उत्तर प्रदेश में बीजेपी गठबंधन 273 सीटें जीतकर अपनी सत्ता बचा पाने में कामयाब रहा है. इस जीत में भी बीजेपी शामली जिले की तीनों सीटों पर हार गई है. अब तक जो बात समझ में आ रही है, उनसे लग रहा है कि मुजफ्फरनगर-शामली में 2013 के दंगों के बाद जो मुस्लिम जाट समीकरण गड़बड़ा रहा था वह इस बार मजबूत हुआ है. किसानों से संबंधित कुछ ऐसे मुद्दे थे जिन्हें लेकर किसानों ने मतदान के माध्यम से सरकार के खिलाफ अपना असंतोष जताया है.


क्यों हारे गन्ना मंत्री सुरेश राणा?


शामली की थानाभवन सीट पर गन्ना मंत्री सुरेश राणा को जहां जाट मुस्लिम गठबंधन भारी पड़ा वही किसानों की गन्ना भुगतान में हुई देरी की नाराजगी भी झेलनी पड़ी. हालांकि राणा ने पहले राउंड से लेकर अंतिम राउंड तक अपना बेहतर प्रदर्शन जारी रखा,लेकिन कहीं ना कहीं उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी ठाकुर शेर सिंह की वजह से नुकसान झेलना पड़ा.वो इस सीट पर रालोद के अशरफ अली खान से 10 हजार 860 वोटों से हार गए. हालांकि थाना भवन के लोग गन्ना मंत्री सुरेश राणा की हार को एक बड़े अंतर के रूप में देख रहे थे लेकिन जिस तरह से मंत्री 12 ग्राम तक लगातार बढ़त बनाते हुए दिखाई दिए उससे यह बात तो निश्चित है की दलित वर्ग के लोगों ने थानाभवन सीट पर बीजेपी के पक्ष में मतदान किया.


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शामली विधानसभा सीट पर बीजेपी के पक्ष में जहां जाट मतों का बंटवारा हुआ,वही मुस्लिम क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत अधिक होने और रालोद उम्मीदवार प्रसन्न चौधरी के पक्ष में भारी मतदान होने से वो जीत गए. प्रसन्न चौधरी ने भारी मतों से अपनी जीत का अंदाजा लगा रखा था,लेकिन उन्हें केवल 7 हजार 234 मतों से ही विजयश्री मिली है. 


कैराना में क्यों नहीं जीत पाई बीजेपी?


कैराना विधानसभा सीट पर जाट समुदाय का मत जहां नाहिद हसन की जीत का मुख्य कारण बना, वही कैराना विधानसभा सीट पर प्रदेश में सबसे अधिक 75 फीसद मतदान ने नाहिद हसन की जीत के अंतर को बढ़ा दिया. नाहिद हसन ने 1 लाख 30 हजार 802 वोट पाकर जीत का परचम लहराया.इस सीट पर बीजेपी के बड़े नेताओं की टेढी नजरें थीं. यहां पर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. इतनी कोशिशों के बाद भी बीजेपी नाहिद हसन को हरा नहीं पाई. नाहिद हसन की अनुपस्थिति में उनकी बहन इकरा हसन ने मोर्चा संभाला. वो जनता को यह समझा पाने में कामयाब रहीं कि बीजेपी उनके साथ अन्याय कर रही है. उनके भाई को झूठे मुकदमों में फंसा कर जेल में डाला गया है और मां को जिला बदर कर रखा है.


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कुल मिलाकर जहां पूरे प्रदेश में दलित वोट पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में ट्रांसफर होता दिखाई दिया. वहीं शामली जिले में भी दलित वोट के बीजेपी के पक्ष में चले जाने से गठबंधन प्रत्याशियों की जीत पर अंतर का प्रभाव पड़ा.प्रदेश में बीजेपी की सरकार दूसरी बार सत्तारूढ़ होने जा रही है, वहीं शामली में बीजेपी का कोई विधायक न होने से जिले का विकास क्या होता रहेगा और विकास का पहिया पहले की तरह चलता रहेगा, यह यक्ष प्रश्न की तरह सबके सामने खड़ा है.