UP Teacher Recruitment News: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ डबल बेंच ने उत्तर प्रदेश में सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा (एटीआरई) के तहत 69 हजार शिक्षकों की नियुक्ति के लिए जून 2020 में जारी चयन सूची और 6800 अभ्यर्थियों की पांच जनवरी 2022 की चयन सूची को दरकिनार कर नए सिरे से सूची बनाने के आदेश दिए हैं. वहीं अब इस भर्ती के बारे में हर कोई जानना चाह रहा है कि आखिर ये भर्ती कब हुई थी और कितने अभ्यर्थियों ने परीक्षा थी. इस खबर में आप इस भर्ती के पांच साल के संघर्ष की कहानी को पढ़े.


यूपी में 5 दिसंबर 2018 को 69000 सहायक शिक्षक भर्ती का विज्ञापन आया. इस परीक्षा के लिए कुल 4 लाख 31 हजार आवेदन प्राप्त हुए थे. 5 जनवरी 2019 को इसकी लिखित परीक्षा हुई, जिसमें इस परीक्षा में 4 लाख 10000 अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी थी. फिर 6 जनवरी 2019 को परीक्षा का पासिंग मार्क घोषित किया गया, जो अनारक्षित के लिए 65 फीसदी और आरक्षित के लिए 60 फीसदी था.


इसके बाद 1 जून 2020 को रिजल्ट आया जिसमें करीब 147000 अभ्यर्थी पास हुए थे. जिसमें करीब 110000 आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी पास हुए थे. इस भर्ती में अनारक्षित वर्ग का कट ऑफ 67.11 रखा गया था, ओबीसी का कट ऑफ था 66.73 रखा था, एससी वर्ग का कट ऑफ 61.01 था.


इस कट ऑफ को देखने के बाद ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों में असंतोष जागा कि ओबीसी और जनरल वर्ग के बीच में कट ऑफ का अंतर बेहद कम है. इस मामले के लड़ाई लड़ रहे रईस चौधरी ने एबीपी लाइव से बातचीत में बताया कि इसके बाद ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों ने बेसिक शिक्षा विभाग की वेबसाइट से पूरे परिणाम की लिस्ट को डाउनलोड कर इस पूरी लिस्ट पर रिसर्च किया. जिस पर उन्होंने पाया कि इस भर्ती में ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी की जगह सिर्फ 3.86 फीसदी आरक्षण मिला है और SC वर्ग को 21 फीसदी की जगह 16.2 फीसदी आरक्षण दिया गया है.


जिस पर अभ्यर्थियों ने देखा कि इस भर्ती में बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण नियमावली 1994 का उल्लंघन हुआ है. इन दोनों नियमावली के अनुसार कि अगर आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी के बराबर अंक प्राप्त करता है तो वह आरक्षित वर्ग की सीट को खाली करेगा और वह अनारक्षित वर्ग की सीट पर चयन पाएगा. अभ्यर्थियों के मुताबिक इस नियमावली का पालन नहीं किया गया.


अक्टूबर 2020 में राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग पहुंचे अभ्यर्थी


इसके बाद इस पूरी लिस्ट पर रिसर्च करने के बाद कुछ अभ्यर्थी अक्टूबर 2020 में राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग पहुंचे और कुछ अभ्यर्थी हाई कोर्ट भी चले गए. इस दौरान कोर्ट में बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों को तलब किया गया और अधिकारियों से राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग ने भी मूल चयन सूची मांगी गई पर किसी अधिकारी ने मूल चयन सूची नहीं दिखाई.


इस दौरान बेसिक शिक्षा विभाग के सचिव प्रताप सिंह बघेल आयोग में विभाग का पक्ष रखते थे. इस मामले की लड़ाई लड़ रहे राजेश चौधरी ने कहा कि इस दौरान राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के उपाध्यक्ष लोकेश प्रजापति ने बेसिक शिक्षा सचिव को फटकार लगाई थी और कहा था कि प्रत्येक भर्ती की एक मूल चयन सूची बनाई जाती है जिसमें अभ्यार्थियों के गुणांक, कैटेगरी, सब कैटिगरी, जन्मतिथि आदि का उल्लेख किया जाता है. लेकिन आपने इस भर्ती की मूल चयन सूची ही नहीं बनाई और सिर्फ अभ्यर्थी का सीरियल नंबर, रजिस्ट्रेशन नंबर लिखा है, नाम लिखा है, पिता का नाम लिखा है, जनपद लिखा है, जन्म तिथि लिखी है पर बाकी चीज छोड़ दी गई. सवाल हुआ कि आपने यह नहीं बताया कि अभ्यर्थी का चयन कौन सी कैटेगरी में हुआ है. वह विकलांग है, महिला है या क्या है, उसका गुणांक भी नहीं बताया गया था.


बता दें इसमें चयन के लिए जो मेरिट बननी थी वो सहायक अध्यापक लिखित परीक्षा का 60% अंक, हाई स्कूल का 10%, इंटर का 10%, ग्रेजुएशन का 10% और Bed या बीटीसी का 10% लिया जाएगा मेरिट बनाते समय. इसी के आधार पर मेरिट बनाने के बाद ऊपर से नीचे तक मेरिट बननी थी पर इसमें लिस्ट बनाते समय इस आधार को नहीं दर्शाया कि कैसे सूची बनी है.


इस मामले की लड़ाई लड़ रहे अभ्यर्थी राजेश चौधरी ने बताया कि 29 अप्रैल 2021 को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने आरक्षण घोटाले की रिपोर्ट जारी की. जिसमें यह कहा कि इस भर्ती में आरक्षण का घोटाला हुआ है और ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत की जगह 3.86% और एससी वर्ग को 21% की जगह 16.2% आरक्षण दिया गया है. इस भर्ती में आरक्षण का घोटाला करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाए और इस रिपोर्ट को माना जाए और आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को न्याय दिया जाए.


वहीं 5 जनवरी 2022 को इस रिपोर्ट के आधार पर योगी सरकार में 19000 आरक्षण के घोटाले की जगह पर 6800 सीट पर घोटाला स्वीकार कर लिया. जिसके बाद जो अभ्यर्थी धरना दे रहे थे उन्होंने कहा कि या तो मूल चयन सूची जारी की जाए या जो अभ्यर्थी इस प्रकरण में मूल याची है. उनको पेटीशनर रिलीफ देते हुए उनको चयन किया जाए, पर इस पर सुनवाई नहीं हुई. इस प्रकरण में सरकार ने 6800 सीट पर गलती होना तो माना लेकिन इसका कोई शासनादेश जारी नहीं किया.


प्रतीक त्रिवेदी नामक व्यक्ति ने इस प्रकरण में हाई कोर्ट में याचिका डाली और इसका शासनादेश मांगा. इसके बाद जब शासनादेश आया तो वह ओबीसी, एससी का शासनादेश नहीं था बल्कि महिलाओं और दिव्यागों का शासनादेश जारी हुआ। इसके बाद अभ्यर्थी लड़ाई लड़ते रहे.


6800 की लिस्ट हुई रद्द


13 मार्च 2023 को इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस ओपी शुक्ला ने फैसला सुनाया की 6800 की लिस्ट रद्द की जाती है. इस लिस्ट को पूरी तरीके से रद्द कर दिया और फैसले में यह भी लिखा कि 6800 की लिस्ट देने के बाद 13000 के करीब कुछ अभ्यर्थी और बचते हैं जिनके साथ न्याय हो. इस आदेश में यह भी लिखा गया कि जो बच्चों की लिस्ट आई थी वह एक आकस्मिक लिस्ट है. 


इसी आदेश में एक बात और लिखी गई जिसमें था कि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की इस परीक्षा में ओवरलैपिंग नहीं होनी चाहिए. मसलन आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी अगर अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थी के बराबर अंक प्राप्त करता है तो भी वह अनारक्षित वर्ग की श्रेणी में ना जाकर वो अपने आरक्षित वर्ग की श्रेणी में ही रहेगा.


ई कोर्ट की डबल बेंच गए अभ्यार्थी


वहीं 17 अप्रैल 2023 को इस आदेश को लेकर कुछ अभ्यर्थी हाई कोर्ट की डबल बेंच चले गए थे और वहां चैलेंज किया कि हाई कोर्ट सिंगल बेंच ने जो आर्डर दिया है उसमें आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी चाहे कितने भी अंक प्राप्त कर ले वह आरक्षित वर्ग की श्रेणी में ही रहेगा यह गलत है. क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार की बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण नियमावली 1994 तथा उत्तर प्रदेश सरकार की इस भर्ती का शासनादेश यह कहता है कि यदि आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी अनारक्षित वर्ग की अभ्यर्थी के बराबर अंक प्राप्त करता है तो अनारक्षित वर्ग की सीट पर जायेगा और आरक्षित वर्ग की सीट को खाली करेगा.


फिर 19 मार्च 2024 को जस्टिस अताऊर रहमान मसूदी और जस्टिस बृजराज सिंह ने इस मामले की सुनवाई करते हुए इसके फैसले को रिजर्व कर दिया. अब 13 अगस्त 2024 को इसका ऑर्डर कोर्ट में सुनाया गया, जिसमें लिस्ट को दुबारा बनाने की बात कही थी. 16 अगस्त 2024 को इसे लेकर लिखित ऑर्डर आया जिसमें कहा गया कि बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण अधिनियम 1994 के मुताबिक आरक्षण नीति का पालन करते हुए नई चयन सूची बनाई जाए. वहीं जो अध्यापक इस कार्यवाही से प्रभावित होंगे उन्हें सत्र लाभ दिया जाए.


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