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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

जर्जर यूपी: विकास से कोसों दूर ये गांव, यहां जान जोखिम में डालकर पुल पार करते हैं लोग

"तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है! ये आंकड़े झूठे हैं दावा किताबी है!!" 'अदम गोंडवी' की लिखी ये लाइनें उन्नाव के गांवों के विकास की हकीकत बयान करने के लिए बिलकुल सटीक हैं.

उन्नाव: विकास का दरिया बहा देने का दावा करने वाले नेताओं की हकीकत अगर देखनी है तो उन्नाव चले आइए. राजधानी लखनऊ से सटे उन्नाव जिले में लोग मूलभूत जरूरतों के लिए भी तरस रहे हैं. यहां विकास के दावे तो बहुत किए गए लेकिन तमाम सरकारें और आला अफसर यहां एक पुल न बनवा सके. तो चलिए आपको बताते हैं विकास का दावा करने और वोट मांगते समय सब कुछ चमका देने का वादा करने वाले नेताओं की हकीकत.

जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं ग्रामीण "तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है! ये आंकड़े झूठे हैं दावा किताबी है!!" 'अदम गोंडवी' की लिखी ये लाइनें उन्नाव के गांवों के विकास की हकीकत बयान करने के लिए बिलकुल सटीक हैं. उन्नाव के बीघापुर तहसील के दूलीखेड़ा गांव की करीब 10 हजार की आबादी आज भी विकास से कोसों दूर है. यहां रहने वाले लोग आज भी गांव आने-जाने के लिए जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं. बता दें कि, पांडू नदी पर बने पुल का एक हिस्सा आज से करीब 10 साल पहले बाढ़ में बह गया था. जिसके बाद ग्रामीणों ने पुल के क्षतिग्रस्त हिस्से पर बांस बल्ली के सहारे जुगाड़ू पुल बनाकर आवागमन शुरू कर दिया. प्रशासनिक उदासीनता और राजनीतिक उपेक्षा के कारण 10 साल बाद भी इसी जुगाड़ू पुल के सहारे लोग पैदल, साइकिल और मोटरसाइकिल लेकर निकलने को मजबूर हैं.

10 हजार की आबादी पुल से न निकलने पर गांव के लोगों को अपने घर आने-जाने के लिए फतेहपुर जिले से होकर जाना पड़ता है. लोग रहते तो उन्नाव जिले में हैं लेकिन तहसील मुख्यालय आने के लिए इन लोगों को पहले करीब 15 किलोमीटर फतेहपुर जिले में जाना पड़ता है उसके बाद बक्सर स्थित गंगापुल से होकर तहसील मुख्यालय पहुंचते हैं. दूलीखेड़ा ग्राम पंचायत में 12 पुरवा (मजरे) हैं जिनमे करीब 10 हजार की आबादी रहती हैं.

कई बार चोटिल हो जाते हैं लोग वहीं, इस गांव के रहने वाले लोगों से जब बात की गई तो यहां के लोगों का दर्द छलक आया. गांव के एक शख्स श्रीकृष्ण ने बताया कि पांडू नदी पर बने इस पुल के टूटने से यहां के ग्रामीणों को बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. अक्सर लोग इस लकड़ी के पुल से होकर निकलने के दौरान गिरकर चोटिल हो जाते हैं. प्रधान पति ने बताया कि इस पुल के टूटे होने और दूसरे किसी रास्ते के न होने से इन गांवों में लड़के-लड़कियों की शादी के लिए रिश्ते आना भी बंद हो गए हैं. गांव विकास से आज भी कोसों दूर हैं. इन गांवों के रहने वाले छात्र जो रहते तो उन्नाव जिले में हैं लेकिन रास्ते की दिक्कत से परेशान होकर फतेहपुर जिले में पढ़ने के लिए मजबूर हैं.

बाढ़ में बह गया पुल बीघापुर तहसील के दुलीखेड़ा गांव के रहने वाले हजारों ग्रामीणों को सहूलियत देने के लिए 2008 में इस पुल का निर्माण करवाया गया था. करीब 120 मीटर लंबे इस पुल का निर्माण मनरेगा के तहत वित्त आयोग की तरफ से मिले बजट से करवाया गया था. निर्माण पूर्ण होने के बाद मई 2009 में इस पुल का लोकार्पण कर लोगों समर्पित कर दिया गया था. पुल के चालू होने के एक साल बाद पहली ही बाढ़ में इस पुल के कई पिलर बह गए. जिससे पुल का एक तिहाई हिस्सा धराशायी हो गया था. इसके अलावा इसके दो और पिलर भी धस गए जिससे पुल का एक दूसरा हिस्सा भी काफी हद तक धस गया है.

लोगों ने पुल पर लगाई बांस बल्ली आने-जाने के लिए दूसरा कोई रास्ता न होने के कारण लोगों ने इसी पुल पर बांस बल्ली लगाकर अस्थाई तौर पर आवागमन शुरू कर दिया था. 10 साल बीतने के बाद यहां के जनप्रतिनिधियों को ये समस्या नजर नहीं आई. वर्तमान समय में भी इस क्षेत्र का विधायक सत्ता दल बीजेपी से है. यही नहीं यहां के विधायक हृदय नारायण दीक्षित यूपी विधानसभा के अध्यक्ष भी हैं. बावजूद इसके यहां के लोग जान जोखिम में डालकर इस पुल से निकलने को मजबूर हैं.

जर्जर यूपी: विकास से कोसों दूर ये गांव, यहां जान जोखिम में डालकर पुल पार करते हैं लोग

सरकार बदली लेकिन किस्मत नहीं बता दें कि, पिछले 3 बार से इस क्षेत्र में जो भी विधायक चुनाव जीता उसी की पार्टी की सरकार बनी. वर्तमान के बीजेपी विधायक हृदय नारायण दीक्षित हों. इसके पहले सपा के टिकट पर चुनाव जीते कुलदीप सेंगर हों या फिर उसके पहले बीएसपी के टिकट पर चुनाव जीते कृपाशंकर. कई सरकार आई, कई सरकार गई लेकिन इस गांव के लोगों की किस्मत नहीं बदली. ग्रामीणों ने बताया कि रास्ता कट जाने के बाद से राजनेता और अधिकारी उन लोगों को भूल गए हैं.

प्रभावित हो रही है शिक्षा विकास के दावों की बात करने वाली सरकारों को इस गांव की बदहाल हालत आईना दिखाने का काम कर रही है. जो सरकारें पूरे प्रदेश में विकास का दरिया बहा देने की बात कहती हैं उन्हें इस गांव के लोगों का दर्द समझना और देखना चाहिए. आजादी 70 साल से ज्यादा बीतने के बाद भी आज इस गांव के लोग जान जोखिम में डालकर लकड़ी के जुगाड़ू पुल से या फिर करीब 15 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय कर पड़ोसी जिले फतेहपुर से होकर आने-जाने को मजबूर हैं. पुल के कारण यहां के छात्र-छात्राओं की शिक्षा प्रभावित हो रही है. लड़कियों और लड़कों की शादी के लिए रिश्ते आने भी बंद हो गए हैं.

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