नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi) के तीन कृषि कानूनों (Agriculture laws) के विरोध में देश भर में किसान आंदोलन (Farmer Protest) कर रहे हैं. यह आंदोलन पिछले साल से जारी है. उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) होने हैं. सत्ताधारी बीजेपी (BJP) को किसानों के आंदोलन से होने वाले नुकसान का डर सता रहा है तो विपक्ष किसानों को अपनी ओर करने की योजनाएं बना रहे हैं. किसान आंदोलन को पहले पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों का आंदोलन माना जा रहा था. लेकिन हाल के दिनों में यह पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी मजबूत हुआ है. आइए इससे निपटने की कैसी रणनीत बना रहे हैं राजनीतिक दल.
किसान आंदोलन के बाद कब हुआ चुनाव?
किसान आंदोलन शुरू होने के बाद यूपी में केवल पंचायत की ही चुनाव हुआ है. प्रदेश में जिला पंचायत सदस्य की 3050 सीटें हैं. मई में हुए चुनाव में 759 सीटें सपा, 768 सीटें बीजेपी, 319 सीटें बसपा, 125 सीटें कांग्रेस, 69 सीटें रालोद और 64 सीटें आप ने जीती थीं. वहीं 944 सीटें निर्दलियों ने जीती थीं. यानी कि बीजेपी केवल एक चौथाई सीटें ही जीत पाई थी. वहीं मुख्य विपक्षी दल सपा भी बीजेपी के आसपास ही सीटें जीत पाई थी. लेकिन अगर विपक्ष की सभी सीटों को मिला दिया जाए, तो उन्होंने बीजेपी से कहीं अधिक बड़ी जीत दर्ज की थी. बीजेपी ने जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अधिकांश सीटें जीत लीं. विपक्ष ने उस पर इस चुनाव में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना था कि जिला पंचायच अध्यक्ष चुनाव के जरिए बीजेपी ने यह दिखाने की कोशिश की कि यूपी में किसान आंदोलन बेअसर है.
माना जाता है कि किसान आंदोलन का असर पंचायत चुनाव के नतीजों पर पड़ा. इसने बीजेपी को चिंतित किया. इससे चिंतित बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के लिए अलग से रणनीति बनाई है. उसकी कोशिश है कि किसान आंदोलन से पश्चिम उत्तर प्रदेश में होने वाले नुकसान की भरपाई पूर्वी उत्तर प्रदेश से की जाए. इसलिए अभी उसका सारा फोकस पूर्वी उत्तर प्रदेश पर है. इसी वजह से प्रधानमंत्री के सभी कार्यक्रम अबतक पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही हुए हैं. आने वाले दिनों में भी पीए पूर्वांचल जाएंगे.
सपा और कांग्रेस की कोशिश
वहीं उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी का जोर पूरब-पश्चिम को एक साथ साधने पर है. इसके लिए वो पूर्वांचल में सक्रिय छोटे दलों के साथ गठबंधन कर रही है. इसमें ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के साथ हुआ उसका समझौता प्रमुख है. वहीं वह पश्चिम उत्तर प्रदेश की पार्टी मानी जाने वाले राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन के प्रयास में है. माना जा रहा है कि 2017 में बीजेपी के साथ गए जाट इस बार रालोद के साथ हैं. रालोद को मुसलमानों का भी समर्थन हासिल होगा. जो मुजफ्फरनगर दंगे के बाद उससे दूर चले गए थे. लेकिन किसान आदोलन ने इस दूरी को मिटा दिया है. ऐसी भी खबरें है कि कांग्रेस भी गठबंधन के लिए रालोद के संपर्क में है. लेकिन रालोद ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं.
दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बसपा किसानों के मुद्दे पर सड़क पर तो नहीं आई. लेकिन उनसे नैतिक तौर पर किसानों के आंदोलन का समर्थन जरूर किया. वहीं कांग्रेस खुलकर किसान आंदोलन का समर्थन में है. उसने 10 फरवरी से किसान महापंचायतों का आयोजन शुरू किया था. पहली महापंचायत सहारनपुर में हुई थी. कांग्रेस अब 'किसान न्याय रैली' कर रही है. पहली रैली 10 अक्तूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में और दूसरी 31 अक्तूबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह क्षेत्र गोरखपुर में. कांग्रेस पूरब-पश्चिम दोनों के किसानों को अपने पाले में करने की फिराक में है.
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