बसपा सुप्रीमो मायावती ने यूपी की आरक्षित सीटों पर ब्राह्मणों को जोड़ने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र को दी है. वो बुधवार को कौशांबी की मंझरपुर और फतेहपुर में कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करेंगे. इन सम्मेलनों के जरिए बसपा ने ब्राह्मण समाज को अपनी ओर करने की रणनीति बनाई है. दरअसल बसपा 2007 के फार्मूले के जरिए एक बार फिर यूपी की सत्ता पर काबिज होना चाहती है. बसपा ने 2007 में 'सर्वजन हिताया, सर्वजन सुखाय' का नारा देकर 200 से अधिक सीटें अपने दम पर जीती थीं. उस साल भी बसपा ने पूरे प्रदेश में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित किए थे. इस बार बसपा ने 'भाईचारा बढ़ाना है, बसपा को लाना है' का नारा दिया.


कैसा रहा है रिजर्व सीटों पर बसपा का प्रदर्शन


उत्तर प्रदेश विधानसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए 86 सीटें आरक्षित हैं. इनमें से 2 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए हैं. साल 2017 के चुनाव में बसपा रिजर्व सीटों में से केवल 2 ही सीटें ही जीत पाई थी. बसपा ने 2007 के चुनाव में इनमें से 61 सीटें जीती थीं. उस समय 89 सीटें रिजर्व थीं. वहीं 2012 में उसे केवल 15 सीटें ही मिली थीं. बीजेपी ने 2017 में रिजर्व सीटों में से 69 सीटें जीती थीं. वहीं सपा ने 2012 में 58 सीटें जीती थीं.    


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यूपी की आरक्षित सीटों में से 65 फीसदी से अधिक सीटें जीतने वाली पार्टी ही सरकार बनाती है. इसी को ध्यान में रखते हुए बसपा ने अपना ध्यान अधिक से अधिक रिजर्व सीटें जीतने पर लगाया है. उत्तर प्रदेश में बसपा का करीब 20 फीसदी वोट बैंक है. वो पिछले कुछ चुनावों से कमोबेश उसके साथ बना हुआ है. बसपा ने 2017 का चुनाव सभी 403 सीटों पर लड़ा था. उसे केवल 19 सीटों पर ही जीत मिली थी. बसपा के खाते में 22.23 फीसदी वोट आए थे.   


आरक्षित सीटों की इस लड़ाई में सतीश चंद्र मिश्र एक-एक कर प्रदेश के सभी आरक्षित विधानसभा सीटों पर सम्मेलन आयोजित करेंगे. इसमें सभी वर्गों के लोगों को बुलाया जाएगा. आइए जानते हैं उन सीटों का गणित जहां सतिश चंद्र मिश्र आज सम्मेलनों को संबोधित करने वाले हैं. 


फतेहपुर और कौशांबी की रिजर्व सीटें


फतेहपुर में खागा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. यह सीट 2012 के चुनाव में आरक्षित हुई है. बीजेपी की कृष्णा पासवान 2017 में यहां से जीती थीं. उन्होंने कांग्रेस के ओमप्रकाश गिहर को 56 हजार 452 वोट के अंतर से हराया था. कृष्णा पासवान 2012 में भी जीती थीं. उस चुनाव में उन्होंने बसपा के मुरलीधर को 18 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था. वहीं कौशांबी की मंझनपुर सीट पर 2017 में बीजेपी के लाल बहादुर जीते थे. उन्होंने बसपा के इंद्रजीत सरोज को 4 हजार 211 वोट के अंतर से हराया था. इससे पहले इंद्रजीत सरोज 2012 और 2007 के चुनाव में भी बीएसपी के टिकट पर इस सीट से जीते थे. 


 







इन आंकड़ों से एक बात स्पष्ट होती है कि इन सीटों पर बसपा हारी जरूर है. लेकिन उसका वोट बैंक बना हुआ है. इस वोट बैंक में अगर ब्राह्मण समाज और अन्य समाज का वोट उसे मिल जाए तो नतीजे उसके फेवर में आ सकते हैं. इसलिए बसपा पिछले साल से ही ब्राह्मणों को लुभाने में लगी हुई है. थिंकटैंक सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक 2019 के चुनाव में 82 फीसदी ब्राह्मणों ने बीजेपी और उसके सहयोगियों के लिए वोट किया था. यह चुनाव बसपा ने सपा के साथ लड़ा था. इस गठबंधन को ब्राह्मणों का केवल 6 फीसदी वोट मिला था. ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि सतीश चंद्र मिश्र कितने ब्राह्मणों को अपनी ओर कर पाते हैं. 


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