राज की बातः 2022 में होने जा रहे यूपी में विधानसभा चुनाव की सुबगुबाहट तेज हो गई है. सभी सियासी दलों की सक्रियता बढ़ गई है. भाजपा में तो ऐसी मैराथन बैठकों का दौर चला कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया और अटकलें नेतृत्व परिवर्तन तक की आने लगीं. खास बात है कि बीजेपी के पितृ संगठन आरएसएस भी उत्तर प्रदेश को लेकर खुलकर मंत्रणाओं और समस्या समाधान में जुटा है. ऐसा नहीं है कि संघ पहली बार बीजेपी की मदद के लिए तत्पर हुआ हो, लेकिन यह भी सच है कि उत्तर प्रदेश को लेकर जैसी सक्रियता खुलकर संघ दिखा रहा है, ऐसा कम होता है.
आप सोच रहे होंगे कि यूपी राज्य बड़ा है और केंद्र की सत्ता का रास्ता यहां से होकर निकलता है, इसलिए संघ सक्रिय है. तो आप गलत नहीं हैं, लेकिन यह अधूरा सच है. पूरे सच के पीछे का राज है कि संघ की असली चिंता सरकार से ज्यादा राम मंदिर निर्माण को लेकर है. इसीलिए, यूपी में संघ ने भी कमर कस ली है और कोरोना काल में हुए डैमेज को कंट्रोल साधने में भी अग्रणी भूमिका तय कर ली गई है. संघ की चिंता के पीछे राज क्या है और राममंदिर को लेकर उसकी आशंकाओं के मायने क्या हैं, इस पर करते हैं आगे बात. मगर पहले जो संघ ने बीजेपी को उबारने के लिए कदम उठाए हैं या रणनीति तय की है, उसे समझिये. संघ ने तय किया है कि जनता को भाजपा के जोड़ने के लिए, नाराजगी को दूर करने के लिए और 2022 में सराकर बनाने के लिए युद्धस्तर पर अभियान चलाया जाएगा. लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की बड़ी रणनीति के पीछे भी एक बड़ी राज की बात है. राज की बात ये है कि संघ की ये कवायद बीजेपी को सत्ता में पहुंचाने से ज्यादा एक बड़े अभियान में रुकावटों को आने से रोकना है. राज की बात ये हैकि संघ की भाजपा को सत्ता में वापसी करवाने की कवायद इसलिए है ताकि राम मंदिर निर्माण और अयोध्या के विकास का खाका निर्बाध रूप से आगे बढ़ाया जा सके. यूं तो हर राज्य में संघ बीजेपी का सियासी साथ देता है ताकि चुनावी वैतरणी को पार्टी पार कर सके लेकिन उत्तर प्रदेश में खुल कर वृहद अभियान के तौर पर संघ सक्रिय हो गया है. राज की बात ये है कि आरएसएस को इस बात की आशंका है कि अगर सूबे में सत्ता परिवर्तन हो गया, किसी और दल की सरकार आ गई तो राम मंदिर आंदोलन को जीत कर भी हार की नौबत आ सकती है.
आशंका इस बात की जताई जा रही है कि अगर किसी और दल का मुख्यमंत्री अगर यूपी में बना तो कहीं राम मंदिर निर्माण में अड़चनों का दौर न शुरु हो जाए. आशंका इस बात की भी है कहीं दूसरे पक्ष की तरफ से जारी अड़ंगेबाजियों को सियासी शह मिलनी न शुरु हो जाए और फैसला पक्ष में आने के बाद भी राम मंदिर और नए स्वरूप की अयोध्या के निर्माण में दिक्कत खड़ी हो जाए. इसके अलावा संतों-महंतों में भी ट्रस्ट में लाए नामों और अपने वर्चस्व को लेकर कुछ असंतोष हैं. बीजेपी अगर नहीं रहती है तो उन्हें भी शह मिल सकती है और बेवजह का वितण्डावाद खड़ा हो सकता है.
आपको मैंने पिछले हफ्ते ही बताया था कि संघ प्रमुख ने साफतौर पर कहा है कि –कुछ लोगों के व्यक्तिकत अहं के चलते जो सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन शुरू हुए हैं, उनकी राह में बाधा नहीं आ चाहिए. चाहे राम मंदिर हो या फिर काशी में बाबा विश्वनाथ कारीडोर का निर्माण कार्य, ये तो सच्चाई है कि केंद्र और प्रदेश में बीजेपी की सरकार आने के बाद ही ये जमीन पर साकार हो पा रहे हैं. संघ कि चिंता है कि जैसे अभी जमीन ज्यादा दाम लेने के मसले पर बवाल हुआ और कहीं गैरबीजेपी सरकार यूपी में होती तो इस मसले पर विवाद इतना बढ़ता है कि मंदिर निर्माण पीछे चला जाता और विवादों का बवंडर खड़ा हो जाता. यही वजह है कि संघ ने तय किया है कि यूपी में बीजेपी की सरकार बनाने के लिए पूरी ताकत झोंकी जाएगी. मंतव्य स्पष्ट है कि राम मंदिर निर्माण में अड़चने न आएं और इसके लिए जरूरी है की 2022 में दोबारा यूपी में भाजपा की ही सरकार बने. इसीलिए, संघ दिल्ली से लेकर लखनऊ तक चिंतन-मंथन बैठकों का दौर चला रहा है. यहां तक कि अगले माह फिर सरसंघचालक मोहन भागवत व संघ के उच्चस्तरीय पदाधिकारी यूपी के चित्रकूट में जमा होंगे. बीजेपी के भीतर चल रही खींचतन या जनता के बीच नाराजगी को दूर करने के लिए भी संघ लगातर अपनी तरफ से प्रयास कर रहा है.