार किया जाता है, जिस पर भगवान शिव माता पार्वती को पूरे रामायण का प्रसंग सुनाते हैं. गोस्वामी तुलसीदास के लिए स्थाई तौर पर यहां पहाड़नुमा एक अलग ही विशाल सेट तैयार किया जाता है.
आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल
यहां की अनूठी रामलीला में तकरीबन सवा सौ कलाकार महीने भर पहले से ही रिहर्सल शुरू कर देते हैं, जबकि सौ से ज़्यादा टेक्नीशियन व दूसरे लोग रात दिन काम कर इसे भव्य स्वरुप प्रदान करते हैं. यहां की रामलीला इतनी भव्य व आकर्षक होती है कि इसके आयोजन में हर साल तकरीबन डेढ़ से दो करोड़ रूपये खर्च होते हैं. महंगे कॉस्ट्यूम, हाइटेक स्वरुप, आकर्षक लाइटिंग और दूरदर्शन व थियेटर से जुड़े हुए मंझे हुए कलाकारों के साथ ही गीत -संगीत के बीच होने वाली प्रस्तुति यहां की रामलीला को बाकी जगहों से बेहद अलग व आकर्षक बनाती है. यहां की रामलीला को देखने के बाद ऐसा लगता है, मानो जैसे रामानंद सागर की रामायण का प्रसारण हो रहा हो. राम -रावण युद्ध के प्रसंगों के मंचन के लिए मणिपुरी मार्शल आर्ट में पारंगत कलाकारों को लगाया जाता है. इसी तरह से दूसरे प्रसंग भी दिखाए जाते हैं.
बेहद लोकप्रिय रामलीला
मान्यताओं के मुताबिक़ प्रयागराज की यह रामलीला गोस्वामी तुलसीदास के समय से हो रही है, लेकिन मौजूदा जगह पर इस नाम से यह पिछले करीब तीन सौ सालों से हो रही है. तकनीक के हाईटेक इस्तेमाल और लाइट एंड साउंड के ज़रिये होने वाले आकर्षक प्रस्तुतीकरण की वजह से श्री कटरा कमेटी की रामलीला बेहद लोकप्रिय है. इसे देखने के लिए रोज़ाना हजारों की तादात में लोग इकट्ठे होते हैं. दूसरी तमाम रामलीलाओं में जहां दर्शकों का अभाव होता है, वहीं यहां की रामलीला में इंट्री पाने के लिए लोगों को खासी जद्दोजेहद करनी पड़ती है. यहां की रामलीला का मंचन इतने आकर्षक अंदाज़ में होता है कि दर्शक अपनी सुध बुध खोकर पात्रों व किरदारों में डूब जाते हैं.
नहीं होता है रावण का दहन
यहां की रामलीला इस मायने में भी बेहद अलग व ख़ास है क्योंकि बाकी जगहों पर रामलीलाओं की शुरुआत राम जन्म से होती है, लेकिन यहां की रामलीला में सबसे पहले तीनों लोकों के विजेता लंकाधिपति रावण का जन्म होता है. जन्म पर बधाइयों व मंगल गीतों के प्रसंगों का मंचन होता है. कमेटी का मानना है कि यहां के लोग किसी दूसरी वजह से नहीं बल्कि रावण की पूजा उसकी विद्वता और शिव भक्त होने की वजह से की जाती है. यहां अंतिम दिन रावण का दहन नहीं होता, बल्कि उसे प्रतीकात्मक तौर पर तीर मारकर छोड़ दिया जाता है.
कोरोना महामारी का असर
हालांकि इस बार की रामलीला पर कोरोना की महामारी का असर साफ़ तौर पर देखने को मिल रहा है. कलाकारों की संख्या एक तिहाई कम कर दी गई है. रिहर्सल सिर्फ बारह दिन ही हो सका है. बजट में भी कटौती हुई है तो साथ ही दर्शकों की संख्या एकदम सीमित कर दी गई है. इस बार सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने के लिए सिर्फ डेढ़ सौ कुर्सियां लगाई गईं हैं. लोग घर बैठे यहां की रामलीला को देख सकें, इसके लिए फेसबुक और यूट्यूब पर इसका प्रसारण भी किया जाता है. कटरा रामलीला कमेटी के अध्यक्ष सुधीर गुप्ता उर्फ़ कक्कू और महामंत्री गोपाल बाबू जायसवाल के मुताबिक़ परम्पराओं को जीवित रखने के लिए इस बार विपरीत हालात में भी रामलीला का आयोजन किया जा रहा है.
रिहर्सल के लिये मिला कम समय
रामलीला में राम का किरदार निभाने वाले मिथिलेश पांडेय, सीता बनने वाली मनीषा गुप्ता, रावण का रोल करने वाले श्वेतांक कुमार और अरुंधती बनी आयुषी सिंह का कहना है कि रिहर्सल के लिए बेहद कम समय मिलने के बावजूद बेहतरीन परफॉर्मेंस करना उनके लिए बड़ी चुनौती है, लेकिन इसके बावजूद लोगों से मिलने वाले स्नेह व तारीफों ने उन कलाकारों की काफी हौसला अफजाई की है. रामलीला के डायरेक्टर सुबोध सिंह कोविड काल में रामलीला कराना कतई किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन फिर भी कमेटी ने कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए इस बार भी अपने काम को बखूबी अंजाम दिया है.
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