UCC लागू होने से, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों का पंजीकरण अनिवार्य, वरना नहीं मिलेगा किराये का घर
उत्तराखंड में यूसीसी कानून लागू हो गया है. इसके अंतर्गत लिव-इन रिलेशनशिप को स्पष्ट परिभाषित किया गया है और इसके लिए अनिवार्य पंजीकरण की व्यवस्था की गई है. पंजीकरण न कराने पर देना होगा जुर्माना.
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UCC In Uttarakhand: देवभूमि उत्तराखंड में सोमवार को यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code-UCC) लागू हो गया. इस नए कानून के तहत लिव-इन रिलेशनशिप को स्पष्ट परिभाषित किया गया है और इसके लिए अनिवार्य पंजीकरण की व्यवस्था की गई है. अब कोई भी जोड़ा लिव-इन में आने के एक माह के भीतर रजिस्ट्रेशन कराएगा, अन्यथा उसे कानूनी दंड भुगतना होगा.
UCC के अनुसार, सिर्फ एक वयस्क पुरुष और एक वयस्क महिला ही लिव-इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं. दोनों पहले से विवाहित नहीं होने चाहिए और न ही किसी अन्य लिव-इन रिलेशनशिप में. इसके अलावा, रक्त संबंध या प्रोहिबिटेड डिग्रीस ऑफ रिलेशनशिप में आने वाले जोड़े भी लिव-इन में नहीं रह सकेंगे. इस नए प्रावधान के तहत, लिव-इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को एक रजिस्टर्ड वेब पोर्टल पर पंजीकरण कराना होगा. अगर कोई जोड़ा एक माह के भीतर पंजीकरण नहीं कराता है, तो उसे तीन माह का कारावास या 10 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
गलत जानकारी देने पर 25 हजार का जुर्माना
अगर लिव-इन में रह रहा कोई भी व्यक्ति इस रिश्ते को खत्म करना चाहता है, तो उसे सब-रजिस्ट्रार को सूचना देनी होगी. इसके बिना संबंध खत्म नहीं माना जाएगा. अगर कोई व्यक्ति गलत या भ्रामक जानकारी देकर पंजीकरण कराता है, तो उसका रजिस्ट्रेशन अस्वीकार कर दिया जाएगा और उसे तीन माह की जेल या 25 हजार रुपये जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा.
अगर किसी पुरुष ने लिव-इन में रहने के बाद महिला को छोड़ दिया, तो महिला को न्यायालय में भरण-पोषण की मांग करने का अधिकार मिलेगा. न्यायालय इस पर निर्णय करेगा और महिला को आर्थिक सहायता दी जाएगी. इसके अलावा, लिव-इन में रहने वाले जोड़े को पंजीकरण की रसीद प्राप्त होगी, जिसके आधार पर वे किराये पर घर, हॉस्टल या पीजी ले सकते हैं. इस रसीद की जानकारी संबंधित जोड़े के माता-पिता या अभिभावकों को भी दी जाएगी.
पंजीकरण के बिना किराये का घर नहीं मिलेगा
UCC के तहत, लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चों को पूर्ण कानूनी अधिकार प्राप्त होंगे. उन्हें जैविक संतान का दर्जा दिया जाएगा और वे माता-पिता की संपत्ति में हकदार होंगे. इसके अलावा, गोद लिए गए बच्चों, सरोगेसी और असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी से जन्मे बच्चों को भी जैविक संतान के समान ही माना जाएगा.
फिलहाल, लिव-इन जोड़ों के लिए किराये पर घर लेने के लिए पंजीकरण अनिवार्य नहीं किया गया है, लेकिन राज्य में पहले से वेरिफिकेशन फॉर्म भरना अनिवार्य है. अगर मकान मालिक बिना वेरिफिकेशन किराए पर घर देता है, तो उसे 10 हजार रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है और कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.
उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता (UCC) के तहत लिव-इन रिलेशनशिप के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं. पंजीकरण अनिवार्य होने से ऐसे संबंधों को कानूनी पहचान मिलेगी और महिलाओं व बच्चों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे. वहीं, लिव-इन में रहने वाले जोड़ों के लिए संबंध खत्म करने की स्पष्ट प्रक्रिया तय कर दी गई है, जिससे नैतिक और कानूनी जवाबदेही सुनिश्चित हो सकेगी.
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