ऊधमसिंहनगर, विकास कुमार: पूरा विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण की जद में हैं. इस संकट की घड़ी में कोरोना वॉरियर्स फ्रंटफुट पर जंग लड़ रहे हैं. उत्तराखंड के ऊधमसिंहनगर जिले में भी दो परिवार ऐसे हैं, जो देशहित के लिए अपने बच्चों को घर मे छोड़ लोगों की सेवा कर रहे हैं. डॉक्टर को यूं ही इस धरती का भगवान नहीं कहा जाता है. इसके पीछे उनकी मेहनत और त्याग की कहानी छिपी हुई है. आज हम ऐसे ही दो परिवार से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, जो अपने परिवार के साथ मिलकर वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं.

 डेढ़ महीने के बेटे को छोड़कर फर्ज अदा कर रहीं डॉक्टर रश्मि


किच्छा के सामुदायिक अस्पताल में दो ऐसी महिलाएं तैनात हैं, जो अपने पति संग इस महामारी से पिछले दो महीने से लड़ रही हैं. किच्छा के अस्पताल में तैनात डॉक्टर रश्मि सेमवाल पिछले दो महीने से अपने डेढ़ महीने के बेटे को छोड़कर कोविड-19 की ड्यूटी पर तैनात हैं, जबकि उनके पति डॉक्टर कवींद्र भी डीडीहाट में कोविड-19 की ड्यूटी पर हैं. ऐसे में उनके कंधों में दोहरी जिम्मेदारी आ गई है. घर में उनके बेटे की देखभाल उनके पिता द्वारा की जा रही है. अस्पताल फिर घर दोनों ही जिम्मेदारी रश्मि बखूबी साथ निभा रही हैं. उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि परेशानियां तो होती हैं, लेकिन डॉक्टर का फर्ज परेशानी के दौरान पीछे हटना नहीं, बल्कि इन परेशानियों का डटकर मुकाबला करना है.


10 साल के बेटे को घर में बंदकर, अस्पताल में ड्यूटी दे रहीं डॉक्टर सीखा


ऐसी ही एक और डॉक्टर सीखा हैं, वो भी किच्छा अस्पताल में तैनात हैं, जो अपने 10 साल के बेटे को घर मे बंद करके कोविड-19 की ड्यूटी कर रही हैं. सीखा के पति शिमला के मेडिकल कॉलेज में कोविड-19 की ड्यूटी में तैनात हैं. पिछले दो महीने से उनके कंधों पर भी दोहरी जिम्मेदारी आ गई है. एक ओर उनका 10 साल का बेटा, जिसे इस आपदा की घड़ी में मां की सबसे अधिक जरूरत है और दूसरी ओर उनका फर्ज. ऐसे में सीखा दोनों ही जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं. सीखा ने बताया कि वो सुबह से शाम तक अस्पताल में लोगों की स्कैनिंग करती हैं. फिर अपने मां का फर्ज अदा करती हैं.


डॉक्टर रश्मि और सीखा की तरह देश की हजारों मां इस वैश्विक महामारी से लड़ रही हैं. अपने फर्ज के आगे अपने परिवार को भी अनदेखा कर रही है. एबीपी गंगा की टीम भी ऐसे योद्धाओं को सलाम करती है.


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