उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के तीन चरण का मतदान हो चुका है. चौथे चरण का मतदान बुधवार को कराया जाएगा. उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहा है, आवारा पशुओं की समस्या बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है. यह सत्ताधारी बीजेपी (BJP) के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है. 


उत्तर प्रदेश में गाय अधिक हैं या भैंस?


दरअसल पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुख्यतौर पर भैंसें पाई जाती हैं. लेकिन जैसे ही आप पूर्व की ओर बढ़ेंगे गायों की संख्या बढती जाएगी. साल 2019 की पशुगणना के मुताबिक आगरा में 10 लाख 67 हजार, बुलंदशहर में 9 लाख 72 हजार और अलीगढ़ में 9 लाख 42 हजार भैंस थीं. वहीं इन जिलों में अन्य पशुओं की संख्या क्रमश: 2 लाख 83 हजार, 3 लाख 4 हजार और 3 लाख 11 हजार थी. वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में भैसों की संख्या अन्य पशुओं से कम है. गोरखपुर में 2 लाख 53 हजार भैंस तो 2 लाख 87 हजार अन्य पशु हैं. देवरिया में 1 लाख 91 हजार भैंस और 2.88 हजार अन्य पशु हैं और मिर्जापुर में 2 लाख 88 हजार भैंस तो 5 लाख 11 हजार अन्य पशु हैं. 


योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली बीजेपी की सरकार ने प्रदेश में पशुओं की कटान पर सख्ती की है. इसका असर भी जमीन पर दिखता है. बस्ती जिले की हरैया तहसील के गांव बसवारी के एक किसान रामचंद्र त्रिपाठी ने अखबार 'इडियन एक्सप्रेस' को बताया कि उनके गांव में 5 साल पहले आवारा पशु नहीं दिखते थे. लेकिन आज उनके गांव में 50-60 सांड हैं. त्रिपाठी करीब 100 बीघे जमीन पर खेती करते हैं. उन्होंने 50 बीघा गन्ना, 22 बीघा गेहूं, 11 बीघा सरसों और बचे हुए खेतों पर सब्जी और चारा बोया है. उनके पास के सरसों के खेत में दर्जनों पशु खड़े दिखाई दिए.  


गोहत्या रोकने का नारा किस पार्टी ने दिया था?


इसी गांव के शिव प्रसाद वर्मा ने बताया कि आवारा पशुओं ने उनके 5 बीघे गेहूं में से 3 बीघे गेहूं की फसल को तबाह कर दिया. इसी गांव के सुधीर कुमार तिवारी 20 बीघे जमीन पर खेती करते हैं. उन्होंने 10 बीघे में गेहूं, 5 बीघे में गन्ना 3 बीघे में सरसों और 2 बीघे में मसूर बोया है. वो कहते हैं, ''पांच साल पहले हम सबने गौ हत्या बंद करो का नारा लगाते हुए 2017 और 2019 में बीजेपी को वोट दिया था. लेकिन इस बार हम हरैया से सपा उम्मीदवार त्रयंबक नाथ पाठक के साथ हैं.'' वो कहते हैं कि इसका एकमात्र कारण आवारा पशु हैं. 
योगी आदित्यनाथ की सरकार से पहले की सरकारों में आवारा पशु कोई समस्या नहीं थे. 


पहले पशुओं के काटे जाने पर पाबंदी बहुत हद तक कागजों पर ही थी. लेकिन अब आवारा पशुओं की संख्या कई गुना बढ़ गई है. आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या कितना बड़ा राजनीतिक मुद्दा है, इसे इस बात से समझ सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को उन्नाव में हुई रैली में कहा कि 10 मार्च के बाद छुट्टा जानवरों से निजात दिलाने की नीति 10 मार्च के बाद बनाई जाएगी.  


किसानों पर चौतरफा मार डाल रहे हैं आवारा पशु


आवारा पशु न केवल फसलों को नुकासन पहुंचा कर किसानों को आर्थिक तौर पर नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि उनसे बचने के लिए भी  किसानों को काफी पैसा खर्च करना पड़ रहा है. बसवारी के प्रधान जगनरायण वर्मा बताते हैं कि आवारा पशुओं को खेत में घुसने से रोकने के लिए कटीले तार लगवाने पड़ते हैं. एक बीघे खेत पर तार लगवाने पर करीब 16 हजार रुपये का खर्च आता है. 


सरकार ने आवारा पशुओं के लिए गौशालाएं बनवाई हैं. लेकिन किसान इससे खुश नहीं हैं. गोण्डा जिले के करनैलगंज के किसान शेषनारायण पासवान बताते हैं कि अगर हम अपने पशुओं को वहां ले जाएं तो वो हमसे 2 हजार रुपये की मांग करते हैं. वो कहते हैं कि गौशाला वाले सरकार को भी लूट रहे हैं. वो बताते हैं कि संचालक सरकार से गायों के लिए पैसे लेते हैं, लेकिन वो ठीक से उनकी देखभाल नहीं करते हैं. 


गौशाला के लिए कितना देती है योगी सरकार?


गौशाला में रहने वाले जानवरों के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार 30 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान करती है. करनैलगंज के मैजापुर में अगस्त 2020 में एक गौशाला खुली थी. इस समय वहां 102 पशु हैं. इस गांव की प्रधान रेखा के पति अश्वनी कुमार तिवारी बताते हैं कि एक औसत पशु को प्रतिदिन 5 किलो भूसा की जरूरत पड़ती है. इसके अलावा उसे 1 किलो चोकर, पशु चारे, ब्रान या खली की जरूरत होती है. आज भूसा या ब्रान 16 रुपये प्रतिकिलो, चोकर 22 रुपये किलो, पशुओं का चारा 24 रुपये प्रति किलो और सरसों की खली 40-42 रुपये प्रति किलों के दर से बिक रही है. ऐसे में 30 रुपये में किसी पशु के केवल भूसे की जरूरत को भी पूरा नहीं किया जा सकता है. वो बताते हैं कि उनकी गौशाला में आसपास के 12 गांवों के पशु रखे जाते हैं. उनके मुताबिक गौशाला के संचालन पर हर महीने करीब डेढ़ लाख रुपये का खर्च आता है. इसका आधा ही सरकार से मिल पाता है और वह भी समय पर नहीं मिलता.