छुट्टा जानवरों के प्रकोप से संगम नगरी प्रयागराज के किसान भी अछूते नहीं हैं. प्रयागराज के यमुनापार इलाके में तो ये छुट्टा जानवर किसानों के लिए बहुत बड़ी समस्या साबित हो रहे हैं. करछना तहसील के चंपतपुर गांव में तो छुट्टा जानवरों का इतना आतंक है कि वह मिनटों में किसानों की फसल को रौंद देते हैं. किसान अपनी जमा पूंजी लगाकर जो फसल तैयार करते हैं, वह उनकी आंख के सामने ही बर्बाद हो जाती है. 


किसान कैसे कर रहे हैं अपनी फसल की सुरक्षा


चंपतपुर गांव में तो अब आधे से ज्यादा किसानों ने अपने खेतों की मेड़ पर बाउंड्री वॉल खड़ी कर दी है. किसी ने ईंट की दीवार बनाकर अंदर दाखिल होने के लिए लोहे का गेट लगा लिया है तो किसी ने बांस-तार और रस्सियों के सहारे अपने खेतों को बाड़े में तब्दील कर दिया है. किसी ने लोहे की जाली लगवा दी है तो किसी ने कपड़े का घेरा खड़ा कर दिया है. हालांकि इन सब एहतियाती और खर्चीले कदम उठाए जाने के बावजूद नीलगाय समेत दूसरे आवारा जानवर उनकी फसलों को नुकसान पहुंचा ही देते हैं.


यह संवाददाता जब गांव में पहुंचा तो कई आवारा जानवर एक खेत में घुसकर फसलों को चरते और नुकसान पहुंचाते हुए नजर आए. बेबस किसान दूर से ही आवाज लगाकर उन्हें भगाते हुए दिखाई दिए, लेकिन वह फसल को बर्बाद होने से रोक नहीं सके. वैसे यह समस्या अकेले चंपतपुर गांव की ही नहीं, बल्कि प्रयागराज के तकरीबन हर एक गांव की यही कहानी है. यहां 90 फीसदी से ज्यादा किसान छुट्टा जानवरों के कहर से परेशान रहते हैं.


कबसे फसलें बर्बाद कर रहे हैं आवारा पशु


पिछले 5 साल में कई बार किसानों की फसलें आवारा जानवरों की वजह से बर्बाद हुई है. उन्होंने तमाम बार नेताओं से लेकर अफसरों के हाथ पैर जोड़े हैं. मिन्नतें की हैं, लेकिन समस्या का कहीं किसी स्तर पर कोई समाधान नहीं हुआ है. यूपी में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है, लेकिन उसके बावजूद छुट्टा जानवरों की समस्या कतई मुद्दा नहीं बन सकी है.


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किसान इस पर चर्चा तो कर रहे हैं लेकिन इस मुद्दे पर नेताओं और सियासी पार्टियों को घेरने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. कहीं जाति के नाम पर वोट डालने की तैयारी है तो कहीं धर्म के नाम पर. कहीं नेताओं के चेहरे पर मतदान होगा तो कहीं पार्टियों के सिंबल के आधार पर. ऐसे में नब्बे फीसद किसानों की समस्या कितना बड़ा मुद्दा बन पाएगी. किसान इस मुद्दे पर कितने वोट डालेंगे और नेताओं व पार्टियों के एजेंडे में यह मुद्दा कितनी जगह पा पाएगा, इस बारे में कुछ भी कह पाना मुश्किल है. कुछ एक किसान अभी नाराजगी जताते हुए छुट्टा जानवरों और अपनी फसलें बर्बाद होने को बड़ी समस्या बताते हुए इस बार इस पर वोट डालने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन मतदान की तारीख आते आते उन्हें यह समस्या और यह मुद्दा कितना याद रहेगा, इस पर पूरे दावे के साथ अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता.


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