उत्तर प्रदेश के शामली जिले के कैराना को शास्त्रीय संगीत के 'किराना घराना' के लिए जाना जाता है. लेकिन 2015 में कैराना राजनीतिक वजहों से चर्चा में आ गया था. उस समय कैराना से बीजेपी सांसद हुकुम (Hukum Singh) सिंह ने कहा था कि कई हिंदू परिवार कैराना से पलायन कर गए हैं. उन्होंने बताया था कि कई घरों के बाहर लिखा हुआ है, 'यह घर बिकाऊ है.' उनका कहना था कि एक खास समुदाय के लोगों की धमकियों और वसूली की वजह से 346 परिवार कैराना से पलायन कर गए हैं. उनका इशारा मुसलमानों की ओर था. बीजेपी (BJP) ने इसे चुनावी (UP Assembly Election)मुद्दा बना दिया. लेकिन बीजेपी कैराना में इस मुद्दे को नहीं भुना पाई. आइए जानते हैं कि कैराना लोकसभा सीट का इतिहास क्या रहा है.
कैराना में किस दल का रहा है वस्चर्व?
कैराना लोकसभा सीट पर मुस्लिम और जाट का बहुमत है. इन दोनों समुदायों का साध लेने वाला व्यक्ति वहां से चुनाव जीत जाता है. लेकिन कोई भी दल यहां से दो बार से ज्यादा लगातार नहीं जीत पाया है. यहां कभी भी किसी एक दल का वस्चर्व नहीं रहा. यह सीट 1962 के चुनाव में अस्तीत्व में आई थी. उस चुनाव में देश में कांग्रेस की आंधी चली थी. लेकिन कैराना ने निर्दलीय उम्मीदवार यशपाल सिंह पर भरोसा जताया था. उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज अजीत प्रसाद जैन को हराया था. जैन 1951 में सहारनपुर लोकसभा सीट से सांसद रह चुके थे.
वहीं 1967 में हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के हाथों हार गई. कांग्रेस को यहां सफलता तब मिली जब 1971 के चुनाव में उसने मुस्लिम उम्मीदवार उतारा. उसने शफाकत जंग को टिकट दिया था. इसके बाद 1977 और 1980 का चुनाव जनता पार्टी के चौधरी चरण सिंह और उनकी पत्नी गायत्री देवी ने जीता. गायत्री देवी जनता पार्टी (सेक्युलर) की उम्मीदवार थीं. कैराना से अंतिम बार कांग्रेस 1984 के चुनाव में जीती. तब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पैदा हुई सहानुभूति लहर में विपक्ष उड़ गया था. उस लहर में कांग्रेस के अख्तर हसन चुनाव जीते थे.
भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में बने जनता दल ने 1989 और 1991 का चुनाव कैराना में जीता था. जनता दल के बाद लगातार दो बार कैराना से जीतने के बाद कारनाना राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने कर दिखाया. रालोद के टिकट पर 1999 में आमिर आलम खान और 2004 में अनुराधा चौधरी जीतीं. आजकल उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी केवल एक बार ही कैराना से जीत सकी है. सपा के मुनव्वर हसन 1996 में जीते थे. वहीं तब्बसुम हसन ने 2009 में बसपा के टिकट पर यहां से जीती थीं.
कैराना में हुकुम सिंह का साम्राज्य
वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हुकुम सिंह ने सपा के नाहिद हसन को 2 लाख 36 हजार 828 वोटों के अंतर हराया था. हुकुम सिंह को 5 लाख 65 हजार 909 और नाहिद हसन को 3 लाख 29 हजार 81 वोट मिले थे. हुकुम सिंह के निधन के बाद कैराना में हुए उपचुनाव में विपक्ष ने एकता दिखाई. सपा की तबस्सुम हसन को रालोद ने अपना उम्मीदवार बनाया. उन्हें सपा, बसपा और कांग्रेस का समर्थन मिला. वहीं बीजेपी ने हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिया. लेकिन मृगांका सिंह अपने पिता की विरासत बचा नहीं पाईं. तबस्सुम हसन ने उन्हें 44 हजार 618 वोटों के अंतर से हरा दिया था.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बदल दिया. उन्होंने 2017 में गंगोह से विधायक का चुनाव जीते प्रदीप चौधरी को टिकट दिया. वहीं सपा ने तबस्सुम पर को टिकट दिया. लेकिन उन्हें प्रदीप ने 92 हजार 160 वोट के अंतर से हरा दिया. प्रदीप को 5 लाख 66 हजार 961 और तबस्सुम को 4 लाख 74 हजार 801 वोट मिले.