कानपुर, एबीपी गंगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही स्वच्छता अभियान को लेकर भरसक प्रयास कर रहे हों लेकिन क्या पीएम का यह 'स्वच्छता अभियान' कितना स्वच्छ है, यह उत्तर प्रदेश में देखने को मिलता है, जहां प्रदेश के कई गांव ऐसे हैं, जो शौचालय मुक्त तो हैं पर घूसखोरी के परवान चढ़ चुकें हैं, जिसका उदाहरण खुद गांव वाले ही बन चुके हैं, जो इतना परेशान हो चुके हैं कि सरकार से अपनी पीड़ा बताने के लिए उन्हें सिर मुड़वाना पड़ा।


कानपुर की नर्वल तहसील पर ग्रमीण विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह प्रदर्शन बता रहा है कि प्रधानमंत्री का स्वच्छ भारत मिशन सिर्फ मिशन बनकर रह गया है कि वह भ्रष्ट अधिकारियों की भेंट चढ़ चुका है, नसड़ा गांव के रहने वाले इन ग्रमीणों का आरोप है कि उनके ग्राम निवास क्षेत्र के सचिव द्वारा शौचालय अनुदान राशि देने के बदले दो हजार रुपये घुस मांग रहा है।


इतना ही नहीं इन ग्रामीणों की बात में जितनी सच्चाई है, उतना गुस्सा भी। ग्रामीणों ने धरना देकर स्वच्छ भारत मिशन के दो साल पूरे होने पर अपने आप को गंजा करा डाला। उसके बावजूद नसड़ा गाँव का हाल जस का तस ही बना हुआ है। यहां के लोग कहते हैं कि प्रधानमंत्री की योजना जहां सोच वहां शौचालय का लाभ उन्हें नहीं मिला, उन्हें आज भी घर के बाहर ही जाना पड़ता है।


कागजों पर नसड़ा गांव ओडीएफ मुक्त कर दिया गया। गांव मे मात्र 40 शौचालय ही बने हैं, पर उनका भी भुगतान अब तक नहीं हुआ जबकि ग्रामीणों की जनसंख्या के मुताबिक 500 परिवार ऐसे हैं जिनसे शौचालय के नाम पर रिश्वत की रकम मांगी जाती है। यहां के अधिकारियों द्वारा उसे ग्रामीणों तक नही पहुंचाया जा रहा है जबकि वह खुद ग्रामीणों के साथ कई बार जिलाधिकारी विजय विश्वास पन्त के पास गई, जहां सचिव अनिल कुमार शाक्य द्वारा रिश्वत की लिखित शिकायत भी की लेकिन कार्रवाई तो छोड़िए जांच तक नहीं की गयी।


इतना सब होने के बावजूद ग्रामीणों की इस पीड़ा को अधिकारी क्यों नहीं समझ रहे हैं। जबकि उत्तर प्रदेश में सख्त रहने वाले आदित्यनाथ योगी की सरकार है। हालांकि इस पूरे मामले में नर्वल तहसील की एसडीएम का कहना है कि उनके संज्ञान में यह पहली बार आया है जिसपर वह जांच जरूर करवाएंगी।