कांग्रेस के कद्दावर नेता आरपीएन सिंह मंगलवार को बीजेपी में शामिल हो गए हैं. वो इस समय झारखंड राज्य के प्रभारी थे. पूर्वी उत्तर प्रदेश के पडरौना से आने वाले आरपीएन सिंह का संबंध राजघराने से है. वो पडरौना राजपरिवार के राजा है. परंपरागत तौर पर कांग्रेसी परिवार से आने वाले आरपीएन सिंह ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत पडरौना से ही की थी. उन्होंने पडरौना विधानसभा क्षेत्र से 3 बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता था. वो 2009 में कांग्रेस के ही टिकट पर पडरौना लोकसभा क्षेत्र से सासंद भी चुने गए. 


कैसा है पडरौना विधानसभा सीट का समीकरण


पडरौना कुशीनगर जिले की 6 विधानसभा सीटों में से एक है. आजादी के बाद से इस सीट से सबसे अधिक जीत कांग्रेस को मिली है. कांग्रेस ने 8 बार इस सीट पर जीत का स्वाद चखा है. गन्ने की मिठास के लिए मशहूर पडरौना की जनता ने हर विचारधारा को मौका दिया है. यहां तक की इस सीट से 1989 में सीपीआई का उम्मीदवार भी जीत चुका है. फिलहाल 2009 से इस सीट पर बीजेपी को जीत मिल रही है. बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में गए स्वामी प्रसाद मौर्ट यहां से 2017 में जीते थे.


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पडरौना में करीब साढे तीन लाख मतदाता हैं. इस सीट पर सबसे अधिक 84 हजार मुस्‍लिम मतदाता हैं. इसके बाद अनुसूचित जाति के करीब 76 हजार वोटर हैं. वहीं ब्राह्मण 52 हजार, यादव 48 हजार, सैंथवार 46 हजार, और कोइरी जाति के करीब 44 हजार वोट हैं. गन्ने की खेती ही यहां का मुख्य व्यवसाय हुआ करती थी. लेकिन चीनी मिलों के बंद हो जाने के कारण अब इस इलाके में उस तरह से गन्ने की खेती नहीं होती है, जैसे पहले होती थी. इसके अलावा कोई बड़ा रोजगार का जरिया इस इलाके में नहीं है.  


पडरौना विधानसभा सीट का इतिहास


अगर हम बात करें पडरौना विधानसभा सीट के इतिहास की तो यहां से पहले विधानसभा चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के जगरनाथ मल्ल चुने गए थे. उसके बाद 1957, 1962 और 1967 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चंद्रदेव तिवारी जीते. वहीं 1969 के चुनाव में पडरौना राजघराने के राजा और आरपीएन सिंह के पिता सीपीएन सिंह कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए. वहीं 1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर पुरुषोत्तम कौशिक चुने गए. वो 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर जीते. वहीं 1980 में कांग्रेस के बीके मिश्र इस सीट से विधायक चुने गए. लोक दल के बालेश्वर यादव 1985 में जीते थे.  इसके बाद 1989 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के असगर अली विधायक चुने गए. आज देश के कई राज्यों और केंद्र में सरकार चला रही बीजेपी के हिस्से में यह सीट 1991 में आई. उस साल बीजेपी के टिकट पर सुरेंद्र शुक्ल जीते थे. साल 1993 में बालेश्वर यादव सपा के टिकट पर इस सीट से विधानसभा पहुंचे. इसके बाद 1996, 2002 और 2007 में इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर आरपीएन सिंह चुनाव जीते. 


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आरपीएन सिंह 2009 में पडरौना लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. इसके बाद उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया. उनके इस्तीफे के बाद कराए गए उपचुनाव में बसपा ने स्वामी प्रसाद मौर्य को पडरौना के चुनाव मैदान में उतारा. मौर्य ने 2009 के उपचुनाव में आरपीएन सिंह की मां को मात दी. मौर्य को 2012 में बसपा ने अपना उम्मीदवार बनाया.  उन्होंने कांग्रेस के राजेश कुमार जायसवाल को 8 हजार 162 वोट से हराया. मौर्य 2017 के चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे. बीजेपी ने उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट दिया. मौर्य ने 2017 के चुनाव में बसपा के जावेद इकबाल को 40 हजार 552 वोट के भारी अंतर से हराया. उसके बाद से स्वामी प्रसाद मौर्य पडरौना में अपराजेय हैं.