उत्तर प्रदेश विधानसभा (UP Assembly Election 2022) के चुनाव अगलेसाल होने हैं. माना जा रहा है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में जनाधार रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल (RLD) का समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) से समझौता हो जाएगा. हालांकि कांग्रेस (Congress) भी आरएलडी पर समझौते के लिए डोरे डाल रही है. आइए देखते हैं कि पिछले 4 विधानसभा और लोकसभा के चुनाव (Loksabha Election) में कैसा रहा है आरएलडी का प्रदर्शन. आंकड़ें बताते हैं कि आरएलडी ने चुनाव में सबसे अच्छा प्रदर्शन तब किया है, जब बीजेपी उसकी सहयोगी रही है.
आरएलडी बदलती रही है अपने सहयोगी
आरएलडी ने 2002 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ गठबंधन कर लड़ा था. आरएलडी ने 38 सीटों पर चुनाव लड़कर 14 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उसे 2.48 फीसदी वोट मिले थे. इसके बाद 2007 में हुए चुनाव को आरएलडी ने अकेले लड़ा. आरएलडी ने यह चुनाव 254 सीटों पर लड़ा था. लेकिन वह केवल 10 सीटें ही जीत पाई थी. इस चुनाव में उसे 3.70 फीसदी वोट मिले थे.
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आरएलडी ने 2012 का चुनाव कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लड़ा था. उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. और अजित सिंह उस सरकार में शामिल थे. इस चुनाव में आरएलडी ने 46 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे. इनमें से 9 सीटों पर जीत हासिल की थी. उसे 2.33 फीसदी वोट मिले थे.
वहीं 2017 का विधानसभा चुनाव आरएलडी ने फिर अकेले लड़ने का फैसला किया. लेकिन लोगों को उसका यह फैसला पसंद नहीं आया. आरएलडी ने 277 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन वह केवल एक सीट ही जीत पाई थी. वहीं 266 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी. बाद में उसके एक जीते हुए विधायक ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया.
लोकसभा चुनाव में आरएलडी का प्रदर्शन
अब अगर बात करें लोकसभा चुनावों की तो आरएलडी ने 2004 का चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ा था. इस चुनाव में उसने 3 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इनमें से 2 सामान्य और 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट थी. उसे 4 फीसदी वोट मिले थे.
आरएलडी ने 2009 का चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा था. इस चुनाव में उसने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उसे 3 फीसदी वोट मिले थे. आरएलडी का यह अबतक का सबसे शानदार प्रदर्शन था. लेकिन 2014 के चुनाव में आरएलडी ने अपना साथी बदल लिया. यह चुनाव उसने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा. लेकिन वह कोई भी सीट जीत पाने में सफल नहीं रही. उसे केवल 1 फीसदी वोट मिला.
वहीं 2019 के चुनाव में सपा-बसपा जब करीब 24 साल बाद एक साथ आए थे. इस चुनाव में सपा ने अपने कोटे से एक सीट आरएलडी को दी थी. लेकिन इस चुनाव में आरएलडी का खाता भी नहीं खुला. हालांकि उसे 2 फीसदी वोट मिले थे.
अजित सिंह के निधन के बाद अब आरएलडी की जिम्मेदारी उनके बेटे जयंत चौधरी पर है. जयंत के नेतृत्व में आरएलडी पहली बार चुनाव मैदान में है. माना जाता है कि आरएलडी को जाट बड़े पैमाने पर समर्थन करते हैं. किसान आंदोलन की वजह से इस बार जाट बीजेपी से नाराज हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी से नाराज जाटों और अन्य किसानों का आरएलडी को कितना समर्थन मिलता है.
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