उत्तर प्रदेश विधानसभा (UP Assembly Election 2022) अगले साल होने हैं. राजनीतिक विश्लेषकों और सर्वे के आंकड़ों के बता रहे हैं कि इस बार सत्तारूढ़ बीजेपी (BJP) का मुकाबला समाजवादी पार्टी (SP) से होगा. इस चुनाव में बसपा (BSP)और कांग्रेस (Congress) भी मजबूती से अपनी दावेदारी पेश करेंगी. आइए नजर डालते हैं कि 2002 और 2019 के बीच हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपना वोट कैसे और कितना बढ़ाया है.
पहले बात करते हैं विधानसभा चुनावों की
उत्तर प्रदेश के बंटवारे के बाद 2002 का विधानसभा चुनाव 403 सीटों पर हुआ. बीजेपी ने 320 सीटों पर चुनाव लड़कर 88 सीटें जीती थीं. उसे 20.08 फीसदी वोट मिले थे. सपा ने यह चुनाव 390 सीटों पर लड़ा था. उसने 143 सीटों पर जीती थीं. सपा को 25.37 फीसदी वोट मिले थे. बसपा ने 401 सीटों पर चुनाव लड़कर 98 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उसे 23.06 फीसद वोट मिले थे. कांग्रेस ने 402 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसने 25 सीटें जीती थीं. कांग्रेस को 8.96 फीसद वोट मिले थे.
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वहीं 2007 का विधानसभा चुनाव बीजेपी ने 350 सीटों पर लड़ा था. लेकिन उसे 51 सीटों पर ही जीत मिली थी. उसपर 16.97 फीसदी वोट मतदाताओं ने विश्वास जताया था. वहीं 393 सीटों पर लड़ने वाली सपा 97 सीटें ही जीत पाई थी. उसे 25.43 फीसदी मिले थे. बसपा के लिए 2007 का चुनाव ऐतिहासिक था. उसने 403 सीटों पर चुनाव लड़कर 206 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उस पर 30.43 फीसद मतदाताओं ने विश्वास जताया था. कांग्रेस ने यह चुनाव 393 सीटों पर लड़ा. लेकिन उसे 22 पर ही जीत मिली. उसे 8.61 फीसदी वोट मिले थे.
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 398 उम्मीदवार उतारे थे. उसे केवल 15 फीसद वोट और 47 सीटें ही मिली थीं. वहीं 403 सीटों पर लड़ने वाली बीएसपी केवल 80 सीटें ही जीत पाई थी. उसे 25.91 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस 11.65 वोटों के साथ केवल 28 सीटें ही जीत पाई थी. लेकिन 401 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली सपा को 224 जीत मिली थी. उसे 29.13 फीसदी वोट मिले थे.
साल 2017 का चुनाव बीजेपी ने 384 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 312 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उसे 39.67 फीसदी वोट मिले थे. वहीं सपा को इस चुनाव में केवल 47 सीटें ही मिलीं. उसने कांग्रेस से समझौता कर 311 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसे 21.82 फीसदी वोट मिले थे. बसपा ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा. उसे केवल 19 सीटें और 22.23 फीसदी वोट मिले थे. वहीं सपा की सहयोगी कांग्रेस ने 114 सीटों पर चुनाव लड़ा. लेकिन वह केलल 7 सीटें ही जीत पाई थी. कांग्रेस को 6.25 फीसद वोट मिले थे.
इस तरह हम पाते हैं कि 2002 से 2012 के दौरान बीजेपी को 15 से 23 फीसद के बीच वोट मिले. लेकिन 2017 में उसे अचानक से करीब 40 फीसदी वोट मिल गए. यह वह समय था, जब नरेंद्र मोदी की आंधी चल रही थी. लेकिन इसी दौरान बीजेपी को दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों में हार का भी सामना करना पड़ा था.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन कैसा रहा
साल 2004 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें थीं. बीजेपी ने 77 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसने 10 सीटें जीती थीं. उसे 22.17 फीसदी वोट मिले थे. वहीं बसपा ने 19 सीटें जीतते हुए 24.67 फीसदी वोट अपने नाम किए थे. कांग्रेस के हिस्से में 9 सीटें इस चुनाव में आई थीं. उस पर 12.04 फीसदी मतदाताओं ने भरोसा जताया था. इस चुनाव में सबसे शानदार प्रदर्शन सपा का था. सपा ने 26.74 फीसदी वोटों लाकर 35 सीटें जीती थीं.
वहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 10 सीटें जीती थीं. उसे 17.5 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस ने 21 सीटें जीती थीं और उसे 18.5 फीसदी वोट मिले थे. बसपा ने 20 सीटें जीतते हुए 27.42 फीसदी वोट हासिल किए थे. समाजवादी पार्टी ने 23 सीटें जीती थीं. उसे 23.26 फीसदी वोट मिले थे.
मोदी युग की शुरुआत
इसी तरह 2014 के चुनाव में बीजेपी ने 42.63 वोट हासिल करते हुए 71 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं कांग्रेस को 7.53 फीसद वोट और दो सीटों से संतोष करना पड़ा था. इसी तरह समाजवादी पार्टी ने 22.35 फीसदी वोट लाते हुए 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन 19.77 फीसदी वोट पाने के बाद भी बसपा कोई सीट नहीं जीत पाई थी.
वहीं 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 49.97 फीसदी वोट लाकर 62 सीटों पर जीत दर्ज कराई थी. बसपा ने 19.42 फीसदी वोट लाकर 10 सीटें अपनी झोली में डाली थीं. वहीं समाजवादी पार्टी ने 18.11 फीसदी वोट लाकर 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी. साल 2019 का चुनाव सपा-बसपा ने गठबंधन कर 37-38 सीटों पर लगा था. कांग्रेस 6.36 फीसद वोट पाकर केवल एक सीट ही जीत पाई थी.
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 2004 और 2009 में क्रमश: 22.17 और 17.5 फीसद वोट मिले थे. लेकिन 2014 में यह संख्या बढ़कर 42.63 फीसदी हो गया. यह देश में नरेंद्र मोदी युग की शुरुआत थी. वहीं 2019 के चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 49.97 फीसद हो गया. उसने यह तब किया जब उसकी दो प्रमुख विरोधी उसे हराने के लिए एक हो गए थे.
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