2014 के आंकड़े
दल             प्रत्याशी         मत मिले      फीसदी
भाजपा       पंकज चौधरी     471542         44.4
बसपा        काशी नाथ         231084       21.8
सपा           अखिलेश           213974         20.1
कांग्रेस          हर्षवर्धन         57193           05.3


महारजगंज, एबीपी गंगा।  पूर्वी उत्तर प्रदेश के पिछड़े क्षेत्रों में शामिल महाराजगंज एक संसदीय क्षेत्र है, यह प्रदेश के 80 लोकसभा में शामिल है, इस संसदीय सीट की संख्या 63 है। महाकाव्य काल में यह क्षेत्र करपथ के नाम से जाना जाता था, जो कौशल राज्य का एक अंग हुआ करता था। इतिहासकार मानते हैं कि इस क्षेत्र पर राज करने वाले प्राचीनतम सम्राट इक्ष्वाकु थे, जिनकी राजधानी अयोध्या थी। इक्ष्वाकु के बाद यह राजवंश अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया।


18वीं सदी के शुरुआत में यह क्षेत्र अवध के सूबे के गोरखपुर सरकार का अंग था। इस समय से लेकर अवध में नवाबी शासन की स्थापना के समय तक यहां पर वास्तविक प्रभुत्व राजपूत राजाओं के हाथों में था। आजादी की लड़ाई में भी महाराजगंज का योगदान रहा है।


राजनीतिक पृष्ठभूमि
महाराजगंज का संसदीय इतिहास बेहद शानदार रहा है और इस सीट पर संसद में पहुंचने की शुरुआत देश के महान शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता शिब्बन लाल सक्सेना ने की। वह संविधान सभा के सदस्य भी रहे. उन्हें 'महराजंगज के मसीहा' के रूप में जाना जाता है। कांग्रेस में सम्मान नहीं मिलने पर उन्होंने पार्टी छोड़ दी और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 1952 में लोकसभा चुनाव जीत लिया। इसके बाद 1957 में भी लोकसभा चुनाव जीता। उन्होंने तीसरी बार 1971 के चुनाव में जीत हासिल की थी।
1990 के बाद की राजनीति की बात की जाए तो इसके बाद बीजेपी ने लगातार इस पर अपनी पकड़ बनाए रखी है। 90 के बाद 7 बार यहां पर लोकसभा चुनाव हुए जिसमें 5 बार बीजेपी ने जीत हासिल की। 1991, 1996 और 1998 में चुनाव जीतकर पंकज ने चुनावी जीत की हैट्रिक लगाई थी। इसके बाद वह 2004 और 2014 में चुनाव जीतने में कामयाब रहे।


पिछली बार महराजगंज सीट पर बसपा दूसरे नंबर पर थी, लेकिन समाजवादी पार्टी के साथ समझौते में इस सीट से सपा चुनाव मैदान में है। सपा ने फिर से अखिलेश सिंह को टिकट दिया है। कांग्रेस ने भी यहां से सवर्ण प्रत्याशी सुप्रिया श्रीनेत को मैदान में उतारकर लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है।


अगर पिछले चुनाव में सपा-बसपा को जो वोट मिले थे। वो वोट एक साथ गठबंधन प्रत्याशी को मिल गए और अखिलेश सिंह कुछ स्वजातीय वोट को अपने पक्ष में करने में कामयाब हो गए तो गठबंधन प्रत्याशी को जीत मिल सकती है।


सामाजिक तानाबाना
महाराजगंज संसदीय सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र (फरेंदा, नौतनवां, सिसवा, महाराजगंज और पनियारा) आते हैं। फरेंदा विधानसभा क्षेत्र पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है और उसके टिकट पर बजरंग बहादुर सिंह विधायक हैं, जिन्होंने कांग्रेस के वीरेंद्र चौधरी को 2,354 मतों के अंतर से हराया था। नौतनवां विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार अमनमणि त्रिपाठी विधायक हैं और उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के कुंवर कौशल किशोर को 32,256 मतों के अंतर से हराया था। अमनमणि त्रिपाठी के पिता अमरमणि त्रिपाठी पूर्वांचल के एक विवादित नेता रहे हैं और उन पर कई आपराधिक केस चल रहे हैं।


सिसवा विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रेम सागर पटेल विधायक हैं और उन्होंने पिछले चुनाव में सपा के शिवेंद्र सिंह को 68,186 मतों से हराया था। जबकि अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व महाराजगंज सीट पर बीजेपी के जय मंगल कनौजिया ने बहुजन समाज पार्टी के निर्मेश मंगल को 68,361 मतों के अंतर से हराया था। पनियरा विधानसभा क्षेत्र पर बीजेपी के ज्ञानेंद्र सिंह ने बसपा के गणेश शंकर पांडे को 67,491 मतों के अंतर से हराकर यह सीट हासिल की थी। पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम देखें तो इन 5 विधानसभा सीटों पर 4 में बीजेपी का कब्जा है, जबकि एक पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की है। 4 में से 3 पर बीजेपी की जीत का अंतर 67 हजार से ज्यादा है।


उत्तर प्रदेश के पिछड़े जिलों में शुमार किए जाने वाले महाराजगंज जिले की आबादी 26.8 लाख है और यह प्रदेश का 34वां सबसे घनी आबादी वाला जिला है। यहां पर कुल आबादी में 13.8 लाख (51 फीसदी) पुरुष और 13 लाख (49 फीसदी) महिलाएं हैं। जातिगत आधार पर देखा जाए तो यहां पर सामान्य वर्ग की 81 फीसदी आबादी रहती है तो 18 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति और 1 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है।


धर्म के आधार पर देखा जाए तो यहां पर 81.8 फीसदी आबादी हिंदुओं की है, जबकि 17.1 फीसदी आबादी मुस्लिमों की रहती है। लिंगानुपात के मामले में यहां की स्थिति संतोषजनक नहीं है। जिले में प्रति हजार पुरुषों पर 943 महिलाएं हैं। साक्षरता के मामले में यह जिला काफी पीछे है। यहां की करीब 63 फीसदी आबादी साक्षर है जिसमें 76 फीसदी पुरुष और 49 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं।


2014 का जनादेश
2014 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा गया जिसमें भाजपा को उत्तर प्रदेश में बंपर कामयाबी मिली थी। महाराजगंज लोकसभा सीट पर 23 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा के पंकज चौधरी और बसपा के काशीनाथ शुक्ला के बीच रहा।
पंकज को कुल मिले मत में 44.65 फीसदी यानी 4,71,542 वोट हासिल हुए तो बसपा के काशीनाथ को 2,31,084 मत (21.88 फीसदी) मिले। इस तरह से पंकज ने यह चुनावी जंग 2,40,458 मतों के अंतर से जीत हासिल की। तीसरे स्थान पर सपा के अखिलेश रहे। कांग्रेस के हर्षवर्धन चौथे स्थान पर रहे।


सांसद का रिपोर्ट कार्ड
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पंकज चौधरी ने जीत हासिल की थी। वह गोरखपुर के रहने वाले हैं और 5 बार लोकसभा में पहुंचने में कामयाब रहे। 54 साल के सांसद पंकज ने गोरखपुर यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री हासिल का है। उनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी हैं। वह खेती करने के अलावा सफल बिजनेसमैन भी हैं।


पंकज चौधरी इस समय रेलवे, केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स और पब्लिक अंडरटेकिंग की स्टैंडिंग कमिटी के सदस्य हैं। जहां तक लोकसभा में उनकी उपस्थिति का सवाल है तो 8 जनवरी, 2019 तक उनकी उपस्थिति 83 फीसदी रही है जो राष्ट्रीय औसत (80 फीसदी) से अधिक और राज्य औसत (87 फीसदी) से कम है।


संसद सत्र के दौरान उन्होंने 28 बहस में हिस्सा लिया जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत 65.3 फीसदी और राज्य औसत 107.2% है। हालांकि उन्होंने जमकर सवाल पूछे हैं। उन्होंने बहस के दौरान 338 सवाल पूछे जबकि राष्ट्रीय औसत 285 है। पंकज ने 2 बार प्राइवेट मेंबर्स बिल भी पेश किया।
लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति में तेजी से बदलाव आ रहा है। पहले सपा-बसपा गठबंधन और अब प्रियंका गांधी के कांग्रेस में बतौर महासचिव शामिल होने और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार दिए जाने के बाद चुनावी लड़ाई बेहद कांटेदार हो गई है। ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट फिर से बचाए रखने के लिए नए सिरे से चुनावी रणनीति बनानी होगी। प्रदेश के पिछड़े क्षेत्रों में शामिल महाराजगंज में चुनावी संघर्ष रोमांचक होगी, लेकिन यहां की जनता का लक्ष्य क्षेत्र की तरक्की पर होगा जो इसे अब तक नहीं मिल सका है।