पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर को किसान राजनीति का गढ माना जाता है. इसकी एक पहचान 2013 में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों के लेकर भी है. ये दंगे समाजावादी पार्टी की सरकार में हुए थे. इसने बीजेपी की प्रदेश में उबार में बहुत मदद की. इसके बाद से बीजेपी उत्तर प्रदेश में एक तरह से अपारेजय हो गई. इन दंगों के बाद बीजेपी ने 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव और 2017 का विधानसभा चुनाव काफी बड़े अंतर से जीता था. बीजेपी की इन ऐतिहासिक जीतों ने एक तरह से प्रदेश से विपक्षी दलों का सफाया ही कर दिया था. अब जब प्रदेश में एक बार फिर से विधानसभा का चुनाव हो रहा है तो आइए जानते हैं कि 2017 के चुनाव में इस जिले में किस सीट पर किस पार्टी ने जीत दर्ज की थी.
मुजफ्फरनगर दंगे और बीजेपी की राजनीति
मुजफ्फरनगर जिले में विधानसभा की छह सीटें- मुजफ्फरनगर, बुढाना, चरथावल, खतौली, मीरापुर, पुरकाजी आती हैं. वहीं इस जिले में लोकसभा की एक सीट मुजफ्फरनगर है. इस जिले की दो विधानसभा सीटें पुरकाजी और मीरापुर बिजनौर लोकसभा सीट में आती हैं. इसे मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए दंगों का प्रभाव या नरेंद्र मोदी की लहर ही कह सकते हैं कि 2017 के चुनाव में बीजेपी ने जिले की सभी 6 सीटों पर कब्जा जमाया था. राजनीतिक टीकाकारों का कहना है कि किसान आंदोलन की वजह से किसानों में बीजेपी के प्रति नाराजगी है. उन्हें लगता है कि इस वजह से बीजेपी को इस बार के चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश में नुकसान उठाना पड़ सकता है.
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इस चुनाव में बीजेपी पश्चिम उत्तर प्रदेश में एक तरह से अकेले ही चुनाव लड़ रही है. उसका जिन दलों से समझौता है, उनका पश्चिम में कोई असर नहीं है. वहीं पश्चिम की पार्टी मानी जाने वाले राष्ट्रीय लोकदल ने इस बार समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाया है. बसपा और कांग्रेस अकेले ही चुनाव मैदान में हैं. एक तरफ जहां बीजेपी हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण और मोदी-योगी के चेहरे को लेकर चुनाव मैदान में है. यही वजह है कि गृहमंत्री ने अपने चुनाव अभियान की शुरूआत पड़ोसी जिले शामली के कैराना से की. वहीं सपा-रालोद गठबंधन किसानों की नाराजगी और योगी आदित्यनाथ सरकार की कमजोरियों की बदल बढ़िया प्रदर्शन की उम्मीद लगाए बैठे हैं. मुजफ्फरनगर की सभी विधानसभा सीटों पर मुसलमानों की आबादी बहुत अधिक है. इसे देखते हुए बसपा ने 6 में से 4 सीटों पर मुसलमान उम्मीदवार उतारे हैं. कांग्रेस इस चुनाव में अकेले हैं, उसे भी किसानों की नाराजगी से फायदा मिलने की उम्मीद है.
2017 के चुनाव में बीजेपी को कहां-कहां मिली जीत
मुजफ्फरनगर शहर: इस सीट पर 1991 से अब तक बीजेपी ने 5 और सपा ने 2 बार जीत दर्ज की है. साल 2017 के चुनाव में कपिलदेव अग्रवाल ने सौरभ स्वरूप को 10 हजार 704 वोट के अंतर से हराया था. इस पर मुस्लिम और वैश्य मतदाताओं का वर्चस्व है.
मीरापुर: साल 2017 के चुनाव में यहां से बीजेपी अवतार सिंह भड़ाना ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने सपा के लियाकत अली को मात्र 193 वोटों के अंतर से हराया था. यह बीजेपी को प्रदेश में मिली सबसे छोटी जीतों में से एक थी. इस सीट पर भी एक लाख के अधिक मुस्लिम वोट है. उनके अलावा दलित, जाट और गुर्जर का भी अच्छा वोट बैंक है.
खतौली: बीजेपी ने 2017 में विक्रम सैनी को टिकट दिया था. उन्होंने सपा के चंदन सिंह चौहान को 31 हजार 374 वोट के भारी अंतर से हराया था. यह बीजेपी को जिले में मिली सबसे बड़ी जीत थी. यह सीट भी मुस्लिम बहुल है. यहां दलित, सैनी, जाट और क्षत्रिय भी निर्णायक वोटबैंक हैं.
बुढ़ाना: मुजफ्फरनगर की राजनीति इसी सीट के ईर्द-गिर्द घूमती है. मुजफ्फरनगर दंगे में भी सबसे अधिक प्रभावित यही इलाका हुआ था. भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का गांव सिसौली भी इस क्षेत्र में आता है. सिसौली भारतीय किसान यूनियन का हेडक्वार्टर है. नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्री संजीय बालियान का गांव भी इसी इलाके में है. यहां के 75 हजार जाट वोट किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. साल 2017 में बीजेपी के उमेश मलिक ने सपा के प्रमोद त्यागी को 13 हजार 201 वोट के अंतर से हाराया था.
चरथावल सीट: साल 2017 में इस सीट से बीजेपी के विजय कश्यप जीते थे. उन्होंने सपा के मुकेश कुमार चौधरी को 23 हजार 231 वोट के अंतर से हराया था. कश्यप का कोरोना से निधन हो गया था. इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 1 लाख 25 हजार है.
पुरकाजी (सुरक्षित) : यहां 2017 में बीजेपी के प्रमोद ऊंटवाल को टिकट दिया था. उन्होंने कांग्रेस के दीपक कुमार को 11 हजार 253 वोट के अंतर से हराया था. इस सीट पर भी मुसलमान निर्णायक भूमिका में हैं. वहीं दलित वोट करीब 85 हजार है.