प्रयागराज, मोहम्मद मोइन। प्रयागराज में महाभारत काल का लाक्षागृह कहा जाने वाला ऐतिहासिक खंडहर इन दिनों फिर से सुर्खियों में है। तीन दिन पहले इस खंडहर में पत्थरों की एक सुरंग देखने को मिली है। यह सुरंग करीब चार फिट चौड़ी है। हालांकि अभी सुरंग का थोड़ा हिस्सा ही दिखाई दे रहा है। बाकी हिस्सा मिट्टी के टीले में दबा हुआ है। सुरंग को लेकर दावा यह किया जा रहा है कि यह वही सुरंग हो सकती है, जो द्वापर युग में पांडवों ने जिसके जरिये लाख के महल से चुपचाप बाहर निकलकर अपनी जान बचाई थी। सुरंग मिलने के बाद प्रयागराज के इस खंडहर को फिर से महाभारत काल का लाक्षागृह घोषित किये जाने की मांग उठने लगी है।


इतिहासकारों व शोधकर्ताओं ने केंद्र सरकार से इस सुरंग और खंडहर की सच्चाई का पता लगाने के लिए आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से नये सिरे से खुदाई कर सच्चाई का पता लगाए जाने की मांग की है। वैसे इस सुरंग के बाद प्रयागराज के इस खंडहर को ही महाभारत काल का लाक्षागृह घोषित कर इसे पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित किये जाने की मांग उठाई जाने लगी है।



गौरतलब है कि महाभारत काल में दुर्योधन द्वारा पांडवों को जिंदा जलाने के लिए गंगा नदी के तट पर लाख का महल तैयार कराया था। महाभारत की कथा के मुताबिक विदुर ने पांडवों को दुर्योधन की इस साजिश की जानकारी दी थी। यह जानकारी पाकर पांडव एक सुरंग बनाकर चुपचाप बाहर निकल आए थे और अपनी जान बचाई थी। महाभारत में इस घटना का विस्तार से वर्णन तो है, लेकिन लाक्षागृह किस जगह था, इसका साफ जिक्र नहीं है। देश में चार -पांच ऐसी जगह है, जिसके महाभारत काल का लाक्षागृह होने का दावा किया जाता है। प्रयागराज शहर में संगम से तकरीबन पचास किलोमीटर दूर हंडिया इलाके में गंगा नदी के तट पर भी एक ऐसा खंडहर है, जिसे महाभारत काल का लाक्षागृह कहा जाता है। सरकारी रिकार्ड में भी इस कसबे का नाम लाक्षागृह ही है। जिन जगहों के लाक्षागृह होने का दावा किया जाता है, प्रयागराज उनमे से अकेली ऐसी जगह है, जो गंगा नदी के तट पर स्थित है।



आर्कियॉलजिकल सर्वे आफ इंडिया ने दो दशक पहले इस जगह की खुदाई भी की थी, लेकिन किन्ही वजहों से खुदाई रोक दी गई थी। प्रयागराज के लाक्षागृह को ही सरकारी तौर पर महाभारत काल का लाक्षागृह बताए जाने की मांग को लेकर यहां के लोगों ने लंबे समय तक आंदोलन भी किया था। इसी आंदोलन के बाद सरकार ने अलग अलग मदों से यहां विकास के कई काम कराए गए और इस जगह को पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित भी किया गया। हालांकि पुख्ता दावा होने के बावजूद इसे अभी तक महाभारत काल का लाक्षागृह नहीं घोषित किया जा सका। प्रयागराज में इन दिनों मानसून की बारिश हो रही है। बारिश की वजह से ही मिट्टी के एक बड़े टीले का कुछ हिस्सा ढह गया, जिसकी वजह से सुरंग का हिस्सा नजर आया। अब बाकी हिस्सा खुदाई के बाद ही नजर आ सकता है।


लाक्षागृह विकास समिति के अध्यक्ष ओंकार नाथ त्रिपाठी समेत प्रयागराज के दूसरे लोग सुरंग मिलने के बाद इस जगह पर एएसआई से खुदाई व रिसर्च कराकर इसे ही महाभारत काल का लाक्षागृह घोषित करने व इस स्थल का संरक्षण करते हुए इसे पर्यटन केंद्र के तौर पर विकसित किये जाने की मांग कर रहे हैं। इतिहासकार और इलाहाबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी के मध्यकालीन इतिहास विभाग के हेड प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी का भी कहना है कि महाभारत काल में पांडवों के सुरंग के रास्ते से लाक्षागृह से बाहर निकलकर जान बचाने का जिक्र है।


उनका कहना है कि यह वही लाक्षागृह है या नहीं, इसका पता एएसआई की खुदाई व रिसर्च से ही चल सकता है। उन्होंने भी इस बारे में रिसर्च कर सच का पता लगाए लगाने जाने की बात कही है। इलाहाबाद म्यूज़ियम से जुड़े डा० राजेश मिश्र का कहना है कि अकेले सुरंग मिलने भर से इस जगह को महाभारत काल का लाक्षागृह नहीं माना जा सकता। जितने भी पुराने किले हैं, आम तौर पर उन सभी में सुरंगे होती हैं। ऐसे में बिना खुदाई व रिसर्च के इस जगह को महाभारत काल का लाक्षागृह नहीं कहा जा सकता है। इस पर रिसर्च किये जाने की ज़रुरत है।