समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के विधानसभा चुनाव न लड़ने की खबरें हैं. दरअसल एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में अखिलेश के हवाले से यह बात कही गई. लेकिन सपा ने इन खबरों को खारिज कर दिया है. कहा गया है कि अखिलेश के चुनाव लड़ने पर फैसला पार्टी करेगी. अखिलेश के चुनाव न लड़ने के फैसले पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ. दरअसल वो अबतक एक बार भी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़े हैं. वो विधान परिषद के जरिए ही सदन में पहुंचे हैं. आइए नजर डालते हैं अखिलेश यादव के इस फैसले के पीछे की राजनीति पर 


पहली बार सदन में कब पहुंचे अखिलेश


अखिलेश यादव ने अपना राजनीतिक सफर 2000 में कन्नौज लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव से की थी. वो 3 बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं. इस समय भी वो आजमगढ़ से लोकसभा सदस्य हैं. साल 2012 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार उत्तर प्रदेश में बनी तो वे विधानसभा के सदस्य नहीं थे. बाद में उन्होंने विधान परिषद की सदस्यता ली. मई 2018 में जब उनका कार्यकाल खत्म हुआ तो वो फिर विधान परिषद नहीं गए. उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव आजमगढ़ से लड़ा और जीते.  


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दरअसल विधानसभा चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनने वालों की सूची में अंतिम नाम राजनाथ सिंह का था. 28 अक्तूबर 2000 को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद वो बाराबंकी की हैदरगढ़ विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे थे. उनके बाद किसी भी मुख्यमंत्री ने विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा. 


दरअसल समाजवादी पार्टी इस समय ऐसे समय से गुजर रही है, जब उसके पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है. इससे पहले जब 2012 में सपा की सरकार बनी थी तो पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव सक्रिय राजनीति में थे. उन्होंने चुनाव प्रचार भी जमकर किया था. लेकिन अब उनका स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा है. वहीं आजम खान जैसा बड़ा चेहरा इस समय जेल में हैं और शिवपाल सिंह यादव जैसा नेता सपा से अलग हो चुका है. ऐसे में पार्टी के प्रचार अभियान की पूरी जिम्मेदारी अखिलेश पर है. ऐसे अगर वो खुद चुनाव लड़ेंगे तो पार्टी का प्रचार अभियान प्रभावित हो सकता है. 


ममता बनर्जी का असर तो नहीं


वहीं अगर विपक्ष ने उनके खिलाफ कोई बड़ा उम्मीदवार उतार दिया तो परिणाम बदल भी सकते हैं. कुछ इसी तरह का वाकया इस साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में देखने को मिला जब टीएमसी ने प्रदर्शन तो शानदार किया, लेकिन पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी ही हार गईं. अखिलेश इस तरह की किसी किरकिरी से भी बचना चाहते हैं. हार का डर ही था कि 2014 का लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री ने दो सीटों से लड़ा था और 2019 का चुनाव राहुल गांधी ने 2 सीटों से लड़ा. उन्हें एक सीट पर हार का भी सामना करना पड़ा. 


दूसरी बात यह है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए केवल विधान परिषद का सदस्य होने की कोई शर्त नहीं होती है. पदभार संभालने के बाद मुख्यमंत्री को विधानसभा या विधानपरिषद में से किसी एक सदस्य का सदन बनना पड़ता है. अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनने के बाद विधान परिषद का रास्ता पहले भी पकड़ चुके हैं. इसी तरह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब मार्च 2017 में मुख्यमंत्री बने तो वो गोरखपुर से लोकसभा के सदस्य थे. उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा देकर विधानपरिषद का चुनाव लड़ा. वो अभी भी विधान परिषद का सदस्य ही हैं. 


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