कांशीराम ने 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था. इसके 10 साल बाद 1993 में बसपा उत्तर प्रदेश की सरकार में शामिल थी. इसके बाद 1995 के जून में मायावती के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार बनी. यह देश में दलितों का प्रतिनिधित्व करने वाली किसी पार्टी की पहली सरकार थी. गठन के बाद से ही बसपा ने उतार-चढ़ाव का एक लंबा दौर देखा है. इस दौरान यह पार्टी कई बार टूटी. कई नेता पार्टी से निकाले गए और कई खुद ही निकल गए. आइए नजर डालते हैं उन पार्टियों पर जिनके नेता बसपा से निकले या निकाले गए.     


राजबहादुर की बसपा (आर)


राजबहादुर बसपा संस्थापक कांशीराम के करीबी रहे. वो उन नेताओं में शामिल हैं, जो बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एंप्लाई फेडरेशन (बामसेफ), दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (डीएस-4) और बसपा तीनों के रहे. राज बहादुर 1993 में बनी सपा-बसपा की सरकार में मंत्री भी रहे. लेकिन बाद में उन्होंने पार्टी छोड़ दी. बसपा से निकलकर राज बहादुर ने बसपा (आर) नाम से पार्टी बनाई. बाद में वो कांग्रेस में शामिल हो गए थे. वहीं 1990 के दशक में ही बसपा छोड़ने वाले जंगबहादुर पटेल ने बहुजन समाज दल नाम से पार्टी बनाई थी. 


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डॉक्टर मसूद अहमद की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी


डॉक्टर मसूद अहमद सपा-बसपा की सरकार में बसपा कोटे से कैबिनेट मंत्री थे. उन्हें शिक्षा जैसा महत्वपूर्ण विभाग मिला था. लेकिन 1994 की सर्दियों की एक शाम उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया. और आधी रात को उनका सामान उनके बंगले से निकाल कर बाहर फेंक दिया गया. बसपा से निकाले जाने के बाद डॉक्टर मसूद ने पहले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और बाद में नेशनल लोक हिंद पार्टी बनाई. लेकिन उनकी पार्टियां कोई कमाल नहीं कर पाईं. डॉक्टर मसूद 2010 में वे सपा में शामिल हो गए. लेकिन 2015 में उन्होंने सपा छोड़कर रालोद की सदस्यता ले ली थी. वो दो बार रालोद के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे. 


सोनेलाल पटेल का अपना दल


सोने लाल पटेल को भी कांशीराम का करीबी माना जाता था. बसपा से निकलने के बाद सोनेलाल पटेल ने 4 नवंबर 1995 को 'अपना दल' नाम से अपनी अलग पार्टी बनाई थी. साल 2009 में हुए एक सड़क हादसे में पटेल की मौत हो गई थी. इसके बाद अपना दल की जिम्मेदारी उनकी पत्नी कृष्णा पटेल के कंधे पर आ गई थी. पर पारिवारि झगड़े की वजह से यह दो धड़ों में बंट चुकी है. एक धड़े का नेतृत्व कृष्णा पटेल के पास है तो अपना दल (सोनेलाल) का नेतृत्व उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल के पास. अपना दल (एस) का उत्तर प्रदेश में बीजेपी से गठबंधन है. इस समय अपना दल के विधानसभा में 9, विधान परिषद में 1 और लोकसभा में 2 सदस्य हैं.  


ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा


सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर भी कभी बसपा में थे. बसपा से निकलने के बाद उन्होंने 2002 में सुभासपा का गठन किया. यह पार्टी उसी समय से चुनाव लड़ रही है. लेकिन उसे जीत का स्वाद 2017 के चुनाव में मिला. यह चुनाव सुभासपा ने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा था. सुभासपा ने 8 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन वो केवल 4 सीटें ही जीत पाई थी. सुभासपा ने 2022 के चुनाव के लिए सपा से हाथ मिलाया है.


आरके चौधरी की राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी 


इसी तरह 1993 में बनी सपा-बसपा की सरकार में आरके चौधरी मंत्री बनाए गए थे. उस समय चौधरी विधानसभा के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे. बाद में उन्होंने कौशांबी के मंझनपुर से विधानसभा का उपचुनाव लड़ा. बसपा से अलग होकर चौधरी ने राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी नाम से अपनी पार्टी बनाई. लेकिन उनकी पार्टी कोई कमाल नहीं कर पाई. अंत में उन्होंने 2013 में बसपा में वापसी की. लेकिन बसपा में उनकी दूसरी पारी अधिक समय तक नहीं चली. उन्होंने 2016 में एक बार फिर बसपा छोड़ दी थी. इसके बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गए. आरके चौधरी ने इस साल फरवरी में कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है.


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