पिछले दिनों खबर आई कि बसपा (BSP) प्रमुख मायावती (Mayawati) ने चिल्लूपार से विधायक विनय शंकर तिवारी को पार्टी से निकाल दिया है. बसपा ने यह कदम ऐसे समय उठाया, जब 2-3 महीने बाद ही विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022)होने हैं. राजनीतिक विश्लेषक इसे गलत समय पर उठाया गया फैसला बता रहे हैं. वहीं बसपा समर्थकों को लगता है कि इसका चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उनका कहना है कि बहन जी अनुशासनहीनता से कोई समझौता नहीं करती हैं.
बसपा में निष्कासन की राजनीति
बसपा ने 2017 के चुनाव में 19 सीटें जीती थीं. बसपा ने अपने अधिकांश विधायकों को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में बाहर का रास्ता दिखा दिया है. केवल 3 विधायक ऐसे हैं, जिन्हें बसपा आगामी चुनाव में टिकट दे सकती हैं. ये हैं बलिया की रसड़ा सीट से जीतकर आए उमाशंकर सिंह, आजमगढ़ लालगंज से जीते आजाद अली मर्दन और मथुरा के मांट से जीते श्याम सुंदर शर्मा.
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पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भी पार्टी ने कई बड़े नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया था. इनमें प्रमुख थे स्वामी प्रसाद मौर्य. वो बसपा का ओबीसी चेहरा माने जाते थे. वो बाद में बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी ने उन्हें उनकी पडरौना सीट से टिकट भी दिया. वो जीते. इस समय वो योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री हैं. बसपा ने चुनाव के बाद मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बाहर का रास्ता दिखा दिया. उन पर भी पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया था. बाद में वो कांग्रेस में शामिल हो गए.
इसी तरह पिछड़े वर्ग के दो नेता और विधायक राम अचल राजभर और लालजी वर्मा को भी बसपा ने बाहर कर दिया. ये दोनों नेता सपा में शामिल हो गए. वहीं मऊ से जीते मुख्तार अंसारी का टिकट बसपा ने काट दिया है. पार्टी ने कहा है कि अब वो बाहुबलियों को टिकट नहीं देगी.
बसपा ने 5 साल में बदले 4 प्रदेश अध्यक्ष
बसपा ने पिछले 5 साल में 4 प्रदेश अध्यक्ष बदले हैं. बसपा ने 2018 में राम अचल राजभर को हटाकर आरएस कुशवाहा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. उनके बाद 2019 में मुनकाद अली को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. इसके अगले साल भीम राजभर प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए. अभी वो ही प्रदेश अध्यक्ष हैं.
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बसपा के लिए इतने बदलाव चिंता करने वाले हैं. लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि इन फैसलों का असर चुनाव पर नहीं होगा. बसपा में मायावती का फैसला सर्वोच्च होता है. इन फैसलों के देखने के बाद लगता है कि उनके पास चुनाव की कोई और रणनीति भी है. दरअसल पार्टी अब अपना प्रभाव ब्राह्मण और अन्य सवर्ण जातियों में बढ़ाना चाहती है. उसकी नजर मुसलमानों पर भी है, जो पहले भी उसके साथ थे. जाटव जाति अभी भी उनके साथ बनी हुई है.
सवर्ण वोटों पर है बसपा की नजर
सवर्ण जातियों खासकर ब्राह्मणों को आकर्षित करने के अभियान पर सतीश चंद्र मिश्र लगे हुए हैं. उन्हें बसपा में मायावती के बाद दूसरे नंबर का नेता माना जाता है. वो पिछले कई महीने से प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन कर रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक यूपी में दलित और ब्राह्मण वोट करीब 36 फीसदी है.
बसपा की नजर पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाट और मुसलमान वोटों पर भी लगी हुई है. इसके लिए उसने इन समुदायों से आने वाले अपने नेताओं को उतारा है. इसके जरिए वह सपा-रालोद के असर को कम करना चाहती है.
बसपा की नजर प्रदेश की 86 आरक्षित सीटों पर भी लगी हुई है. इन सीटों पर उसका वोट बैंक तो है. लेकिन पिछले चुनाव में बसपा इनमें से केवल 2 सीटें ही जीत पाई थी. बीजेपी ने 70 सीटों पर कब्जा जमाया था. इन सीटों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए बसपा भाईचारा बढ़ाने पर जोर दे रही है.
बसपा का वोट बैंक
बसपा उत्तर प्रदेश की सत्ता से 2012 से दूर है. लेकिन उसका वोट बैंक कमोबेश उसके साथ बना हुआ है. बसपा ने 2007 में अपने दम पर यूपी की सत्ता पर कब्जा जमाया था. उस समय उसे 30.43 फीसदी वोट और 206 सीटें मिली थीं. वहीं 2012 के चुनाव में उसे 25.95 फीसदी वोट और 80 सीटें मिलीं. साल 2017 के चुनाव में उसे 22.23 फीसदी वोट और 19 सीटें मिली थीं. वहीं सपा का वोट फीसद बसपा से कम था लेकिन उसकी सीटें 44 आई थीं.
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बसपा की तैयारियों को इस तरह से भी समझा जा सकता है. वह कभी भी चुनाव घोषणा पत्र जारी नहीं करती है. लेकिन इस बार मायावती ने एक फोल्डर जारी किया. इसमें पहले ही बसपा की सरकारों में हुए काम का ब्यौरा दिया गया है. पार्टी का कहना है कि इस फोल्डर को सभी 403 विधानसभा सीटों के गांव-गावं में पहुंचाया जाएगा. पार्टी कार्यकर्ता लोगों को बताएंगे कि मायावती के मुख्यमंत्री बनने पर बसपा विकास और जनकल्याण के काम करेगी.