उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) की तस्वीर अब साफ होती जा रही है. गठबंधन आकार ले चुके हैं. सत्तारूढ बीजेपी (BJP) का अपना दल (एस) (Apna Dal-S) और निषाद पार्टी (NISHAD) से समझौता है. वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने सुभासपा (SBSP) और महान दल से हाथ मिलाया है. आने वाले दिनों में सपा का कुछ और छोटे दलों और शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) की पार्टी से समझौता कर सकती है. वहीं बसपा (BSP) और कांग्रेस (Congress) ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. चुनाव प्रचार में कांग्रेस का चेहरा बनाई गईं प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi Vadra) ने रविवार को कहा कि उनकी पार्टी सभी 403 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी. आइए जानते हैं कि यह कांग्रेस की रणनीति है या मजबूरी. 


क्या लोगों की लड़ाई कांग्रेस अकेले लड़ रही है? 


कांग्रेस ने रविवार को अनूपशहर में पदाधिकारी प्रतिज्ञा सम्मेलन का आयोजित की थी. इसमें कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ऐलान किया कि अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव कांग्रेस सभी 403 सीटों पर अकेले लड़ेगी. उनका कहना था कि उन्नाव रेपकांड और हाथरस रेपकांड में सपा-बसपा कहीं नजर नहीं आई थीं. उनका कहना था कि कांग्रेस ही लोगों की लड़ाई लड़ रही है. और वह विधानसभा का चुनाव भी अकेले ही लड़ेगी. 


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कांग्रेस महासचिव का बयान ऐसे समय आया है, जब विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन आकार ले चुके हैं. कांग्रेस की तरफ बड़ी पार्टियों ने हाथ तो नहीं बढ़ाए. लेकिन कांग्रेस ने राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) से गठबंधन की कोशिश जरूर की, जो परवान नहीं चढ़ पाई. कांग्रेस ने रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को पंजाब या राजस्थान से राज्य सभा भेजने और चुनाव में 40 सीटें तक देने का आश्वासन दिया था. लेकिन अंत में जयंत ने सपा के साथ जाना ही बेहतर समझा. सपा-रालोद ने अभी सीटों के बंटवारे की घोषणा नहीं की है. ऐसी खबरें हैं कि दोनों दल 21 नवंबर को लखनऊ में इसकी घोषणा करेंगे.  


सपा ने 2017 का चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. लेकिन जनता ने इस गठबंधन को नकार दिया. सपा उस समय सत्ता में थी. लेकिन जब परिणाम आए तो सपा के हिस्से में 47 और कांग्रेस के हिस्से में केवल 7 सीटें ही आईं. इससे चोट खाए अखिलेश यादव ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि वो 2022 के चुनाव में किसी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. उनकी इस घोषणा ने भी सपा के साथ कांग्रेस के गठबंधन की संभावनाओं को खत्म कर दिया. हालांकि कांग्रेस के एक बड़े नेता इमराम मशूद ने अपने पार्टी नेतृ्तव से सपा के साथ गठबंधन करने की अपील की थी. 


मायावती की बसपा भी अकेले लड़ रही है चुनाव


उत्तर प्रदेश की एक और बड़ी राजनीतिक शक्ति बहुजन समाज पार्टी ने भी यह चुनाव अकेले ही लड़ने का फैसला किया है. उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के गठबंधन को ऐतिहासिक माना जाता है. कहा जाता है कि अगर दोनों दलों के वोट बैंक मिल जाएं तो उत्तर प्रदेश में बड़ा बदलाव हो सकता है. दोनों दलों ने 1993 में गठबंधन किया था. लेकिन 1995 में दोनों की राहें जुदा हो गईं. दोनों दल 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर साथ आए. लेकिन जब चुनाव परिणाम आया तो इस वोट बैंक की हवा निकल गई थी. बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग के आगे सपा-बसपा टिक नहीं पाए. इसके बाद दोनों दलों एक बार फिर अलग हो गए. 


बसपा ने भी अकेले ही विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है. ऐसे में कांग्रेस को बसपा से भी कोई उम्मीद नहीं थी. हालांकि मायावती की मां के निधन पर प्रियंका गांधी रविवार को दिल्ली में बसपा के कार्यालय गई थीं. वहां उनकी मायावती से उनकी मुलाकात भी हुई. मायावती ने उनकी पीठ भी थपथपाई थी. लेकिन यह संवेदना जताने का अवसर था. इन परिस्थितियों को देखते हुए लगता है कि कांग्रेस के पास अकेले चुनाव में जाने के अलावा कोई चारा भी नहीं था. उत्तर प्रदेश में नजरें अब चुनाव के बाद बनने वाले गठबंधन पर टिकी हैं. 


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