देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश ने अबतक 20 मुख्यमंत्रियों का शासन देखा है. इनमें से एक मुख्यमंत्री ऐसे थे, जो पद पर रहते हुए ही चुनाव हार गए थे. उन्हें भरे सदन में अपने इस्तीफे की घोषणा करनी पड़ी थी. आइए हम आपको बताते हैं कि इस मुख्यमंत्री का नाम क्या था. वो किस पार्टी से जुड़े हुए थे. और इसके पीछे की राजनीति क्या थी.
कांग्रेस की आपसी लड़ाई
दरअसल यह मामला उस समय का है जब कांग्रेस दो टुकड़ों में बंटी हुई थी. और उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की सरकार से कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया था. उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था. ऐसे में कांग्रेस सिंडिकेट ने गांधीवादी त्रिभुवन नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया. उन्होंने 18 अक्तूबर 1970 को जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो वो विधानसभा के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे. उन्हें 6 महीने में किसी सदन का चुनाव लड़कर सदस्य बनना था.
Punjab: इंदिरा गांधी का बलिदान भूली पंजाब सरकार ? सुनील जाखड़ ने पुराने विज्ञापन के जरिए कसा तंज
ऐसे में उपचुनाव लड़ने के लिए त्रिभुवन नारायण सिंह के लिए गोरखपुर जिले की मानीराम विधानसभा सीट चुनी गई. हिंदू महासभा के नेता और गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ वहां से विधायक चुने गए थे. लेकिन गोरखपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में जीत जाने के बाद उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था. मानीराम में कांग्रेस (ऑर्गेनाइजेशन) के उम्मीदवार त्रिभुवन नारायण सिंह को हिंदू महासभा समेत 4 विपक्षी दलों का समर्थन मिला.
उपचुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने त्रिभुवन सिंह के खिलाफ रामकृष्ण द्विदेवी को मैदान में उतारा. वो मानीराम के ही रहने वाले थे. नेहरू और शास्त्री जी की सरकार में मंत्री रह चुके त्रिभुवन सिंह के सामने रामकृष्ण द्विदेवी एकदम नौसिखिया थे. वाराणसी के रहने वाले त्रिभुवन नारायण सिंह ने 1957 के लोकसभा चुनाव में चंदौली से राममनोहर लोहिया जैसी दिग्गज समाजवादी को हराया थे. इससे उनके राजनीतिक कद का अंदाजा लगाया जा सकता है.
अपना ही चुनाव प्रचार नहीं करने गए मुख्यमंत्री
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उपचुनाव में चुनाव प्रचार करने नहीं जाते थे. इसी रास्ते पर त्रिभुवन नारायण सिंह भी चले. वो अपना ही चुनाव प्रचार करने नहीं गए. लेकिन इंदिरा गांधी तो इंदिरा गांधी थीं, वो रामकृष्ण द्विदेवी का प्रचार करने मानीराम पहुंचीं. जब वो एक चुनाव रैली को संबोधित करने जा रही थीं तो हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं ने जोरदार हूंटिंग की. प्रचार मंच से इंदिरा ने जोरदार भाषण दिया. उन्होंने बनारस में हुए गोलीकांड को लेकर सरकार की खिंचाई कर दी. इस गोलीकांड में कई छात्र मारे गए थे. मानीराम में इंदिरा गांधी के चुनाव प्रचार का व्यापक असर हुआ. यह असर इतना तगड़ा था कि त्रिभुवन नारायण सिंह 16 हजार वोट के अंतर से चुनाव हार गए.
हार की सूचना 3 अप्रैल 1971 को त्रिभुवन नारायण सिंह को उस समय मिली जब विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा चल रही थी. सदन में ही उन्होंने भारी मन से अपनी हार और इस्तीफे की सूचना दी. उत्तर प्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ था जब कोई मुख्यमंत्री चुनाव हार गया था. इसके अगले ही दिन कमलापति त्रिपाठी को मुख्यमंत्री बनाया गया. उन्होंने मुख्यमंत्री को हराने वाले रामकृष्ण द्विवेदी को राज्यमंत्री बनाया.