लखनऊ, एबीपी गंगा। उन्नाव में जमीन अधिग्रहण के बाद मुआवजे की मांग कर रहे हजारों किसान उग्र प्रदर्शन कर रहे हैं। शनिवार से जारी यह बवाल रविवार को भी जारी रहा। आज किसानों के हंगामे ने हिंसक रूप ले लिया है। भड़के किसानों ने कथित तौर पर पावर हाउस में रखे पाइपों में आग लगा दी। फायर ब्रिगेड और पुलिस मौके पर पहुंची। इस बीच आईजी लॉ एंड आर्डर प्रवीण कुमार ने जानकारी देते हुये कहा कि स्थिति नियंत्रण में है। कुछ लोग गड़बड़ी फैला रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को भड़काने वालों में बिचौलिए हैं। एहतियात के तौर पर एक कंपनी पीएसी भेजी जा चुकी है। डीएम और एसपी हालात को काबू करने की कोशिश में जुटे हैं।
पूरा मामला यूपीएसआईडीसी की ट्रांसगंगा सिटी का है, जहां तीन साल से किसान अधिग्रहण की शर्तें पूरी न किये जाने के कारण शनिवार से लगातार विरोध प्रदर्शन जारी है। किसानों ने जेसीबी और गाड़ी पर पथराव किया है। जिसके बाद जिला प्रशासन की तरफ की तरफ से 12 थानों फोर्स और कई कंपनी पीएसी को मौके पर भेजा गया। इसके साथ ही सिटी मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में तहसील विभाग के अधिकारी भी मौके पर भेजे गए। प्रशासन द्वारा शनिवार को सुबह किसानों की जमीन पर जेसीबी चलवाये जाने के बाद किसान उग्र हो गए। खेतों पर जेसीबी चलने के बाद किसान उग्र हो गए। किसानों ने नाराज होकर जेसीबी पर पथराव कर दिया । ट्रांसगंगा सिटी में अभी हंगामा जारी है । मौके पर भारी फोर्स तैनात है ।
शनिवार की सुबह ट्रांस गंगा सिटी पर कब्जा लेने पहुंची प्रशासन और पुलिस की टीम से किसान भिड़ गए। पुलिस को धक्का देते हुए आगे बढ़े किसानों ने जेसीबी मशीन और प्रशासनिक अफसर की कार तोड़ दी और जमकर हंगामा किया। करीब ढाई साल से ट्रांस गंगा सिटी के मुआवजे की मांग को लेकर किसान धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों का आरोप है कि उनको न तो उचित मुआवजा दिया गया और ना ही पुनर्वास की व्यवस्था की गई। वह सरकार से मांग कर रहे हैं कि उनके भूमि का मौजूदा समय के अनुसार मुआवजा दिया जाए तथा पुनर्वास समेत किसानों के लिए ट्रांस गंगा सिटी में बेहतर सुविधा दी जाए। इस ढाई वर्ष के दौरान करीब एक दर्जन बाद किसानों और पुलिस के बीच झड़प हो चुकी है।
किसानों को दिया जा चुका है मुआवजा
जिलाधिकारी देवेंद्र पांडेय का कहना है कि किसानों का जो मुआवजा था उसे दिया जा चुका है। एक नहीं दो बार उनको मुआवजा दिया गया है। उसके बाद भी किसान अपनी जिद पर अड़े हैं। प्रशासन के पास उनका कोई बकाया नहीं है। इसको लेकर शासन स्तर पर कई बार बातचीत हो चुकी है लेकिन किसान मानने को तैयार नहीं है।