एंटरटेनमेंट डेस्क, एबीपी गंगा। कल्याणजी, ये नाम जाना पहचाना है, लेकिन जब भी कोई इसे लेता है तो ये कहना भी नहीं भूलता, कन्याणजी-आनंदीजी वाले। जी हां, संगीत की दुनिया का ये वो नाम है जो अपने संगीत की तरह ही सदाबहार है। फर्क है तो बस इतना कि जीवन के 80 बसंत देख चुके आनंदजी अब कल्याणजी के बिना कुछ अधूरा महसूस करते हैं। दोनों ने एक से बढ़कर एक गानों का संगीत दिया। तो चालिए हम आपको इस जोड़ी में से कल्याणजी की जिंदगी से जुड़े किस्सो के बारे में बताते हैं।



गुजरात के कच्छ के एक गांव कुंदरोड़ी से आये हुए संगीतकार भाइयों कल्याणजी वीरजी शाह का जन्म साल 1928 में और आनंदजी वीरजी शाह का जन्म साल 1933 में हुआ। इनके पिता वीरजी शाह गुजरात से बम्बई में आकर बस गए थे। बम्बई में वीरजी शाह ने अपनी छोटी-सी पंसारी की दूकान खोली थी। उनकी दुकान से एक ग्राहक रोज सामान लेकर जाता लेकिन पैसे नहीं चुका पाता था। वीरजी ने एक दिन उससे उधार चुकाने के लिए कहा तो उस शख्स ने उनके दोनों बेटों कल्याणजी और आनंदजी को संगीत सिखाने की जिम्मेदारी ली। उस दौरान सिनेमा की दुनिया में मराठी और गुजराती संस्कृति से प्रभावित संगीत का दौर जारी था।



पिछली शताब्दी में सत्तर के दशक में के. ए. यानि की कल्याणजी-आनन्दजी की जोड़ी ने फिल्म संगीत की दुनिया में लोकप्रियता और सफलता पानी शुरू की थी, जिस तरह चालीस के दशक में हुस्नलाल-भगतराम और पचास के दशक में शंकर-जयकिशन की जोड़ियों ने पाई थी। कल्याणजी-आनंदजी की गाने रुचि काफी बढ़ गई। एक समय वो था जब दोनों भाई संगीत की दुनिया में राज करने लगे थे।



कल्याणजी ने एक 'कल्याणजी वीरजी एंड पार्टी' के नाम से आर्केस्ट्रा कंपनी खोली। दोनों भाई अलग-अलग शहरों में जाकर परफॉर्मेंस दिया करते थे और इसी आर्केस्ट्रा कंपनी के खोलते ही उन दोनों को फिल्मों में गाना गाने के मौके मिलने शुरु हो गए।



कल्याणजी-आनंदजी को अपनी मंजिल तक पहुंचने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कल्याणजी-आनंदजी ने करीब 250 फिल्मों में अपना संगीत दिया है। अपने सुरों की धुनों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देने वाले कल्याणजी साल 2000 में 72 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया।



सच्चा-झूठा, दाता, पूरब और पश्चिम, कोरा-कागज में दोनों भाईयों की जोड़ी ने इतिहास रच डाला। दुल्हन चली, मेरी प्यारी बहनिया बनेगी, कोई जो तुम्हारा दिल तोड़ दे कुछ ऐसे गाने हैं जो सदाबहार हैं और अब भी इन्हें गुनगुनाया जाता है।