उत्तर प्रदेश की 73 विधानसभा सीटों को संवेदनशील घोषित किया गया है. यह 2017 के चुनाव में संवेदनशील घोषित की गईं 38 से 35 अधिक हैं. प्रदेश की जिन सीटों को संवेदनशील घोषित किया गया है, उनमें जातिय हिंसा और सीएए-एनआरसी के विरोध में हुए आंदोलन के दौरान हुई हिंसा शामिल है. आइए जानते हैं, जिन सीटों को संवेदनशील घोषित किया गया है, उनमें से कुछ में हुई हिंसा की प्रमुख घटनाएं क्या हुई थीं. 


किसी सीट कैसे घोषित किया जाता है संवेदनशील


चुनाव आयोग ने 7 जनवरी को उत्तर प्रदेश में चुनाव की तारीखों की घोषणा की थी. इसके अगले ही दिन उत्तर प्रदेश पुलिस ने कहा कि उसने प्रदेश में 95  संवेदनशील सीटों की पहचान की है. इसे बाद में इसे संशोधित कर 73 कर दिया गया. पुलिस के मुताबिक विधानसभा सीटों को संवेदनशील घोषित किए जाने के कुछ पैमाने हैं. उन्हीं के आधार पर किसी सीट को संवेदनशील घोषित किया जाता है. इनमें जाति विद्वेष, कानून व्यवस्था का इतिहास और कौन चुनाव लड़ रहा है को ध्यान में रखकर  विधानसभा सीटों को संवेदनशील घोषित किया जाता है. 


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प्रदेश की संवेदनशील सीटों की सूची में कन्नौज विधानसभा सीट भी शामिल है. इत्र के लिए मशहूर कन्नौज कुछ दिन पहले आयकर विभाग के छापों को लेकर चर्चा में आ गया था. आयकर विभाग ने इस शहर के तीन इत्र कारोबारियों के ठिकानों पर छापेमारी कर बड़े पैमाने पर नगदी बरामद की थी. 


मुख्तार अंसारी की सीट भी संवेदनशील है


संवेदनशील सीटों की सूची में पूर्वी उत्तर प्रदेश की मऊ और ज्ञानपुर सीट भी शामिल है. मऊ सीट का प्रतिनिधित्व मुख्तार अंसारी और ज्ञानपुर का प्रतिनिधित्व विजय मिश्र करते हैं. ये दोनों विधायक अभी जेल में बंद हैं. इलाहाबाद पश्चिम सीट भी संवेदनशील घोषित की गई है. यहां के पूर्व विधायक अतीक अहमद भी जेल में बंद हैं. 


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उत्तर प्रदेश पुलिस ने जिन 38 सीटों को 2017 में संवेदनशील घोषित किया था, उनमें से 32 को इस बार भी संवेदनशील घोषित किया गया है.  पिछले चुनाव में संवेदनशील घोषित सीटों में से 6 को इस बार इस सूची से बाहर कर दिया गया है. ये सीटें हैं जौनपुर की मड़ियाहूं और शाहगंज, गाजियाबाद की लोनी,प्रयागराज की इलाहाबाद उत्तरी, संभल की गुन्नौर और औरैया की डिबियापुर सीट. 


किस जिले में सबसे अधिक संवेदनशील सीटें हैं


इस बार जिन सीटों को संवेदनशील घोषित किया गया है, उनमें प्रयागराज की 12 में से 8 सीटें शामिल हैं. वहीं बलिया की 5, बागपत, सहारनपुर, सिद्धार्थनगर, बहराइच, जौनपुर, अंबेडकरनगर और आजमगढ़ की 3-3 सीटें शामिल हैं. 


सहारनपुर की रामपुर मनिहारन सीट को इस साल संवेदनशील घोषित किया गया है. इस सीट पर 2017 में जातिय संघर्ष हुआ था. यहां के शब्बीरपुर गांव में महाराणा प्रताप की याद में निकाले गए जुलूस को लेकर दलितों और राजपूतों में हिंसक झड़पें हो गई थीं. इस हिंसा में 35 साल के सुमित राजपूत की मौत हो गई थी और 16 अन्य लोग घायल हुए थे. इस हिंसा में करीब 25 घरों में आग लगा दी गई थी. इसी के बाद 'भीम आर्मी' चर्चा में आई थी. उत्तर प्रदेश पुलिस ने इसके नेता चंद्रशेखर आजाद को गिरफ्तार किया था. हिंसा के इन मामलों के बाद कुल 9 एफआईआर दर्ज की गई थीं. 


सीएए-एनआरसी के विरोध में हुई थी हिंसा


संवेदनशील सीटों की सूची में गाजिपुर की मोहम्मदाबाद सीट भी शामिल है. यहां पर जून 2018 में जाति आधारित हिंसा की घटनाएं हुई थीं. हिंसा की शुरुआत नवाली गांव की प्रधान विमला सिंह के बेटे और मोबाइल की एक दुकान के दलित मालिक के बीच बकाए को लेकर झगड़े के बाद शुरू हुई. 


संवेदनशील सीटों की सूची में मेरठ और फिरोजाबाद जिले की सीट भी शामिल हैं. इन जगहों पर 2019 में सीएए-एनआरसी को लेकर हुए आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी. हिंसा की इन घटनाओं के बाद पूरे राज्य में 23 लोगों की मौत हो गई थी और 538 लोग जख्मी हुए थे. इनमें 455 पुलिसकर्मी शामिल थे. इन घटनाओं में फिरोजाबाद में 7 लोगों और मेरठ सदर विधानसभा क्षेत्र में 5 लोगों की मौत हुई थी. सीएए-एनआरसी के विरोध में हिंसा की शुरूआत 19 दिसंबर को राजधानी लखनऊ से शुरू हुई. इसके बाद वाराणसी, रामपुर, मुजफ्फरनगर, संभल, बिजनौर, कानपुर, मऊ, अलीगढ और गोरखपुर में भी हिंसा हुई थी.