प्रयागराज, मोहम्मद मोइन। समूची दुनिया में दशहरे पर भले ही जगह-जगह रावण के पुतले जलाए जाने की परम्परा हो, लेकिन संगम नगरी प्रयागराज में दशहरा उत्सव की शुरुआत तीनो लोकों के विजेता लंकाधिपति रावण की पूजा-अर्चना और भव्य शोभा यात्रा के साथ होती है। हाथी-घोड़े, बैंड पार्टियों व आकर्षक लाइट्स के बीच महाराजा रावण की शोभा यात्रा जब उनके कुनबे और मायावी सेना के साथ प्रयागराज की सड़कों पर निकलती है, तो उसके स्वागत में जनसैलाब उमड़ पड़ता है। इस साल शोभा यात्रा में शामिल डेढ़ दर्जन से ज्यादा झांकियां लोगों के खास आकर्षण का केंद्र रहीं। रावण बारात के नाम से निकलने वाली इस शोभा यात्रा के साथ ही प्रयागराज में दशहरा उत्सव शुरू हो गया है। प्रयागराज में लंकाधिपति रावण को उनकी विद्वता के कारण पूजा जाता है और कटरा की रामलीला कमेटी दशहरे के दिन न तो रावण का दहन करती है और न ही उनके पुतले का वध।
दशहरे की शुरुआत के मौके पर संगम नगरी प्रयागराज में तीनों लोकों के विजेता लंकाधिपति रावण की शाही सवारी इस साल भी परम्परागत तरीके से पूरी सज-धज और भव्यता के साथ निकाली गयी। ऋषि भारद्वाज के मंदिर से निकाली गई शाही सवारी से पहले प्राचीन शिव मंदिर में महाराजा रावण की आरती और पूजा-अर्चना कर उनके जयकारे लगाए गए। रावण बारात के नाम से मशहूर इस अनूठी शोभा यात्रा में दशानन हाथी पर रखे चांदी के विशालकाय हौदे पर सवार होकर श्रद्धालुओं को दर्शन दे रहे थे तो उनकी पत्नी महारानी मंदोदरी व परिवार के दूसरे लोग घोडों व अलग-अलग रथों पर विराजमान दिखाई दिए। दशानन की सवारी के ठीक आगे उनकी मायावी सेना अनोखे करतब दिखाते हुए चल रही थी। फूलों की बारिश, विजय धुन बजाती बैंड पार्टियां और आकर्षक लाइट्स के बीच महाराजा रावण और उनके परिवारवालों का जगह-जगह ऐसा भव्य स्वागत किया गया मानो दशानन एक बार फिर से तीनों लोकों को जीतकर लंका वापस लौटे हों।
विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती के उदगम स्थल और ऋषि भारद्वाज की नगरी प्रयागराज में महाराजा रावण को उनकी विद्वता के कारण पूजा जाता है। यहां दशहरे के दिन रावण का पुतला भी नहीं जलाया जाता। दशहरा उत्सव शुरू होने पर यहां राम का नाम लेने वाले का नाक-कान काटकर शीश पिलाने का प्रतीकात्मक नारा भी लगाया जाता है। शोभा यात्रा से पहले रावण को घंटों सजाया जाता है। यही वजह है कि यहां रावण बनने वाले कलाकार खुद को बेहद भाग्यशाली मानते हैं। दशहरे पर रावण की पूजा करने वाले श्री कटरा रामलीला कमेटी के लोग खुद को ऋषि भारद्वाज का वंशज मानते हैं। रावण पूजा के साथ दशहरा उत्सव शुरू करने की यह परम्परा यहां सदियों पुरानी है।
दशानन की दो किलोमीटर लंबी इस अनूठी व भव्य शोभा यात्रा में महाराजा रावण के साथ ही उनके गुरु भगवान भोले शंकर और किशन कन्हैया के जीवन पर आधारित तमाम झांकियां भी शामिल रहती हैं। इन झांकियों की सजावट और इन पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम इसे शोभा यात्रा का ख़ास आकर्षण बना देते हैं। इस साल महाराजा रावण के कुनबे के साथ ही लंकापति रावण के गुरु भगवान शिव व दूसरे देवी -देवताओं की झाकियां भी निकाली गईं। डेढ़ दर्ज़न के करीब निकली इन झांकियों को देखने के लिए प्रयागराज की सड़कों पर इतनी भीड़ उमड़ी है कि कहीं तिल रखने की भी जगह नहीं रही। इस अनूठी शोभा यात्रा और परम्परा को देखने के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आते हैं।
महाराजा रावण की यह बारात प्रयागराज की श्री कटरा रामलीला कमेटी द्वारा मुनि भारद्वाज के आश्रम से निकाली जाती है। लंकाधिपति रावण की इस अनूठी व भव्य बारात के साथ ही प्रयागराज दशहरा उत्सव की शुरुआत हो जाती है। इस उत्सव के तहत एक पखवारे तक शहर के अलग-अलग मोहल्लों इस शोभा यात्रा की तरह ही भव्य राम दल व हनुमान दल निकाले जाते हैं, जो अपनी भव्यता की वजह से समूची दुनिया में मशहूर हैं। देश के दूसरे हिस्सों में दशहरे की शुरुआत नवरात्रि से होती है लेकिन संगम नगरी प्रयागराज में दशहरा उत्सव पितृ पक्ष में ही शुरू हो जाता है।