बीजेपी (BJP) के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) शुक्रवार को लखनऊ में थे. उन्होंने बीजेपी के सदस्यता अभियान की शुरूआत करते हुए अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को निशाने पर रखा. वहीं अगस्त में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) को 'अब्बाजान' कहा था. योगी इसे कई बार दोहरा चुके हैं. ये दो उदाहरण यह बताने के लिए हैं कि चुनाव (UP Assembly Election)से पहले बीजेपी के निशाने पर समाजवादी पार्टी ही है. बीजेपी नेता सपा पर हमले को कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते हैं. अखिलेश भी बीजेपी पर हमलावर हैं. शनिवार को उन्होंने कहा कि बीजेपी को टिकट मांगने वाले 3-4 लोग भी नहीं मिलेंगे.
उत्तर प्रदेश में आकार लेता गठबंधन
उत्तर प्रदेश में गठबंधन आकार ले रहे हैं. सपा के साथ अभी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ही है, जिसके विधानसभा में सदस्य हैं. सुभासपा ने 2017 का चुनाव बीजेपी के साथ लड़ा था. आंकड़ों के मुताबिक बीते चुनावों में यादवों को छोड़कर ओबीसी का बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ गया. इसे ध्यान में रखकर सपा ने कुशवाहा-कोइरी की पार्टी महान दल को साथ लिया है. कुशवाहा समाज से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य को बीजेपी ने उपमुख्यमंत्री बनाया है.
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पूर्वांचल में गठबंधन कर सपा अब पश्चिम में खुद को मजबूत कर रही है. जहां किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी कमजोर हुई है. सपा वहां जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल से समझौते की कोशिश में है.
सपा-सुभासपा गठबंधन के बाद बीजेपी ने 7 छोटे दलों के साथ गठबंधन की घोषणा की. बीजेपी के इन नए सहयोगियों में केवट रामधनी बिन्द की भारतीय मानव समाज पार्टी, चन्द्रमा वनवासी की मुसहर आन्दोलन मंच (गरीब पार्टी), अध्यक्ष बाबू लाल राजभर की शोषित समाज पार्टी, कृष्णगोपाल सिंह कश्यप की मानवहित पार्टी, भीम राजभर की भारतीय सुहेलदेव जनता पार्टी, चन्दन सिंह चौहान की पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी और महेंद्र प्रजापति की भारतीय समता समाज पार्टी शामिल हैं. बीजेपी का अपना दल (सोनेलाल) से पिछले कई चुनाव से गठबंधन है.
उत्तर प्रदेश के चुनावों में जाति का जोर
सपा-बीजेपी ने जिन छोटे दलों से समझौता किया है, वो सभी जाति आधारित पार्टियां हैं. इससे पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में जाति कितना बड़ा फैक्टर है. पिछले चुनाव में बीजेपी ने टिकट बंटवारे में जाति का ख्याल रखा. इसका उसे फायदा भी हुआ. वहीं अपने काम के सहारे 2017 के चुनाव में जाने वाली सपा को बुरी हार मिली थी. अखिलेश इस बार जातिय समिकरणों को साधने में जुटे हैं. हाल में घोषित सपा की राज्य कार्यकारणी में भी यह नजर आता है. सपा ने कार्यकारणी में सभी वर्गों को जगह देने की कोशिश की है. उसने दलितों के लिए एक अलग फ्रंट बनाया है. ये सब भी बीजेपी को परेशान कर रहा है.
अप्रैल-मई में हुए पंचायत चुनाव में सपा ने बड़े पैमाने पर जीत दर्ज की. उसके अलावा विपक्ष का कोई और दल अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया. लेकिन जिला पंचायत और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज की. विपक्ष ने उस पर सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया. दरअसल ये चुनाव जीत दर्ज कर बीजेपी ने यह दिखाने की कोशिश की कि किसान आंदोलन का प्रदेश में कोई असर नहीं है. और विपक्ष कमजोर है.
किसके बीच होगी यूपी का मुकाबला
बीजेपी को बसपा या कांग्रेस से कोई बड़ा खतरा नजर नहीं आ रहा है. इसलिए बीजेपी सपा पर हमले कर रही है. राजनीतिक टिप्पणीकार भी मान रहे हैं कि चुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी-सपा में होगा.
साल 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 312 सीटें जीती थीं. उसे 39.67 फीसदी वोट मिले थे. वहीं सपा ने 21.82 फीसदी वोट के साथ 47 सीटें जीती थीं. उसकी गठबंधन सहयोगी कांग्रेस को 6.25 फीसद वोट और 7 सीटें मिलीं थीं. बसपा 19 सीटें ही जीत पाई थी. उसे 22.23 फीसदी वोट मिले थे.
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