विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. उत्तर प्रदेश में मुख्य मुकाबला सत्ताधारी बीजेपी और सपा के साथ माना जा रहा है. इस चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी और बीजेपी ने कई छोटे-छोटे दलों से समझौता किया है. वहीं बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के अलावा चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने अकेले के दम पर चुनाव के मैदान में उतरने की घोषणा की है. आइए जानते हैं कि इस चुनाव में सपा और बीजेपी के साथ-साथ कौन-कौन से दल हैं. 


बीजेपी के साथ कौन कौन से दल हैं


तो सबसे पहले बात करते हैं प्रदेश में सत्तारूढ बीजेपी का. प्रदेश में प्रचंड बहुमत की सरकार चला रही बीजेपी ने इस चुनाव के लिए अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी से समझौता है. इसके अलावा कुछ बहुत छोटे-छोटे दलों ने बीजेपी को समर्थन देने की घोषणा की है. उत्तर प्रदेश में अपना दल (एस) बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगियों में से एक है. इस पार्टी का मुख्य आधार पूर्वांचल और अवध के इलाके के कुर्मियों में है.  इसकी प्रमुख अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर की सांसद हैं. पिछले दिनों हुए मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें मंत्री बनाया गया था. अपना दल (एस) ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 


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वहीं निषाद पार्टी बीजेपी की नई गठबंधन सहयोगी है. यह पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव के समय से ही बीजेपी से साथ है. इस पार्टी की स्थापना डॉक्टर संजय निषाद ने की थी. साल 2017 का विधानसभा चुनाव इसने अकेले के दम पर लड़ा था. इसे एक सीट पर सफलता मिली थी. संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद ने 2018 में गोरखपुर संसदीय सीट पर हुआ उपचुनाव सपा के टिकट पर लड़कर जीते थे. लेकिन 2019 के चुनाव के पहले निषाद पार्टी ने बीजेपी से समझौता कर लिया. प्रवीण निषाद बीजेपी के टिकट पर सासंद बने हैं. वहीं संजय निषाद को बीजेपी ने विधान परिषद का सदस्य बनाया है. इस पार्टी का आधार मुख्य तौर पर निषाद या मल्लाह जाति में माना जाता है. 


इनके अलावा बीजेपी ने  प्रगतिशील समाज पार्टी, सामाजिक न्याय नव लोक पार्टी, राष्ट्रीय जलवंशी क्रांतिदल, मानव क्रांति पार्टी के साथ भी गठबंधन किया है. ये छोटी-छोटी और एक खास इलाके की पार्टियां हैं. 


समाजवादी पार्टी के साथ-कौन कौन से दल हैं


अब बात करते हैं समाजवादी पार्टी के गठबंधन सहयोगियों की. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए कई पार्टियों से हाथ मिलाया है. रालोद, सुभासपा, महान दल, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया), एनसीपी, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), अपना दल (कमेरावादी) प्रमुख हैं. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी का जोर पिछड़ी जातियों की राजनीति करने वाली पार्टियों को अपने साथ लाने पर है. इसे उनके चुनावी गठबंधन में भी देखा जा सकता है. इसके अलावा सपा में पिछले हफ्ते बड़ी संख्या में मंत्री और विधायक बीजेपी छोड़कर शामिल हुए हैं. इनमें सबसे अधिक पिछड़ी जातियों के नेता शामिल थे. 


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आइए जानते हैं कि सपा ने किन दलों से हाथ मिलाया है और उनकी राजनीति क्या है. राष्ट्रीय लोकदल का आधार मुख्यतौर पर पश्चिम उत्तर प्रदेश में माना जाता है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि किसान आंदोलन की वजह से किसानों में बीजेपी के प्रति नाराजगी है. पश्चचिम उत्तर प्रदेश को किसान बहुल माना जाता है. रालोल से गठबंधन के बाद सपा को पश्चिम में बढ़त मिलने की उम्मीद है.  सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) भी पिछड़ी जातियों की राजनीतिक करने वाली पार्टी है. इसके संस्थापक ओमप्रकाश राजभर बसपा से निकले हैं. इसका आधार राजभर, कहार और कुछ अन्य अति पिछड़ी जातियों में है. सुभासपा ने पिछला चुनाव बीजेपी के साथ लड़ा था. उसने 8 सीटों पर चुनाव लड़कर 4 सीटें जीती थीं.


सपा का पिछड़ी जातियों पर जोर


जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के प्रमुख डॉक्टर संजय सिंह चौहान हैं. इसे मुख्य तौर पर नोनिया जाति की पार्टी माना जाता है. इसका आधार भी पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, मऊ, बलिया, गाजीपुर और चंदौली जैसे जिलों में है. अपना दल (कमेरावादी) को कुर्मी जाति की पार्टी माना जाता है. अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) से भी समाजवादी पार्टी का समझौता है. महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार चला रही एनसीपी से भी सपा ने समझौता किया है. इसके अलावा कुछ और छोटे-छोटे दलों ने समाजवादी पार्टी को समर्थन दिया है.


वहीं उत्तर प्रदेश के दो बड़े राजनीतिक दलों बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने किसी दल के साथ गठबंधन नहीं किया है. इन दोनों दलों ने सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है. वहीं आम आदमी पार्टी और एमआईएम भी अकेले के दम पर चुनाव मैदान में हैं.