UP Election 2022: उत्तर प्रदेश की राजनीति में अकेले होना क्या कांग्रेस की रणनीति है?
UP Election 2022: कांग्रेस ने 2017 का विधानसभा चुनाव सपा के साथ लड़ा था. लेकिन क्या वो 2022 के चुनाव में बिल्कुल अकेली है. कोई दल कांग्रेस से समझौता क्यों नहीं करता है. आइए करते हैं इसकी पड़ताल.
उत्तर प्रदेश में अपनी हालत सुधारने के लिए कांग्रेस जी-तोड़ मेहनत करती हुई नजर आ रही है. उसके नेता जमकर पसीना बहा रहे हैं. कांग्रेस (Congress)ने प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) को चुनाव प्रचार का प्रमुख बनाया है. वो कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के काम में जोर-शोर से लगी हुई हैं. कांग्रेस 1989 के बाद से उत्तर प्रदेश की सत्ता से गायब है. पिछले चुनाव गठबंधन में लड़ने वाली कांग्रेस यूपी के चुनावी जंग (UP Assembly Election)में इस समय अकेली है. क्या यह उसकी रणनीति का हिस्सा है.
2017 में कांग्रेस को कितनी सीटें मिली थीं?
कांग्रेस ने 2017 का विधानसभा चुनाव सपा के साथ लड़ा था. राहुल गांधी और अखिलेश यादव के इस गठबंधन को जनता ने नकार दिया था. सपा 47 और कांग्रेस 7 सीटों पर सिमट गई थी. कांग्रेस ने 2019 का लोकसभा चुनाव और बेमन से लड़ा. यहां तक कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने गढ़ अमेठी में हार गए. सपा ने लोकसभा चुनाव के बाद किसी बड़े दल से गठबंधन से इनकार कर दिया.
सपा और बसपा ने कांग्रेस से किनारा कर लिया है. दोनों के साथ पहले कांग्रेस का गठबंधन रह चुका है. ऐसे में कांग्रेस पश्चिम में राष्ट्रीय लोकदल से तालमेल की कोशिश में थी. इसे तब बल मिला जब 31 अक्तूबर को रालोद प्रमुख जयंत चौधरी लखनऊ से प्रियंका गांधी के साथ जहाज से दिल्ली लौटे. यह खबर भी आई कि कांग्रेस ने जयंत को राजस्थान या पंजाब से राज्य सभा भेजने का आश्वासन दिया है. इस बीच शनिवार को खबर आई कि सपा-रालोद गठबंधन की घोषणा 21 नवंबर को लखनऊ में होगी. जयंत ने रविवार को इसकी पुष्टि भी कर दी.
कांग्रेस को जयंत चौधरी ने भी दिया झटका
जयंत चौधरी के बयान से कांग्रेस की कोशिशों को झटका लगा. उसे उम्मीद थी कि पश्चिम में जयंत के रूप में उसे एक मजबूत साथी मिल जाएगा. क्योंकि प्रियंका ने अबतक पश्चिम में सक्रियता नहीं दिखाई है. वो अबतक पूर्वांचल में में ही सक्रिय हैं. जयंत के इनकार के बाद यूपी में कांग्रेस बिल्कुल अकेले है.
यूपी में तीसरे नंबर की पार्टी बसपा से उसके रिश्ते पहले से ही ठीक नहीं हैं. यूपी का प्रभारी बनने के बाद प्रियंका ने कई बार बसपा और मायावती पर निशाना साधा है. वह भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर से भी जबतब मिलती रहती हैं. इससे बसपा असहज होती है. दोनों दलों में जुबानी जंग भी हुई है. पंजाब में बसपा का अकाली दल से गठबंधन है. इस गठबंधन ने भी कांग्रेस से उसके रिश्ते को प्रभावित किया है. दोनों राज्यों के चुनाव एक साथ होने हैं. पंजाब में जिन 20 सीटों पर बसपा चुनाव लड़ेगी, उनमें से 18 कांग्रेस के पास हैं. यूपी में जिस तरह से पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी सक्रिय हुए हैं, बसपा उससे भी परेशान है. कांग्रेस के पास उत्तर प्रदेश में खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है. लेकिन वह दलित राजनीति के जरिए पंजाब की राजनीति को साध रही है.
इसका परिणाम यह हुआ है कि गठबंधन की राजनीति के इस दौर में कांग्रेस उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में बिल्लुक अकेले पड़ गई है. कांग्रेस के लिए गठबंधन कितना जरूरी है, इसे बिहार में दो सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम से समझ सकते हैं. कांग्रेस 2020 के चुनाव में कुशेस्वर स्थान सीट पर गठबंधन में लड़ी थी. उसके उम्मीदवार को दूसरा स्थान मिला था. लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस गठबंधन से अलग होकर लड़ी तो जमानत भी नहीं बचा पाई.
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