उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के लिए बीजेपी (BJP)युद्ध स्तर की तैयारियां कर रही है. प्रदेश में उसने अपने नेताओं की फौज उतार दी है. बीजेपी ने इस बार भी 300 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बीजेपी सामाजिक संपर्क अभियान चला रही है. इसके तहत वो अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित समुदाय के मतदाताओं में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है.
किन नेताओं को दी गई है जिम्मेदारी
पिछड़े और दलित वर्ग के मतदाताओं को लुभाने के लिए बीजेपी ने अपने पिछड़े और दलित समुदाय के 175 विधायकों, सांसदों, पूर्व विधायकों और अन्य नेताओं को लगाया है. विभिन्न आयोगों के प्रमुखों को भी इस काम में लगाया गया है. इस अभियान को 'सामाजिक संपर्क' का नाम दिया गया है. इन नेताओं को अपने समुदाय के लोगों के छोटे-छोटे समूहों से संपर्क करने को कहा गया है. उन्हें एक से 10 विधानसभा सीटों तक की जिम्मेदारी दी गई है. लेकिन ये नेता अपने विधानसभा क्षेत्र में यह संपर्क नहीं कर सकते हैं.
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इन अभियान के जरिए बीजेपी ने उन सीटों को जीतने की रणनीति बनाई है, जिन्हें वो 2017 के चुनाव में बहुत ही कम अंतर से हार गई थी, क्योंकि वहां यादव, जाटव और मुसलमानों की आबादी अधिक थी. बीजेपी की कोशिश ऐसे विधानसभा क्षेत्रों में विभिन्न जातियों के वोटों को अपनी तरफ करने की है. बीजेपी को लगता है कि ऐसा होने की सूरत में वो यादव, जाटव और मुस्लिम बहुल सीटों पर सपा-बसपा को हराने में कामयाब होगी.
कहां लगी है बीजेपी की नजर
इस अभियान के जरिए बीजेपी गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित समुदाय में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. इससे बीजेपी के नेताओं को अलग-अलग जातियों में अपनी पकड़ बनाने का भी मौका मिलेगा. बीजेपी 2017 के चुनाव में माटेरा, महमूबाबाद, नजीबाबाद, लालगंज, कन्नौज, धौलाना और छपरौली जैसी सीटों पर 4 हजार से कम वोटों के अंतर से हार गई थी.
'इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक इस अभियान के तहत करीब 30 कार्यक्रम रोज आयोजित किए जा रहे हैं. इस तरह के सामाजिक संपर्क अभियान से पहले बीजेपी ने दलितों और अन्य पिछड़ा वर्ग के 27 सामाजिक प्रतिनिधि सम्मेलन आयोजित किए थे.