वाराणसी: ठंडई की चुस्की के बाद बनारसी पान मुंह में घुल जाए तो बनारस में होने का अहसास खुद-ब-खुद हो जाता है। अरे भाई कुछ और नहीं सोचिएगा ये भोले बाबा का प्रसाद ही है। मस्ती और हुल्लड़बाजी के बीच काशी बम-बम नजर आती है। मुस्‍कराहट के साथ रस से भरी गाली का अंजाद ऐसा निराला है कि मुंह से निकल ही जाता है ई हौ राजा बनारस। घाट-मंदिर और गलियों से लेकर श्‍मशान तक बनारस का अपना जीवन चक्र है तो चलिए हमारे साथ बनारस के रंग में सराबोर होने के लिए...लेकिन जरा संभलकर...क्योंकि ई हौ राजा बनारस।


भारत की विरासत को संजोये हुए है काशी


वाराणसी को बनारस और काशी के नाम से भी जाना जाता है। यह शहर दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है। यहां जीवन चक्र लगातार आगे बढ़ता रहता है। काशी भारत की विरासत को संजोये हुए है और प्राचीन काल से ही यहां की संस्कृति, दर्शन, परंपराओं और आध्यात्मिक आचरण का एक आदर्श केंद्र रही है।


आश्चर्य से भरी है काशी


बनारस पवित्र गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। गंगा की दो सहायक नदियां वरुणा और अस्सी के नाम पर इसका नाम वाराणसी पड़ा। काशी- पवित्र शहर, गंगा- पवित्र नदी और शिव- सर्वोच्च देवता, ये तीनों वाराणसी को एक विशिष्ट स्थान बना देते हैं। वाराणसी सांस्कृतिक और पवित्र गतिविधियों का केंद्र है। विशेष रूप से धर्म, दर्शन, योग, आयुर्वेद, ज्योतिष, और संगीत के क्षेत्र में यह अद्वितीय स्थान रखता है। बनारसी रेशमी साड़ी की दुनिया भर में अपनी अलग पहचान है। काशी का हर कोना आश्चर्यों से भरा है। जितना अधिक आप इसे देखते हैं, उतना ही इसमें खोते जाते हैं।


बनारस का है अपना मिजाज


बनारस के लोगों का मानना है कि यहां का रस हमेशा बना रहता है। यहां मुर्दा भी गाजे-बाजे के साथ चलता है और बारात भी। सही मायनों में काशी ने ही गीता का मर्म समझा है ‘दुःख और सुख दोनों एक सामान हैं’। किसी की परवाह क्यों करना “खाओ-पियो मस्त रहो” यही है काशी का मूल मंत्र। बनारस का अपना अल्हड़पन है, पान और ठंडई की मस्ती के साथ चलिए अब आपको इस निराले शहर की कुछ चुनिंदा जगहों की सैर करवाते हैं।


ये है सफर बनारसी


जो भी बनारस आता है इसे ओढ़ता, पहनता और बिछाता है और यहीं का होकर रह जाता है। बनारस में आकर सबसे पहले शुरुआत होती है रिवर टूर से यानी बोट की सवारी। रिवर टूर के दौरान ही आप बनारस के घाटों का अनुभव कर सकते हैं। गंगा नदी के तट पर करीब 100 से भी अधिक घाट बने हुए हैं लेकिन तीन प्रमुख घाट हैं जिसमें सबसे पहले हम आपको अस्सी घाट लेकर चलते हैं।


अस्सी घाट


गंगा और अस्सी नदी के संगम पर स्थित अस्सी घाट वाराणसी के सबसे दक्षिण में स्थित घाटों में से एक है। यह वो स्थान है जहां लंबे समय के लिए आए विदेशी छात्र और पर्यटक आते हैं। यह एक कंप्लीट एनर्जेटिक घाट है जहां एनर्जी से भरपूर यंगस्टर भी आते हैं। हैं। यह वही अस्सी घाट है जहां तुलसी दास जी ने रामचरित मानस जैसे ग्रंथ की रचना की थी। यहां प्रत्येक शाम आरती का आयोजन किया जाता है। कई श्रद्धालु इस आरती को इसे देखने के लिए नौका को प्राथमिकता देते हैं।


केदार घाट


केदारेश्वर शिव का प्रसिद्ध मंदिर होने के कारण ही इस घाट का नाम केदारघाट पड़ा है। केदारेश्वर शिव मंदिर को हिमालय में स्थित केदारनाथ मंदिर का प्रतिरूप माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन-पूजन से हिमालय के केदारनाथ के दर्शन-पूजन का फल प्राप्त होता है। कुमारस्वामी मठ के द्वारा 18वीं शताब्दी में घाट का पक्का निर्माण कराया गया था। सन् 1958 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का पुनः निर्माण कराया गया था। यहां भगवान केदार के दिव्य दर्शन का लाभ उठाइए और भूख लगे तो पास ही में सोनारपुरा की गलियों में जाइए और मस्त कचौरियां खाइए।


दशाश्वमेध घाट


सबसे पुराने और महत्वपूर्ण घाटों में एक दशाश्वमेध घाट वाराणसी के सबसे ओजस्वी घाटों में से एक है। इस घाट को लेकर दो पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। पहली यह है कि इस घाट का निर्माण भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव के स्वागत के लिए करवाया था, दूसरी पौराणिक कथा है कि अश्वमेघ यज्ञ ब्रहमा जी ने यहीं किया था। संध्याकाल में गंगा आरती के दौरान दशाश्वमेध घाट जीवंत हो उठता है। गंगा आरती को एक विस्तृत समारोह का रूप दिया जाता है। दूर-दूर से देश-विदेश से लोग यहां गंगा आरती में शामिल होने आते हैं।


सारनाथ


वाराणसी से 10 किमी की दूरी पर स्थित सारनाथ एक महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है। बोध गया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान बुद्ध ने यहां अपना पहला धर्मोपदेश दिया था। उनका पहला धर्मोपदेश महा धर्मचक्रप्रवर्तन के रूप में पवित्र है,जिसका अर्थ है 'धर्म चक्र की गति'। भगवान बुद्ध के समय इस क्षेत्र को हिरणों के रहने वाले घने जंगल के कारण इसे ऋषिपट्टन या इसिपटन और मृगदावा कहा जाता था। अपने शासन काल में सम्राट अशोक भगवान बुद्ध के प्रेम और शांति के संदेश का प्रचार प्रसार करने सारनाथ आए और यहां ईसा पूर्व 249 में  एक स्तूप का निर्माण करवाया। आज सारनाथ बौद्ध पंथ के मुख्य स्थलों में से एक है, जो दुनिया भर से अनुयायियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। शहर मठ, स्तूप और एक संग्रहालय के साथ सुशोभित है। सिर्फ बौद्ध धर्म में ही नहीं हिंदू और जैन धर्म के हिसाब से भी सारनाथ का काफी महत्व है। यहां तक की भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ भी यहीं की अनुकृति है। यहां के स्तूप और प्राचीन मंदिर को देखकर आपको इतिहास के पन्ने टटोलने का मन करेगा।


वट थाई सारनाथ


अपने सफर को आगे बढ़ाते हुए अब हम आ पहुंचे हैं सारनाथ के थाई बुद्ध विहार में। यहां भगवान बुद्ध की बनी एक ऊंची सी बेहद खूबसूरत प्रतिमा है जिसका निर्माण कार्य साल 2011 में पूरी हुआ था। 80 फिट ऊंची बुद्ध की प्रतिमा को चुनार के पत्थरों द्वारा सैकड़ों कारीगरों ने मिलकर 5 साल में तैयार किया था। जब भी आप सारनाथ आएं तो यहां जरूर आएं। यहां भगवान बुद्ध से जुड़ी और भी बहुत सी चीजें हैं जिन्हें देखने के बाद यहां से आपका जाने का मन ही नहीं करेगा। एक प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल होने के नाते पूरे विश्व से यहां पर्यटक आते हैं। खासकर जापान, थाईलैंड और चीन जैसे बौद्ध धर्म प्रधान देशों से। वट थाई मंदिर का निर्माण एक थाई समुदाय द्वारा करवाया गया है। मंदिर की खासियत इसकी थाई वास्तुशिल्प शैली है। यह मंदिर अपने आप में काफी रंगीन है और थाई बौद्ध महंतों के द्वारा ही संचालित किया जाता है।


वीवर्स विलेज


बनारस शहर साड़ियों के लिए भी बहुत फेमस है। यहां की साड़ियां देश-दुनिया में बनारसी साड़ियों के नाम से प्रसिद्ध हैं। शादी हो या कोई भी फंक्शन महिलाओं की पहली पसंद बनारसी साड़ियां ही होती हैं। बनारस में अगर आप सही मार्केट या सही दुकान पर नहीं गए तो आप अच्छी बनारसी साड़ी खरीदने से चूक जाएंगे। हम आपको बनारस के ऐसे ही कुछ प्रसिद्ध बाजारों और दुकानों के बारे में बताएंगे जहां आपको सबसे सुंदर, सही दाम में बनारसी साड़ियां मिलेंगी।


मेहता इंटरनेशनल सिल्क सेंटर


कैंट में स्थित बनारस की इस पुरानी दुकान में सिल्क का सबसे अच्छा मटिरियल मिलेगा। आप यहां ना सिर्फ साड़ियों को खरीदने के लिए देख सकते हैं बल्कि साड़ियों को बनते हुए या बुनते हुए भी देख सकते हैं। बनारस के फेमस बाजारों में से एक है विश्वनाथ लेन मार्केट। कम लोग ही जानते हैं कि इन्हीं दुकानों पर बहुत अच्छे और सस्ते रेट पर साटन और सिल्क की साड़ियां भी मिल जाती हैं।


यहां है बनारसी साड़ियों का खजाना


महेशपुर में स्थित इस मार्केट को शहर के सबसे बड़े कपड़ा बाजार के नाम से जाना जाता है। बनारस रेलवे स्टेशन से सिर्फ कुछ मिनटों की दूरी पर स्थित इस मार्केट में आपको बनारसी साड़ियों की भरमार मिलेगी। गोदौलिया की ये मार्केट स्ट्रीट शॉपिंग के लिए भी बेस्ट मानी जाती है। यहां की किसी भी दुकान में आपको बनारसी साड़ी का बेस्ट कलेक्शन मिलेगा। सिर्फ साड़ी ही नहीं, इस मार्केट में जरी और सिल्क के भी खूबसूरत नमूने देखने को मिलते हैं।


इंटरनेशल म्यूजिक सेंटर


अब बात संगीत की और इसके लिए हम रुख करते हैं इंटरनेशनल म्यूजिक सेंटर की तरफ जोकि दशाश्वमेध रोड की खालिसपुरा की गलियों में है। यहां पर आज भी इंडियन क्लासिकल म्यूजिक को सिखाने की परंपरा जारी है। 1980 से यह संस्था अपने स्वरूप में आई थी। यहां की सबसे खास बात यह है कि यहां हर रविवार तबला की क्लासेज बिल्कुल फ्री में दी जाती हैं, ताकि आगे संगीत की नई पौध है वो विकसित किया जा सके। आप जब भी काशी आएं, बुधवार या शनिवार को यहां अपनी बुकिंग जरूर कराएं और इंडियन क्लासिकल म्यूजिक का मजा लें।


घाट पर मसाज


घाट-घाट का पानी तो आपने सुना ही होगा लेकिन घाट-घाट पर मसाज केवल आपको बनारस में ही देखने को मिलेगा। घाट पर आइए और खूब मजा लीजिए इस देसी मसाज का। देसी मसाज के साथ ठाठ का अनुभव तो आपको घाट पर ही मिलेगा। लेकिन इससे अलग अगर आप स्क्रब, फेशियल और क्वालिटी स्पा चाहते हैं तो स्टेशन से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर आपको मिलेगा एरिस्टो स्पा, आप यहां लग्जीरियस एक्सपीरियंस के लिए आ सकते हैं। यहां आइए और फिर मजे से रिलैक्स कीजिए।


योगा इन बनारस


भारत को विश्व का योग गुरु कहा जाता है और उसमें भी काशी का अपना एक विशेष महत्व है। योग तन, मन और अंतर आत्मा को शुद्ध करने का काम करता है। विश्वनाथ गली से सटी शकरकंद गली में योगा ट्रेनिंग सेंटर है। बनारस में स्थित यह योगा ट्रेनिंग सेंटर अपने आपने आप खास है, क्योंकि सुनील कुमार जी यहां के संस्थापक हैं और योग गुरु हैं। सुनील कुमार जी 1992 से लेकर अब तक कई सारे स्टूडेंट्स को योग सीखा चुके हैं। जिसमें भारतीय भी हैं और विदेशी भी। इनकी खास बात है यह है कि INTEGRATED YOGA, WHICH IS THE BLEND OF YOGAS.


काशी विश्वनाथ मंदिर


अब चलते हैं बनारस के प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर में। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख श्री काशी विश्वनाथ के दरबार में शिवरात्रि पर आस्था का जन सैलाब उमड़ता है। सावन भर इनके दर्शन-पूजन और अभिषेक के लिए देश ही नहीं दुनिया भर के लोग काशी आते हैं। यहां वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजते हैं। यह अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है। काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं। इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है। बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान है। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में हर काशी में रहने वालों को पेट भरती हैं। वहीं, बाबा मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। बाबा को इसीलिए तारकेश्वर भी कहते हैं।


गंगा आरती


दशाश्वमेध घाट बनारस का ऐतिहासिक घाट है। शाम होते ही यहां की छटा बदल जाती है। विश्व में सबसे प्रसिद्ध गंगा आरती यहीं होती है। काशी नगरी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्व से अटूट रिश्ता है। यह हमेशा से पर्यटकों को लुभाता रहा है। इस शहर की गलियों में संस्कृति और परम्परा कूट-कूट कर भरी हुई है। शिव के त्रिशूल पर बसी काशी देवाधिदेव महादेव को अत्यंत प्रिय है। काशी में सबसे फेमस दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती है। जिसे देखने के लिए विदेशी सैलानी भी आते हैं। वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर होने वाली इस भव्य गंगा आरती की शुरुआत 1991 से हुई थी। यह आरती हरिद्वार में हो रही आरती का जीता जागता उदाहरण है। हरिद्वार की परंपरा को काशी ने पूरी तरह आत्मसात किया है। सबसे पहले हरिद्वार में इस आरती की शुरूआत हुई। उस आरती को देखते हुए काशी के लोग भी 1991 में बनारस के घाट पर आरती की शुरूआत की। दशाश्वमेध घाट गंगा के किनारे काशी के हर घाट का अपना अलग महत्व है। सबसे महत्वपूर्ण घाट दशाश्वमेध घाट है। इस घाट को सर्वप्रथम बाजीराव पेशवा ने बनवाया। यह घाट पंचतीर्थों में एक है। मणिकर्णिका घाट पर मणिकर्णिका कुंड अवस्थित है। मान्यता है कि यहां चिता कभी नहीं बुझती। जहां से गुजरते हुए बरबस संसार के सबसे बड़े सच से साक्षात्कार होता है। पंचगंगा घाट पुराणों के मुताबिक, गंगा, यमुना, सरस्वती, किरण व धूतपाया नदियों का गुप्त संगम है। इसलिए इसे पंचगंगा घाट भी कहा जाता


रामनगर फोर्ट


मुगल स्थापत्य में बनाया गए रामनगर किला से गंगा नदी और घाट का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। 1750 में राजा बलवंत सिंह ने इसका निर्माण करवाया था। दशहरा के दौरान इस किले को खूब सजाया जाता है और रामलीला का आयोजन भी किया जाता है।